संदीप भूषण
दस साल आपसी खींचतान और सात साल कोर्ट की लड़ाई के बाद 2018 बिहार क्रिकेट के लिए एक नया सवेरा लेकर आया है। अब यहां के क्रिकेटरों को झारखंड नहीं बल्कि अपने राज्य का प्रतिनिधित्व रणजी जैसे राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में करने का मौका मिलेगा। मुमकिन है अब बिहार से भी कोई धोनी या विराट कोहली या हार्दिक पंड्या जैसा क्रिकेटर देश को मिलेगा।
विभाजन के बाद लगा ग्रहण
वर्ष 2000 में बिहार का विभाजन हुआ था। इससे अलग हुआ राज्य बना झारखंड। इसके बाद से बिहार क्रिकेट पर ग्रहण लगना शरू हो गया। याद करें कि 2004 में झारखंड की ओर से धोनी ने भारतीय क्रिकेट टीम में पदार्पण किया था, 2001 से पहले वह बिहार क्रिकेट संघ के खिलाड़ी थे। वर्ष 2001 में क्रिकेट झारखंड चला गया और बिहार में नए संघ की दावेदारी को लेकर जूतम पैजार शुरू हो गई। 1935 से चले आ रहे बिहार क्रिकेट संघ (बीसीए) के समांतर एसोसिएशन आॅफ बिहार क्रिकेट बना लिया गया। बाद में और भी संघ इस लड़ाई में कूद पड़े।
2008 में एसोसिएट राज्य का दर्जा
काफी जद्दोजहद के बाद 27 सितंबर 2008 बीसीसीआइ की आमसभा की बैठक में बीसीए को एसोसिएट राज्य का दर्जा मिला। इसके लगभग एक साल के भीतर ही एसोसिएट टूर्नामेंट के अंडर-19 में चैंपियन और अंडर-16 वर्ग में उपविजेता बनकर यहां के खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि अगर उन्हें मौका मिला तो देश के लिए भी खेल सकते हैं। हालांकि अभी पंछी को पर लगे ही थे कि बिहार क्रिकेट में अपनी हिस्सेदारी और कुर्सी को लेकर यहां के आकाओं ने जंग छेड़ दी और उन युवाओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
दो भाग में बंटा बीसीए
2010 में जहां राज्य के खिलाड़ी आगामी सीजन की तैयारी में लगे थे, वहीं दूसरी तरफ बीसीए दो धड़े में बंट गया। आपसी खींचतान इतनी बढ़ी कि पद की लड़ाई हाई कोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। अंत में कोर्ट ने 23 सितंबर 2015 को बीसीए का चुनाव संपन्न कराया और अब्दुल बारी सिद्दीकी इसके अध्यक्ष चुने गए।
लोढ़ा समिति का दबाव
2016 में बीसीए को बीसीसीआइ से पूर्ण मान्यता मिल गई। इसके साथ ही लोढ़ा समिति की सभी सिफारिशें लागू की और तब एक व्यक्ति एक पद के नियमों के मुताबिक, अब्दुल बारी सिद्दीकी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा।
जूनियर स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन
हाल के दिनों में बिहार क्रिकेट संघ के सचिव रविशंकर प्रसाद सिंह की देखरेख में राज्य के क्रिकेटरों ने जूनियर स्तर पर क्रिकेट टूर्नामेंटों में छाप छोड़ी है। बिहार अंडर-16 टीम रेकार्ड तोड़ प्रदर्शन करते हुए नार्थ ईस्ट जोन में चैंपियन बनी। राजकोट में नौ जनवरी से चार दिवसीय मुकाबला शुरू हुआ है। यहां वह अपने प्रदर्शन से विरोधी टीम को मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश करेंगे।

1936 से ही रणजी ट्रॉफी खेल रही है बिहार क्रिकेट टीम
2001 में बिहार की जगह झारखंड को बीसीसीआइ से मिली मान्यता
2008 में बिहार को एसोसिएट सदस्य को तौर पर मिली मान्यता
2016 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बिहार क्रिकेट को पूर्ण सदस्य का दर्जा

स्टेडियम के कायाकल्प का इंतजार
अगले सत्र से रणजी ट्रॉफी में अगुआई को लेकर बीसीए के सचिव रविशंकर प्रसाद सिंह काफी उत्साहित हैं। उन्होंने कहा कि जब से हमें जूनियर में खेलने की अनुमति मिली है तब से यह सुचारू रूप से चल रहा है। उन्होंने कहा कि अब सीनियर स्तर पर क्रिकेट को आगे बढ़ाने की चुनौती है जिसे हम स्वीकार करते हैं। बस हमें इंतजार है कि सरकार मोइनुल हक स्टेडियम का कायकल्प करा दे तो मैचों के आयोजन के लिए हमारे पास राजधानी में एक बेहतरीन विकल्प मौजूद होगा।
हुनर दिखाने का मिलेगा मौका
बिहार अंडर-16 टीम के मैनेजर और कई सालों से राज्य के क्रिकेटरों को तैयार करने की जिम्मेदारी निभा रहे सौरभ चक्रवर्ती ने कहा कि अब राज्य के खिलाड़ियों को हुनर दिखाने का मौका मिलगा। उन्होंने कहा कि अभी तक कई सालों की मेहनत से एक क्रिकेटर को तैयार किया जाता और अंत में वह झारखंड या पश्चिम बंगाल की टीम में शामिल हो जाता। ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने दूसरे राज्य की टीमों से खेलकर उनका मान बढ़ाया है। अब ऐसा नहीं होगा। उन्हें एक बेहतरीन मंच मिलेगा और उसका सही इस्तेमाल कर वे भारतीय टीम तक पहुंच सकेंगे।
सीएबी करेगा बीसीए को सहयोग
क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ बिहार के सचिव आदित्य वर्मा ने कहा कि हमारी लड़ाई राज्य के क्रिकेटरों को रणजी में खेलने को लेकर ही थी। मैं इसमें कामयाब रहा। अब हमारे क्रिकेटर दूसरे राज्यों पर निर्भर नहीं रहेंगे और अपने राज्य से खेलते हुए ही भारतीय टीम की दहलीज पर दस्तक दे सकेंगे। मैं इस पहल में बीसीए का हरसंभव सहयोग करने को तैयार हूं।
खिलाड़ियों की मदद के लिए तत्पर
अनु-आनंद स्पोर्ट्स फाउंडेशन के अध्यक्ष बिमल कुमार ने कहा कि बिहार के खिलाड़ियों के लिए रणजी में खेलना बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। पटना में सीनियर डिविजन क्रिकेट लीग आयोजित कर क्रिकेट को बढ़ावा देने का काम कर रहे बिमल ने कहा कि मैं पहले भी खिलाड़ियों की मदद करता रहा और बाद में भी उनकी मदद के लिए सदैव तत्पर रहूंगा। मेरा यही सपना है कि बिहार में क्रिकेट का विकास हो।