ओडिशा के माओवाद प्रभावित रायगढ़ जिले में सीआरपीएफ कैंप में रवि कुमार को कोई नहीं जानता था। मुट्ठी भर लोग उनके पिता राजिंदर सिंह को जानते थे, जो एक सहायक उप निरीक्षक हैं। हालांकि, शनिवार यानी 29 जनवरी 2022 की रात ने सब कुछ बदल दिया।
बाएं हाथ के सीमर रवि ने 14 रन देकर तीन विकेट चटकाए। उनके शानदार प्रदर्शन के दम पर भारत ने अंडर -19 विश्व कप में बांग्लादेश पर पांच विकेट की जीत हासिल की और सेमीफाइनल जगह बनाई।
रवि ने अपने शुरुआती स्पेल (5-1-5-3) में ही तीनों विकेट झटक लिए थे। टूर्नामेंट में यह भारत का अब तक का सबसे मधुर क्षण था, क्योंकि भारतीय टीम को पिछले सीजन बांग्लादेश से फाइनल में हराने के कारण अंडर-19 विश्व कप की ट्रॉफी गंवानी पड़ी थी।
शनिवार रात के बाद से सीआरपीएफ कैंप में सारी बातें राजिंदर और रवि को लेकर हैं। राजिंदर ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, ‘कल तक यहां राजिंदर को कोई नहीं जानता था। आज सभी अफसर जानते हैं…, रवि के पापा राजिंदर की हमारी यूनिट में चर्चा है। सभी अधिकारियों ने मुझे फोन किया और बधाई दी, मेरे पास अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए कई शब्द नहीं हैं।’
हालांकि, इस दिन का स्वाद चखने के लिए पिता-पुत्र की जोड़ी को कई बाधाओं को पार करना पड़ा। रवि की मां अपने बेटे के हर समय क्रिकेट खेलने को लेकर चिंतित रहती थीं। वह चाहती थीं कि रवि पढ़ाई पर ध्यान दें और डिग्री हासिल करें। वहीं, रवि बेफिक्र होकर उनसे कहते थे, ‘आज आप मुझे रोक रही हैं, लेकिन एक दिन आएगा जब आप मुझे टीवी पर देखेंगी।’
राजिंदर को यह लाइन तब याद आई जब उन्होंने अपने बेटे को सीआरपीएफ कैंप में स्मार्टफोन पर अपनी गेंदबाजी से बांग्लादेश के शीर्ष क्रम को पवेलियन भेजते देखा। वह स्वीकार करते हैं कि वह भी कई बार बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित रहते थे।
उन्होंने बताया, ‘मेरे पास इतने पैसे और संसाधन नहीं हैं, जो कि उसे भारत के लिए खेलने की तैयारी करा पाते। लेकिन रवि की प्रतिबद्धता को देखते हुए मैंने उससे कहा, ‘यदि आपके पास ‘दम’ है, तो आप भारत के लिए खेलेंगे। उनके बेटे ने भी 19 साल की उम्र में दिखा दिया कि उसके पास भारत के लिए खेलने का दम है। हालांकि, इस सफर में रवि को कई असफलताओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वह उससे उबरे।
रवि ने बहुत पहले कानपुर में ट्रायल के बाद पिता को फोन पर बताया था कि उन्होंने राज्य की अंडर-16 टीम में चुन जाने के लिए रिश्वत को लेकर बातें सुनी हैं। इसके बाद रवि को लगा कि यूपी में रहने पर उनकी प्रगति की संभावनाएं धूमिल हैं। राजिंदर भी जानते थे कि यह सब उनके मामूली वेतन और बचत से परे था।
इस बीच, एक पड़ोसी, जिनका कोलकाता में एक घर है, ने राजिंदर से कहा कि रवि वहां रह सकता है और खेल सकता है। उस समय रवि सिर्फ 13 साल का था। रवि के दिमाग में भी क्रिकेटर बनने की धुन सवार थी। उन्होंने अपना बैग पैक कर लिया। वह जल्द ही वह पहले डिवीजन से दूसरे डिवीजन में पहुंच गए।
हालांकि, दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। रवि ने बताया, ‘मैं अंडर-16 कैंप में था, लेकिन कुछ टेस्ट, बोन टेस्ट या कुछ और के बाद मेरा नाम हटा दिया गया था। मुझे कोई कारण नहीं बताया गया और मैं आउट हो गया।’ हालांकि, रवि ने अपने माता-पिता को उन सब चीजों के बारे में कभी नहीं बताया।
रवि ने कहा, ‘कई बार उन्हें ताना मारा जाता था। मैंने अपने दोस्तों से सुना कि मैं ज्यादा कुछ नहीं कर पाऊंगा।’ हालांकि, उनमें से कुछ अब उनकी प्रशंसा कर रहे हैं, वे कहते हैं। रवि इसे जीवन के सबक के रूप में लेते हैं। रवि कहते हैं, ‘यही जीवन है। एक चीज जो मैंने सीखी है वह यह कि आखिर तक सिर्फ परिवार ही आपके साथ रहता है।’
धीरे-धीरे किस्मत बदली। पिछले साल के अंत में, रवि कुमार को वीनू मांकड़ ट्रॉफी के लिए बंगाल की अंडर-19 टीम में चुना गया। उनकी सफलता ने उन्हें चैलेंजर्स ट्रॉफी, घर में त्रिकोणीय सीरीज और एशिया कप में जगह दिलाई। हालांकि, जब किस्मत उन पर मेहरबान होती दिखी तब उन्होंने कोविड के कारण कोलकाता में अपने चाचा को खो दिया।
रवि की अब बस एक इच्छा है। उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि लोग मेरा अनुसरण करें और कहें हमें उसके जैसा बनना है।’ हालांकि रवि यह भी जानते हैं कि सपनों की यात्रा अभी शुरू हुई है। अब भी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन अभी के लिए, राजेंद्र के बेटे की ख्याति सीआरपीएफ यूनिट की दीवारों से बहुत आगे निकल गई है।