हाल ही में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आइसीसी ने वैश्विक प्रतियोगिताओं में महिला खिलाड़ियों के लिए भी पुरुष के बराबर पुरस्कार राशि की घोषणा की। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआइ पुरुष और महिला खिलाड़ियों के लिए समान वेतन की घोषणा पहले ही कर चुका है। बीसीसीआइ और आइसीसी के इस निर्णय से महिला क्रिकेटरों को और प्रोत्साहन मिलेगा।
स्त्री-पुरुष समानता की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण कदम है। इससे क्रिकेट की दुनिया में आने वाले बदलाव पर कई महिला खिलाड़ियों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व खिलाड़ी और अब बीसीसीआइ महिला क्रिकेट चयन समिति की अध्यक्ष नीतू डेविड ने कहा कि आर्थिक समानता से सही मायने में महिला सशक्तीकरण होगा।
दक्षिण अफ्रीका के डरबन में आयोजित आइसीसी की वार्षिक बैठक में सभी प्रतियोगिताओं के लिए पारिश्रमिक को लेकर जो निर्णय लिए गए थे, वे नियम 2030 से लागू किए जाने थे। पर दुनिया भर की महिलाओं के आगे बढ़ने की लगन देखकर इसे अभी से लागू कर दिया गया है।
इस फैसले के बाद महिला क्रिकेट खिलाड़ियों का मनोबल मजबूत होना स्वाभाविक होगा। क्रिकेट की शीर्ष संस्थाओं की ओर से लिया गया यह फैसला काफी पहले आ जाना चाहिए था। इसकी आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी।
सदन जी, पटना।
तकनीक से उम्मीद
भारत में तकनीकी बदलाव होने के साथ-साथ एक नए दौर का आगाज हो चुका है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, संवर्धित वास्तविकता (एआर) आभासी वास्तविकता (वीआर) जैसी तकनीकों से भारतीय समाज आधुनिकता का अग्रणी बन रहा है। अब जिस तरह से इन सब तकनीकों का विस्तार हो रहा है, यह भारत में बेरोजगारी जैसी समस्या का निदान कर सकता है।
खुद विश्व आर्थिक मंच ने इस बात की पुष्टि की है। दरअसल, विश्व आर्थिक मंच ने हाल ही में एक अध्ययन कर यह अनुमान लगाया है कि पांच वर्षों में भारत में उनहत्तर मिलियन नौकरियां पैदा होंगी। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बेरोजगारी दर दूसरे विकासशील देशों के मुकाबले बेहद कम होगा। आज भारत में करीबन पैंसठ फीसद आबादी बेरोजगारी से जूझ रही है।
यह एक बड़ी राष्ट्रीय समस्या है, जिसका निदान करना अति आवश्यक है। हालांकि आने वाले समय में नई तकनीकों के साथ बदलाव की आकांक्षाएं जताई जा रही है। बस यह जरूरत होगी कि भारत उचित रणनीतियों और नीतियों के साथ चलता रहे।
तुषार रस्तोगी, रोहतक।
सुरक्षित सफर
बारिश में लोग वाहन तेजी से चलाते हैं। बारिश में सड़कों पर पानी भरे गड्ढे दिखाई नहीं देने से वाहन असंतुलित हो जाता है। सड़कों पर मिट्टी आ जाने से मार्ग फिसलन भरा हो जाता है। आमतौर पर लोग वाहन चलाते समय अपने मोबाइल को कान और कंधे के बीच दबाकर बातचीत करते हुए वाहन चलाते हैं। उनका ध्यान बातचीत पर ही ज्यादा रहता ही।
पीछे से आवाज लगाने वाले की वे नहीं सुनते। ऐसे में दुर्घटना संभव है। जरूरी बात भी करना हो तो थोड़ा-सा ठहर कर बात करना चाहिए। कई लोग मोबाइल पर बातचीत जोर-जोर से करते हैं। वाहन चलाते समय कानों में ‘हेडफोन’ लगा होने से भी पीछे की गाड़ियों के हार्न सुनाई नहीं देते हैं, जिससे परेशानी उठानी पड़ती है। मोबाइल के साथ अपनी सुरक्षा और दूसरों का भी खयाल रखना चाहिए।
परिवार के लोग हमारे सही-सलामत घर लौट आने की राह देख रहे होते हैं। लगातार बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के लिए निर्धारित गति से ज्यादा गति में, शराब पीकर वाहन चलाने और यातायात के नियमों का पालन नहीं करने से दुर्घटनाएं होती हैं। छोटे-छोटे उपायों का पालन करने से हम सड़क पर सुरक्षित सफर कर सकते हैं और दूसरे भी सुरक्षित रह सकते हैं।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, धार, मप्र।
आगे की राह
अधिकारियों या कर्मचारियों की गलती या फिर आवेदक की चूक के कारण किसी व्यक्ति के पहचान पत्र में गड़बड़ी की बड़ी शिकायतें आम रही हैं। यह किसी एक जिले का मामला न होकर कहीं भी देखा जा सकता है। मसलन, किसी पहचान पत्र में पति का नाम गलत होता है तो किसी में किसी और का नाम दर्ज होता है। इसी तरह से नाम की वर्तनी में भी गलतियां होती हैं।
ऐसे में स्कूल में बच्चों के दाखिले से लेकर जाति प्रमाण पत्र तक, निवासी प्रमाण पत्र से लेकर अन्य कई तरह के शासकीय कागजात बनाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। खासतौर पर महिलाओं के साथ किस स्तर की परेशानी आती होगी, यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में महिलाओं की उन्नति और तरक्की की बातें पीछे ही रह जाती हैं।
आज देश भर में आज बार-बार महिलाओं की आजादी, उनके प्रोत्साहन की बात तो की जा रही है, पर इस तरह की जो बातें सामने आ रही है, वे काफी दुखदाई हैं। जबकि देश के प्रधानमंत्री का एक सपना है कि सभी महिलाएं आगे बढ़ें और किसी भी तरह से पुरुषों से पीछे न रहें। बल्कि उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रगति के कार्य में योगदान दें।
मनमोहन राजावतराज, शाजापुर, मप्र।
मुकदमों का बोझ
हाल ही में लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार, देश की अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या पांच करोड़ से ज्यादा हो गई है। यह संख्या चिंताजनक है। न्यायालयों में जब तक बहुत मामूली बातों से लेकर राजनीतिक दुनिया के आरोप-प्रत्यारोप वाले मसलों पर याचिकाएं जिस तरह आती रही हैं, उसमें यह बोझ स्वाभाविक ही है।
ऐसे में मुकदमों की संख्या भी यों ही बनी रहेंगी। लंबित मुकदमों के जल्द निपटारे के लिए मुकदमों का वर्गीकरण किए जाने और अलग-अलग प्रकृति जैसे, पारिवारिक, राजनीतिक, आपराधिक, भ्रष्टाचार से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के लिए अलग-अलग अदालतों का गठन किया जाना चाहिए।
साथ ही मुकदमा लंबा खिंचने के सिलसिले को खत्म करने, मुकदमों की अधिकतम समयावधि तय करने जैसे नियम भी लागू करने चाहिए। इस तरह के कुछ अन्य व्यावहारिक उपायों के जरिए संभवत: अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या घटाई जा सके।
वसंत बापट, भोपाल।