हों भी क्यों नहीं, उन्होंने टी-20 विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ जीत दिलाने का काम ही ऐसा किया है, जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है। उन्होंने पाकिस्तान की निश्चित नजर आ रही जीत को अपने पक्ष में करके अपनी क्षमता पर सवाल उठाने वालों का एकदम से मुंह बंद कर दिया है। पर इस मामले में कप्तान रोहित शर्मा और कोच राहुल द्रविड़ की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने उनके लय में नहीं रहने के समय उनका पूरा समर्थन किया। विराट के शानदार प्रदर्शन से भारत को जीत दिलाने के बाद कप्तान रोहित शर्मा ने मैदान में दौड़कर जिस तरह से विराट को कंधे पर उठा लिया, उससे दोनों खिलाड़ियों के आपसी संबंधों को आसानी से समझा जा सकता है।

विराट कोहली को जब हार्दिक पांड्या जोड़ीदार के रूप में मिले, उस समय तक भारत 31 रन पर अपने चार प्रमुख बल्लेबाज खो चुका था। भारत की रन गति भी काफी कम थी। पर विराट ने बाद में कहा कि हार्दिक हमेशा कहते रहे कि हो जाएगा। हार्दिक के साथ 113 रन की साझेदारी के बाद भी भारत जीत के मामले में पिछड़ता नजर आ रहा था। विराट ने हैरिस रऊफ द्वारा फेंके 19वें ओवर की आखिरी दो गेंदों पर दो छक्के नहीं लगाए होते तो शायद भारत जीत तक नहीं पहुंच पाता। सचिन तेंदुलकर ने तो कहा कि बैकफुट पर जाकर रऊफ पर लांग आन पर लगाया छक्का तो दर्शनीय था। वैसे विराट की यह पूरी पारी ही बहुत दर्शनीय थी। इस मैच के बारे में आस्ट्रेलिया के पूर्व ओपनर मार्क वा ने कहा कि एमसीजी पर खेले गए इस मैच से बेहतर टी-20 मैच उन्होंने नहीं देखा।

संयुक्त अरब अमीरात में पिछले साल खेले गए टी-20 विश्व कप के दौरान ही इस प्रारूप से विराट ने कप्तानी छोड़ने की घोषणा कर दी थी। इसकी वजह यह लगती थी कि वे लगातार फार्म से जूझने की वजह से कप्तानी की जिम्मेदारी कम करना चाहते हैं, ताकि बल्लेबाजी पर ज्यादा केंद्रित हो सकें। लेकिन हमारे चयनकर्ताओं ने उन्हें एकदिवसीय कप्तानी से हटाकर उनके ऊपर और मानसिक दवाब बना दिया। इस कारण उनके खेल में विशेषज्ञों को तकनीकी खामियां नजर आने लगीं। वे अक्सर आफ स्टंप से बाहर निकलती गेंद पर स्लिप में कैच होने लगे। यही नहीं वे कई बार स्पिनरों का भी शिकार होने लगे। इन खामियों की वजह से पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने तो यह कहा भी कि विराट यदि उन्हें कुछ समय दें तो मैं उनकी इस खामी को सुधार सकता हूं।

विराट कोहली की खराब फार्म का सिलसिला दो-ढाई साल चला। इसमें तमाम कारणों ने अहम भूमिका निभाई। इसमें एक कारण उनका कप्तानी छोड़ने के बाद ताबड़तोड़ अंदाज में चौकों और छक्कों को लगाने वाला खेल न अपनाने का प्रयास करने की भी भूमिका रही। हम सभी जानते हैं कि विराट कोहली हमेशा ही शाट खेलने के लिए जाने जाते हैं। उनके खेलने की शैली बदलना उन्हें रास नहीं आया और वे जल्दी विकेट गंवाने लगे। उन्होंने इंग्लैंड दौरे पर पूरी तरह से विफल रहने के बाद फिर से अपनी खेलने की पुरानी शैली पर लौटने का फैसला किया। इस बीच वे मानसिक थकान को भी मिटाने में सफल रहे। इनकी वजह से ही क्रिकेटप्रेमियों को पुराना विराट मिल गया।

खिलाड़ियों की फार्म में गिरावट होना स्वाभाविक है। पर इस दौरान सहयोग करने के बजाय आलोचना करना कतई उचित नहीं है। वह भी उस खिलाड़ी की आलोचना, जिसने टीम इंडिया को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया हो। इस साल इंग्लैंड दौरे पर विराट के बल्ले से रन नहीं निकलने पर कुछ पूर्व क्रिकेटरों ने तो यहां तक कह दिया कि उनकी तो भारतीय टी-20 टीम में जगह ही नहीं बनती है। कपिल देव ने तो विराट के लगातार विफल रहने पर यह तक कह दिया था कि जब खराब प्रदर्शन पर अश्विन टीम से बाहर बैठ सकते हैं तो विराट क्यों नहीं।

यह सही है कि विराट मजबूत मानसिकता वाले खिलाड़ी हैं, इसलिए आलोचनाओं का उनके ऊपर भले ही दवाब नहीं पड़ता है पर इन बातों से कहीं ना कहीं नकारात्मकता आती ही है। इंग्लैंड दौरे के बाद अवकाश लेकर विराट ने एक माह तक बल्ले से दूरी बनाकर सबसे पहले अपने को दिमागी रूप से मजबूत बनाया। इसके बाद एशिया कप में भारत भले ही फाइनल में स्थान नहीं बना सका पर विराट ने टी-20 क्रिकेट में पहला शतक जमाकर अपने खोए भरोसे को पा लिया। यह भरोसा ही उनके पाकिस्तान के खिलाफ खेलते समय काम आया। विराट हमेशा ही लक्ष्य का पीछा करते समय बेहतरीन बल्लेबाजी के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने नाबाद 82 रन की पारी से क्रिकेट जगत को अपना चहेता बना लिया। यही वजह है कि विराट इसे अपने करिअर की सर्वश्रेष्ठ पारी मानते हैं।

पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई इस पारी से विराट अपनी पुरानी रंगत में तो आ गए हैं, इसका टीम इंडिया को फायदा मिलना लाजिमी है। साथ ही अर्शदीप सिंह ने अपने पहले और वह भी पाकिस्तान जैसी टीम के खिलाफ मुकाबले में तीन विकेट निकालकर भरोसा पा लिया है। मोहम्मद शमी भी धीरे-धीरे पूरी रंगत में आ जाएंगे। भारतीय टीम की कमी सिर्फ अंतिम ओवरों में रनों पर अंकुश नहीं लगा पाना दिख रही है। यह खामी दूर करने पर भारतीय टीम 2007 के बाद पहली बार चैंपियन बनकर लौटती दिख सकती है।