रवि शास्त्री के बारे में सोचिए। सबसे पहले दिमाग में क्या आता है? एक शानदार बल्लेबाज, एक उपयोगी ऑलराउंडर, कॉमेंट्री बॉक्स में बिजली जैसा करंट या भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे सफल कोचों में से एक? शास्त्री की तरह और भी कई लोगों के साथ यह हो सकता है, लेकिन एक शब्द जो उनको बाकी लोगों से अलग करता है, वह है मनमौजी। रवि शास्त्री कभी लोगों को खुश करने वाले नहीं रहे। उनकी गिनती हमेशा ब्लंट और मुंहफट व्यक्तियों के रूप में होती है।

रवि शास्त्री का व्यावहारिक रवैया कुछ ऐसा है, जिस पर उन्होंने हमेशा गर्व किया है। चाहे वह भारतीय टीम पर नासिर हुसैन की टिप्पणियों को बंद करना हो या भारत के 2001 के दक्षिण अफ्रीका दौरे के दौरान सचिन तेंदुलकर से जुड़े बॉल टैम्परिंग मामले के दौरान अथॉरिटी पर सवाल उठाना हो।

एक खिलाड़ी के रूप में भी रवि शास्त्री कभी चुनौतियों से पीछे नहीं हटे। ऐसा ही एक वाकया भारत के पूर्व बल्लेबाज और राष्ट्रीय चयन समिति का हिस्सा रहे जतिन परांजपे ने सुनाया है। मुंबई के पूर्व बल्लेबाज परांजपे ने रवि शास्त्री के नेतृत्व में रणजी ट्रॉफी में पदार्पण किया था। उन्होंने मुंबई और हरियाणा के बीच मैच के दौरान हुई एक घटना को याद किया। वहां उनके कप्तान ने अपने एक खिलाड़ी के लिए कड़ा रुख अपनाया था।

जतिन परांजपे ने कहा, ‘मुझे हरियाणा में एक रणजी ट्रॉफी मैच की एक घटना याद है। हरियाणा के कोच सरकार तलवार ने पारस म्हाम्ब्रे को कुछ कहा। इस पर रवि शास्त्री दौड़ते हुए उनके पास गए और कहा- अगर आपको मेरे खिलाड़ी से बात करनी है, तो आपको पहले मुझसे बात करनी होगी।’

परांजपे ने रेडिफ को बताया, ‘नेतृत्व उनके पास बहुत स्वाभाविक रूप से आया। मुंबई ने उस सीजन कुछ गेम खेले। वह हमेशा आश्वस्त रहते थे। वह एक आउटगोइंग करेक्टर थे। वह बार में बैठना और घंटों क्रिकेट पर बातें करना पसंद करेंगे… उनके जैसे बहुत कम लोग होते हैं।’

रवि शास्त्री और जतिन परांजपे का साथ में काम करते हुए एक खास जुड़ाव था। रवि शास्त्री के कोच और परांजपे के राष्ट्रीय चयनकर्ता के रूप में, खिलाड़ियों को चिन्हित करने और उनकी रूपरेखा बनाने में दोनों की बहुत बड़ी भूमिका थी, जो अंततः कई शानदार खिलाड़ियों की खोज के रूप में खत्म हुई। परांजपे ने प्रतिभा को तलाशने के लिए रवि शास्त्री की गहरी नजर की सराहना की। यह 2021 में भारत के ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में खेले गए तरीकों से स्पष्ट था।

जतिन परांजपे ने कहा, ‘जब मैं राष्ट्रीय चयनकर्ता था और रवि भारत का मुख्य कोच था, चूंकि मैं और रवि एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, चयनकर्ताओं और टीम प्रबंधन के बीच विश्वास का बंधन बनाने में मदद मिली। हम उन खिलाड़ियों को समझ गए जिनकी उन्हें जरूरत थी और हम एक तरह से पाइपलाइन बिछाते रहे, और चीजें सही जगह गिरती रहीं, चाहे वह मोहम्मद सिराज हों या शार्दुल ठाकुर या वाशिंगटन सुंदर।’