उत्तर प्रदेश के उन्नाव के विकासखंड गंजमुरादाबाद के गंगा कटरी के छोटे से गांव रतई पुरवा की बेटी ने जब U19 महिला क्रिकेट विश्वकप में फिरंगियों को हराने का काम किया तो विश्व पटल पर जनपद का नाम चमकते देख स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि सई नदी सेज लेकर गंगा की गोदी तक बच्चा-बच्चा उछलता दिखाई पड़ा, भले ही वह क्रिकेट के ‘क’ से अनजान हो। यही नहीं, रतई पुरवा में 30 जनवरी 2023 को वीआईपी शख्सियतों की आवाजाही रही।
कच्चे घर में रह रहे अर्चना देवी के परिजन को लेकर जिलाधिकारी अपूर्वा दुबे ने कहा कि अर्चना का करिश्मा हम सबके लिए गर्व की बात है। उनके परिजन की हरसंभव मदद की जाएगी। खंड विकास अधिकारी सुरेंद्र प्रताप ने बताया कि परिवार को मुख्यमंत्री आवास योजना से लाभान्वित कराने के लिए पात्रता की जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों की सूची में नाम नहीं होने के कारण सावित्री देवी को प्रधानमंत्री आवास का लाभ नही दिया जा सका।
सात साल पहले गंजमुरादाबाद के कस्तूरबा बालिका विद्यालय से कक्षा आठ की परीक्षा पास कर अर्चना देवी यादव तत्कालीन केजीवी की शिक्षिका पूनम गुप्ता के प्रयासों से कानपुर क्रिकेट क्लब पहुंची तो मानों अर्चना को उड़ान भरने के पर लग गए।
अर्चना को स्पिन गेंदबाजी की बारीकियां सिखाने वाले कानपुर रोवर्स मैदान के कोंच कपिल देव पांडे (कुलदीप यादव के भी कोच) ने कहा कि अर्चना ने वह मुकाम हासिल कर लिया है जिसे महिला क्रिकेटर्स में प्रदेश का अब तक कोई खिलाड़ी छू तक नहीं पाया है। अंडर-19 महिला टी20 विश्व कप फाइनल में भारत ने इंग्लैंड को 68 रन पर ऑलआउट किया। इस शानदार प्रदर्शन की नींव किसी और ने नहीं, बल्कि अर्चना देवी ने ही रखी।
उन्होंने नामवर खिलाड़ियों में शुमार किए जाने वाले ग्रेस स्क्रिवेंस और नियाह हॉलैंड को आउट करके शानदार शुरुआत की। मात्र चार साल की उम्र (वर्ष 2007 में) कैंसर की बीमारी के चलते पिता का साया गंवाने वाली अर्चना को देखकर कोई यह नहीं कहता था कि एक दिन उसके बलबूते पर उन्नाव को ही नहीं पूरे देश को उस पर गर्व होगा।
मां सावित्री देवी ने बताया कि मुसीबतों का रेला यहीं पर नहीं रुका, बल्कि 2017 में अर्चना का छोटा भाई बुद्धिमान सर्पदंश से उस समय कालकवलित हो गया। जब वह झाड़ियों के बीच से क्रिकेट का गेंद निकालने गया था। परिजन बताते हैं कि अर्चना उसी से प्रेरित होकर क्रिकेट खेलने लगी थी। बड़े भाई रोहित ने बताया कि कोरोना काल में गांव लौटी अर्चना यहां पुरानी धोतियों का नेट बनाकर सतत अभ्यास करती रहीं।
रोहित के मुताबिक, इसी बीच लॉकडाउन के दौरान उसकी भी नौकरी चली गई। नई दिल्ली में वह कापसहेड़ा बॉर्डर की एक कपड़े की फैक्ट्री में काम करता था। जिससे उसकी मां को अपने बच्चों को पालने के लिए दर-दर की ठोकरें कहानी पड़ीं।
रोहित ने कहा, ‘गंगा तटीय इलाका होने के कारण हमारे गांव के लोग हर साल बाढ़ का सामना करते हैं। नतीजन खरीफ की फसल में हमारे खेत गंगा नदी की बाढ़ से डूबे रहते हैं। इस अंतराल में हमारी आजीविका घर मे पली गाय और भैंस के दूध पर आश्रित हो जाती है।’