साल 1974 में राष्ट्रीय स्तर की जैवलिन थ्रो प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीत चुकीं 63 साल की मारिया गोरती खलखो पाई-पाई को मोहताज हैं। वह तीन साल से टीबी (फेफड़े) की बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन उनके पास अपना इलाज कराने के तक पैसे नहीं हैं। 30 साल तक जैवलिन कोच रहीं मारिया ने कई बार सरकार और अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन मदद के नाम पर कुछ माह पहले खेल विभाग की ओर से 25 हजार रुपए को छोड़कर आश्वासन ही मिला है। उनकी आर्थिक तंगी के पीछे झारखंड का बिहार से अलग होना भी एक कारण बताया जा रहा है।
मूल रूप से झारखंड के गुमला जिले के चैनपुर की रहने वाली मारिया मौजूदा समय में रांची के नामकुम आरा गेट की सीरी बस्ती में अपनी बहन के यहां रहती हैं। 70-80 के दशक में उन्होंने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और पदक जीते।
मारिया 1988 से 2018 तक लगातार 30 साल तक लातेहार के महुआटांड में जैवलिन थ्रो की कोच रहीं। मारिया ने देश को कई जैवलिन थ्रोअर दिए। वह 4 साल पहले तक प्रशिक्षण दे रहीं थीं, लेकिन रिटायर होने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति बदहाल हो गई।
मारिया गोरती खलखो को संयुक्त बिहार के समय जैवलिन थ्रो कोच के तौर पर कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया था। झारखंड के अलग होने के बाद उन्हें स्थायी नहीं किया गया। इस कारण उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती। हालांकि, झारखंड की खेल नीति राष्ट्रीय खिलाड़ियों को हर माह पेंशन देने की बात कही गई है।
मारिया कहती हैं कि सरकार पेंशन दे तो उनकी स्थिति सुधर सकती है। मारिया ने इलाज के लिए एक लाख रुपए का कर्जा भी ले रखा है। पैसा नहीं होने के कारण वह उसे भी नहीं चुका पा रही हैं। मारिया गोरती खलखो का एक फेफड़ा खराब हो चुका है।
मारिया की दवा के लिए हर महीने 5 हजार रुपए से ज्यादा की जरूरत पड़ती है। काफी गुहार लगाने के बाद सरकार की ओर से उन्हें एक लाख रुपए देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन यह राशि उन्हें अब तक नहीं मिली। इसके बहुत दिनों बाद उन्हें खेल विभाग ने 25 हजार रुपए दिए थे।
कक्षा 8 में ही राष्ट्रीय प्रतियोगिता में जीत लिया था गोल्ड मेडल
मारिया बचपन से ही एथलीट बनना चाहती थीं। साल 1974 में मारिया जब कक्षा 8 की छात्रा थीं, तब उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता था। मारिया ने अखिल भारतीय ग्रामीण शिखर सम्मेलन में भी भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने 1975 में मणिपुर नेशनल स्कूल गेम्स में भी स्वर्ण पदक जीता था।
मारिया 1975-76 में जालंधर इंटरनेशनल जैवलिन मीट में भी स्वर्ण पदक जीतने में सफल रही थीं। उन्होंने 1976-77 में भी कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय टूर्नामेंट्स में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। मारिया ने 1980 के दशक में कोचिंग का रुख किया। मारिया ने 1988 से 2018 तक 8,000 से 10,000 रुपए महीने की सैलरी पर बतौर कोच अपनी सेवाएं दीं।