लोकसभा में बुधवार (9 अगस्त) को खासा हंगामा हुआ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मणिपुर में महिलाओं के साथ ज्यादती का जिक्र किया तो बीजेपी नेता स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने कश्मीरी पंडितों का नाम लेते हुए बताया कि किस तरह 90 के दशक में उनके साथ ज्यादती हुई थी और कांग्रेस चुप रही। ईरानी ने कश्मीरी पंडित महिला गिरिजा टिक्कू का भी जिक्र किया, जिन्हें 1990 में आतंकियों ने रेप के बाद बेरहमी से मार डाला था।
कौन थीं गिरिजा टिक्कू?
गिरिजा टिक्कू मूल रूप से कश्मीर के बारामुला जिले की रहने वाली थीं और उनकी शादी बांदीपुरा में हुई थी। टिक्कू, श्रीनगर की एक यूनिवर्सिटी में लाइब्रेरियन थीं। 1989 के आखिर में जब घाटी में कश्मीरी पंडितों को चुन-चुनकर मारा जाने लगा तो गिरिजा टिक्कू के परिवार ने अपना घर छोड़ दिया और जम्मू के शरणार्थी कैम्प में चले गए। टिक्कू का कुछ वेतन बकाया रह गया था।
आरी से दो टुकड़ों में काट दिया था
इसी दौरान जून में उन्हें किसी ने खबर दी कि घाटी में हालात थोड़ा सुधर गए हैं और वह अपनी बकाया सैलरी लेने आ सकती हैं। टिक्कू जम्मू से कश्मीर के लिए निकलीं। जब लौटने लगीं तो आतंकियों ने बस से सरेआम उनका अपहरण कर लिया और गैंगरेप किया। 5 आरोपियों में एक टिक्कू का पुराना सहकर्मी भी था। गैंगरेप के बाद आतंकियों ने गिरिजा टिक्कू को आरा मशीन से जिंदा दो टुकड़ों में काट दिया था।
गिरिजा टिक्कू की भतीजी सिद्धी रैना ने कुछ वक्त पहले उस घटना को कुछ यूं बयां किया था...
34 साल बाद खुला जज गंजू का केस
गिरिजा टिक्कू इकलौती नहीं थीं जिन्हें आतंकियों ने बेरहमी से मारा। बीजेपी नेता टीका लाल टपलू, जज नीलकंठ गंजू, दूरदर्शन के डायरेक्टर लासा कौल और समाजसेवी पीएन भट्ट जैसे तमाम कश्मीरी पंडितों के कत्ल से घाटी सहम गई थी। अब जम्मू कश्मीर पुलिस ने 34 साल पुराने जज नीलकंठ गंजू मर्डर केस की फिर जांच शुरू की है। पुलिस ने गंजू हत्याकांड से जुड़े किसी भी सुराग तक पहुंचने के लिए लोगों की मदद मांगी है।
क्या है गंजू हत्याकांड?
4 नवंबर 1989 को जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकियों ने रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू का दिन-दहाड़े कत्ल कर दिया था। उसे दिन गंजू हरि सिंह स्ट्रीट में जम्मू कश्मीर बैंक की ब्रांच में कुछ काम से गए थे। सेशन जज रहे गंजू ने अगस्त 1968 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक मकबूल भट्ट और एक और शख्स को इंस्पेक्टर अमरचंद मर्डर केस में मौत की सजा सुनाई थी।
यहीं से शुरू हुआ कश्मीरी पंडितों का पलायन
बाद में यह मामला जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट गया और 1982 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन मकबूल भट्ट को राहत नहीं मिली। फरवरी 1984 में मकबूल भट्ट को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी। आतंकियों ने भट्ट को तिहाड़ जेल से छुड़ाने का प्रयास भी किया था लेकिन सफल नहीं हो पाए थे। भट्ट को फांसी दिये जाने के बाद से ही जज गंजू वह आतंकियों के निशाने पर थे। नीलकंठ गंजू की हत्या के बाद ही एक तरीके से घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ था।