बिहार में मॉनसून की दस्तक के साथ ही राज्य पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। पूर्णिया में 20 से अधिक घर महानंदा नदी में समा चुके हैं। परिवारों के बेघर होने का सिलसिला शुरू हो चुका है। बिहार की कई नदियों का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल बाढ़ से राज्य के करीब 16 जिले और 32 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। इस साल भी बाढ़ की आशंका जताई जा रही है।

बिहार और बाढ़। इस जोड़ी का साथ इतना पुराना है कि अब ये बिहार वासियों के याददाश्त का हिस्सा बन चुका है। ये हर साल आता है, हर साल तबाही मचाता है और सरकार हर साल विफल हो जाती है। कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हथिया नक्षत्र का दोष बताकर पल्ला झाड़ते हैं, कभी फ्लैश फ्लड की बात कही जाती है, कभी नेपाल पर ज्यादा पानी छोड़ने का आरोप मढ़ दिया जाता है, कभी महानंदा नदी दोषी हो जाती है, तो कभी गंडक पर ठीकरा फोड़ दिया जाता है। बिहार में अब तक रही सरकारों के पास अपने बचाव के यही कुछ गिने चुने शस्त्र हैं। सवाल है कि हर साल आने वाले बाढ़ से बिहार किसी साल निपट क्यों नहीं ले रहा?

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आपदा या सालाना जलसा : लगभग हर साल बिहार में बाढ़ का आगमन जून-जुलाई तक हो जाता है। ये अक्टूबर तक चलता है। बाढ़ के पानी का स्तर जैसे-जैसे बढ़ता है, मीडिया में बाढ़ की खबरों का स्तर भी बढ़ने लगता है। फिर आता है मुख्यमंत्री का हवाई सर्वेक्षण वाला वो पल जिस दिन बाढ़ की खबरों का फ्लो सबसे अधिक होता है। बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा हर साल की जाने वाली रूटीन तैयारियों को देखकर यकीन करना मुश्किल होता है कि वो तैयारी बाढ़ से बचाव के लिए होती है या किसी जलसे के लिए? अगर तैयारी बाढ़ से बचाव के लिए होती है तो लोग बचते क्यों नहीं? आइए एक नज़र राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग की तैयारियों पर डालते हैं।

अप्रैल के आस-पास आपदा प्रबंधन विभाग राज्य के सभी जिलों को बाढ़ से बचाव की तैयारी के लिए एक नोटिस जारी करता है। मई आते-आते टेंडर निकाला जाता है। चिउड़ा, मीठा (गुड़), दवाई, जानवरों, जानवरों के लिए चारा, टेंट आदि प्रबंध शुरू किया जाता है। लोगों को बाढ़ के दौरान बचान के लिए किराये की नाव की व्यवस्था पहले ही कर ली जाती है। गोताखोरों की नियुक्ति होती है। कंट्रोल रूम बनाए जाते हैं। इन सब के लिए सरकार पैसा पानी की तरफ बहाती है।

जल संसाधन विभाग लगभग हर साल टूट जाने वाले तटबंधों को बचाने और कटाव को रोकने के लिए 600 करोड़ रुपये आवंटित करता है। इंजीनियर और ठेकेदार पर इसे खर्च कर देने का दबाव होता है। अब बताइए नहीं लग रहा है ये सालाना जलसे की तैयारी? अगर नहीं तो इतनी तैयारियों के बाद भी साल 2020 में बाढ़ की वजह से 5.5 लाख लोग बेघर कैसे हो गए। 16 से ज्यादा जिले और 80 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ प्रभावित कैसे हो गए?

बिहार के बाढ़ वाले आंकड़े : पत्रकार पुष्यमित्र की बहुचर्चित किताब ‘रुकतापुर’ में आपदा प्रबंधन विभाग हवाले से बिहार के बाढ़ का आंकड़ा मिलता है, जिसके मुताबिक देश के कुल बाढ़ प्रभावित इलाकों में से 16.5 फीसदी बिहार में पड़ता है। देश की कुल बाढ़ पीड़ित आबादी का 22.1 फीसदी बिहार में रहती है। पुष्यमित्र 1979 से 2012 तक के आंकड़ों की समीक्षा कर बताते हैं कि इन 33 वर्षों में हर साल 18 से 19 जिलों में बाढ़ आयी है। हर साल औसतन 5900 गांवों के 75 लाख लोग प्रभावित होते रहे हैं। इस दौरान हर साल 200 लोगों और 600 से ज्यादा जानवरों की जान गई है। हर साल तीन अरब का नुकसान होता आया है। हर साल करीब पौने दो लाख घर क्षतिग्रस्त होते रहे हैं। हर बार एक लाख लोगों को नया मकान बनवाना पड़ा है। हर साल करीब 80 हजार लोगों को अपने घरों की मरम्मत करानी पड़ी है। किसानों को इन वर्षों में हर साल 254 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है और सरकार संपत्ति को तकरीबन हर एक अरब का नुकसान होता आया है।