राजेंद्र सजवान

यदि कोई रेफरी अंपायर निर्णय देने में किसी प्रकार के पक्षपात की नीयत रखता है तो उस पर उंगलियां उठना स्वाभाविक है। लेकिन इतना समझ लें कि हर किसी रेफरी अंपायर पर शक करना ठीक नहीं है, क्योंकि वह भी मानवीय गलतियां कर सकता है।

दो दशक पहले तक भारत और पाकिस्तान की हाकी और क्रिकेट टीमों के मुकाबलों में अंपायरों के कारण विवाद आम थे। इसी प्रकार इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के क्रिकेट मुकाबले भी बिना विवाद के समाप्त नहीं होते थे। ब्राज़ील और अर्जेंटीना की फुटबाल टीमों के बीच भी विवाद और मारपीट की घटनाएं आम थीं। यह सब रेफरी-अंपायरों के पक्षपात पूर्ण रवैये से होता रहा। लेकिन जब से तटस्थ निर्णायक और रेफरी अंपायरों का चलन शुरू हुआ है तब से शिकायतों और मारपीट की घटनाओं में कमी आई है। फिर भी, आरोप प्रत्यारोपों का दौर बदस्तूर जारी है। यह हाल तब है जबकि उच्च तकनीक का जमाना है और खेल मैदान, कोर्ट, रिंग की छोटी से छोटी हरकत कैमरे में कैद हो रही है।

आज जबकि रेफरी और अंपायर का हर फैसला सरेआम है, वीडियो रिकार्डिंग होती है फिर भी मैच रेफरियों और अंपायरों को कोसा जा रहा है, बुराभला कहा जा रहा है। ऐसा क्यों? यह सब भूमिका बांधने की जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि तमाम भारतीय खेलों के रेफरी और निर्णायक खिलाड़ियों, खेल प्रेमियों, अधिकारियों और आयोजकों के निशाने पर हैं और पाक साफ होने के बावजूद भी उन्हें कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। फिलहाल प्रीमियर लीग और अन्य आयोजनों के चलते दिल्ली के फुटबाल रेफरी क्लब अधिकारियों और खिलाड़ियों को फूटी आंख नहीं भा रहे हैं और उन्हें रोज ही हारने वाली या कई बार जीत हासिल करने वाली टीमों और उनके समर्थकों के ताने भी सुनने पड़ते हैं।

दिल्ली देश का ऐसा राज्य है जहां रोज ही कोई न कोई फुटबाल गतिविधि चल रही है। आठ से साठ साल तक के खिलाड़ियों के फुटबाल आयोजन हो रहे हैं। रेफरी लाइंसमैन के बिना आयोजन की कल्पना नहीं की जा सकती, इसलिए उनकी सेवाएं ली जा रही हैं। लेकिन शायद ही कोई ऐसा मैच होगा जिसमें रेफरी के निर्णयों पर उंगली न उठती हो। कुछ खिलाड़ी, कोच और क्लब अधिकारी रेफरी को अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते देखे जा सकते हैं। उन्हें बेईमान कहा जाता है और कभी कभार कुछ बिगड़ैल अधिकारी उन पर गलत आक्षेप भी लगाने से नहीं चूकते।

एक तरफ तो यह कहा जा रहा है कि दिल्ली की फुटबाल टीम सही दिशा में चल रही है। प्रीमियर लीग की शुरुआत से दिल्ली ने भारतीय फुटबाल में अपना अलग मुकाम बना लिया है । एक सर्वे से पता चला है कि दिल्ली साकर एसोसिएशन देश की सबसे बेहतरीन फुटबाल इकाइयों में है और लगातार आगे बढ़ रही है। लेकिन दिल्ली के रेफरी विश्वास क्यों खोते जा रहे हैं? हर मैच में उनके मैच संचालन को कोसा जाता है। हैरानी वाली बात यह है कि दिल्ली फुटबाल के कार्यकारिणी सदस्य, आयोजन समिति के अधिकारी और क्लब प्रमुख भी रेफरी लाइंसमैन को कोसते हैं। ऐसा प्राय: तब होता है जब उनकी या उनकी पसंदीदा टीमें हार जाती हैं।

लेकिन क्या सचमुच रेफरी अंपायर बेईमान और पक्षपाती हो सकता है? बहुत से पूर्व खिलाड़ियों और अधिकारियों की राय में ऐसा बहुत कम हो सकता है। कोई भी रेफरी गलत निर्णय क्यों देना चाहेगा? वह क्यों अपना नाम और पोजीशन खराब करेगा? यह सही है कि क्षणिक लाभ के लिए कोई भटक सकता है, कोई सट्टे बाजों के हाथ खेल सकता है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है।