पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Former PM Chandrashekhar) अपने दो टूक अंदाज और जिंदादिली के लिए मशहूर थे। चंद्रशेखर की बिहार से आने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता ललित नारायण मिश्र से गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर जब जब मुसीबत में होते तो ललित नारायण मिश्र (Lalit Narayan Mishra) से मदद मांगते और मिलती भी। ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में ललित नारायण मिश्र से दोस्ती पर विस्तार से लिखा है।
बदमाशी अच्छा कर लेते हो…
राजकमल पब्लिकेशन से प्रकाशित अपनी आत्मकथा में चंद्रशेखर लिखतेहैं कि मुझे जब कोई काम होता या पैसे की जरूरत पड़ती तो ललित बाबू फौरन सहायता करते थे। मान लीजिए 4 लोगों को भाषण देने मुंबई जाना है और उनके ट्रेन या जहाज के टिकट की व्यवस्था करनी होती थी तो मैं ललित बाबू के पास पहुंचता था। उनसे कहता था पंडित जी, 5 लोगों का मुंबई का हवाई जहाज का टिकट चाहिए। वह मुझसे पूछते थे क्या है? और कहने लगे कि बदमाशी बहुत अच्छा कर लेते हो। लेकिन फौरन इंतजाम करवा देते थे।
मिला दस्तावेज तैयार करने का जिम्मा
चंद्रशेखर एक और मजेदार किस्सा लिखते हैं। वह कहते हैं कि जब कांग्रेस में टूट हुई, उस समय पार्टी का आर्थिक दस्तावेज बनाने के लिए एक समिति बनाई गई। उस समिति के अध्यक्ष पंडित केशव देव मालवीय बनाए गए। मालवीय जी अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक दस्तावेज तैयार कर लाए। लेकिन मैंने उसका हर पन्ना काट दिया, क्योंकि उसमें साम्यवाद को धीरे-धीरे लाने का प्रयास था। बाद में उन्होंने मुझे दस्तावेज तैयार करने की छूट दे दी गई। मेरी कमेटी में पीएन धर भी थे।
ऊंगली नहीं चल रही, अब काम नहीं हो पाएगा..
चंद्रशेखर (Chandrashekhar) लिखते हैं कि जाड़े के दिन थे। मैं, एसके गोयल और पीएन धर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में बैठकर दस्तावेज तैयार कर रहे थे। कांग्रेस के अधिवेशन का समय निकट आ गया था और उसी अधिवेशन में यह दस्तावेज पेश किया जाना था। एक रात 12-12.30 बजे के करीब एसके गोयल मुझे दूसरे कमरे में ले गए और कहने लगी कि पीएन धर की ऊंगली ही नहीं चल रही है। कह रहे हैं कि अब काम ही नहीं कर पाएंगे।
देर रात किया ब्रांडी के लिए फोन
मैंने पूछा क्या समस्या हो गई? तो कहा कि उनके लिए कहीं से ब्रांडी का एक पैग मंगवा दीजिये। मैं बड़े असमंजस में पड़ा। कहीं दोस्तों को फोन किया, जो पीने वाले थे। लेकिन सब ने कहा कि व्हिस्की तो है लेकिन ब्रांडी नहीं है। अंत में जब थक गया तो ललित बाबू को देर रात फोन मिला दिया।
चंद्रशेखर को झूठ भी बोलना पड़ा था
चंद्रशेखर लिखते हैं कि ‘मैंने ललित बाबू से फोन पर कहा- आपसे एक निवेदन करनी है। उन्होंने कहा इतनी रात को क्या जरूरत पड़ गई? मैंने कहा ब्रांडी चाहिए। उन्होंने छूटते ही कहा तुम बदमाशी कर रहे हो… कहां से बोल रहे हो। मैंने कहा पंडित जी नाराज मत होइए, एक आदमी बीमार है… उसको दवा के तौर पर देनी है। ललित नारायण मिश्र ने कहा, देखो सच बोलना… ब्रांडी दवा के लिए ही चाहिए ना? मैंने कहा- वरना आपसे ऐसी गुस्ताखी करता भला’।
चंद्रशेखर लिखते हैं कि थोड़ी देर बाद ललित नारायण मिश्र का पलटकर फोन आया। उन्होंने कहा, ब्रांडी ज्यादा तो नहीं है। दो-तीन पैग ही है। मेरी बेटी अपने बच्चे के लिए लाई थी। जाड़े में एक-एक चम्मच दवा की तरह देती है। बस इतनी ही है, कहो तो भिजवा दूं। मैंने कहा तुरंत भिजवा दीजिए, और देर रात उन्होंने ब्रांडी भिजवा दी।
आपको बता दें कि ललित नारायण मिश्र, साल 1973 से 1975 तक केंद्रीय रेल मंत्री थे। सुपौल में जन्में मिश्र की समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर एक बम धमाके में असमय निधन हो गया था।