अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा क्षेत्रीय कूटनीति और भू-राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से बेहद महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। यह दौरा न केवल भारत-अफगानिस्तान संबंधों को नई दिशा देने का संकेत देता है, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, खासकर पाकिस्तान के लिए कई सवाल भी खड़े करता है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद किसी वरिष्ठ तालिबान नेता का यह पहला भारत दौरा है, और इसने नई दिल्ली और काबुल के बीच बढ़ते राजनयिक संपर्कों को रेखांकित किया है।

पाकिस्तान को परेशानी क्यों?

मुत्ताकी का भारत दौरा और भारत-अफगानिस्तान के बीच बढ़ता सहयोग पाकिस्तान के लिए कई कारणों से परेशानी का सबब है। सबसे पहले, भारत और अफगानिस्तान के बीच मजबूत होते रिश्ते पाकिस्तान की क्षेत्रीय प्रभाव को कमजोर करते हैं। अफगानिस्तान में भारत की परियोजनाएं, जैसे सड़क, स्कूल, अस्पताल और संसद भवन का निर्माण, हमेशा से पाकिस्तान को खटकती रही हैं।

तालिबान का भारत के साथ नजदीकी बढ़ाना इस्लामाबाद के लिए एक रणनीतिक झटका है, क्योंकि पाकिस्तान तालिबान को अपने प्रभाव क्षेत्र में मानता रहा है। दूसरा, चाबहार बंदरगाह का विकास और उसमें भारत-अफगानिस्तान सहयोग पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के लिए सीधा खतरा है।

चाबहार भारत को पाकिस्तान से गुजरे बिना अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है, जिससे पाकिस्तान की भू-राजनीतिक प्रासंगिकता कम होती है। मुत्ताकी की चाबहार पर टिप्पणी और भारत के साथ सहयोग की बात ने निश्चित रूप से इस्लामाबाद को असहज किया होगा। तीसरा, मुत्ताकी का यह आश्वासन कि तालिबान अफगान जमीन का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ नहीं होने देगा, पाकिस्तान के लिए एक परोक्ष चेतावनी है।

तालिबान के विदेश मंत्रीमुत्ताकी की भारत यात्रा पाकिस्तान के लिए एक झटका है और यह तालिबान शासन को अप्रत्यक्ष रूप से मान्यता देने की दिशा में एक अहम कदम है। यह भारत और तालिबान के संबंधों में एक नए दौर की शुरूआत है, जहां दोनों पक्ष अपने-अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए व्यावहारिक सहयोग पर जोर दे रहे हैं।

ब्रह्म चेलानी, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ

पाकिस्तान पर लंबे समय से तालिबान और अन्य आतंकी समूहों को समर्थन देने का आरोप लगता रहा है। भारत के साथ तालिबान की यह नजदीकी पाकिस्तान के लिए संकेत है कि तालिबान के साथ उसके रिश्ते अब नई तरह से लिखे जाएंगे। शायद यही वजह है कि पाकिस्तान इस समय बुरी तरह कसमसा रहा है। उसकी यह कसमसाहट हाल ही में काबुल पर हुए हवाई हमलों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों में भी नजर आई है।

तालिबान भारत से बेहतर रिश्ते क्यों चाहता है?

तालिबान के लिए भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाना कई कारणों से जरूरी है। पहला, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था संकट में है, और भारत जैसे बड़े आर्थिक साझेदार का समर्थन तालिबान के लिए महत्त्वपूर्ण है। भारत ने पहले भी अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भारी निवेश किया है और तालिबान इस सहायता को फिर से शुरू करने की उम्मीद रखता है।

दूसरा, तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता और वैधता की तलाश में है। भारत जैसे प्रभावशाली देश के साथ संबंध बनाना तालिबान को वैश्विक मंच पर स्वीकार्यता दिलाने में मदद कर सकता है। तीसरा, क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापार के लिए भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार है, खासकर चाबहार बंदरगाह के जरिए, जो अफगानिस्तान को समुद्री व्यापार के लिए एक वैकल्पिक रास्ता देता है। मालूम हो कि भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन इस दौरे से दोनों देशों के बीच रिश्तों को मजबूत करने की संभावनाएं खुलती हैं।

भारत और तालिबान के रिश्तों में जो सरगर्मी दिख रही है, वह भारत की विदेश नीति के व्यावहारिक और लचीले रवैए को दशार्ती है। इससे भारत को अफगानिस्तान में अपने हितों को बेहतर तरीके से आगे बढ़ाने और व्यक्त करने का मौका मिलता है। साथ ही, यह भारत को पाकिस्तान और तालिबान के बीच बढ़ते तनाव का कूटनीतिक रूप से लाभ उठाने की भी अनुमति देता है।

माइकल कुगलमैन, दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषक

मुत्ताकी ने दिल्ली में गर्मजोशी भरे स्वागत की सराहना की और भविष्य में और अधिक राजनयिक आदान-प्रदान की उम्मीद जताई। उनकी यह टिप्पणी कि काबुल ‘चरणबद्ध तरीके’ से भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने के लिए नए राजनयिक भेजेगा, यह दर्शाता है कि तालिबान भारत को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय साझेदार के रूप में देख रहा है। मुत्ताकी ने ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत और अफगानिस्तान से मिलकर इस बंदरगाह के विकास में रुकावटों को दूर करने की बात कही।

भारत के लिए अफगानिस्तान रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण

भारत के लिए अफगानिस्तान हमेशा से एक रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण देश रहा है। तालिबान के साथ सीमित लेकिन सकारात्मक संपर्क भारत को कई फायदे दे सकते हैं। अफगानिस्तान में स्थिरता भारत के लिए जरूरी है ताकि वहां से उत्पन्न होने वाली आतंकी गतिविधियां, खासकर पाकिस्तान समर्थित समूहों की, भारत को नुकसान न पहुंचाएं।

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