Vallabh Ozarkar.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शिवसेना सांसद संजय राउत को समन जारी कर 28 जून को पूछताछ के लिए बुलाया है। ये समन पात्रा चॉल प्रोजेक्ट से जुड़े अनियमितता के मामले में जारी किया गया है। राउत को इस मामले में मंगलवार को साउथ मुंबई स्थित ईडी ऑफिस में जाकर बयान दर्ज कराना है। उनका बयान प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत दर्ज किया जाएगा। आइए जानते हैं क्या पात्रा चॉल प्रोजेक्ट और इसमें संजय राउत का नाम क्यों आया है?
क्या है पात्रा चॉल पुनर्विकास परियोजना? : सिद्धार्थ नगर, जिसे पात्रा चॉल के नाम से जाना जाता है, गोरेगांव के उत्तरी मुंबई में स्थित है। 47 एकड़ में फैले पात्रा चॉल में कुल 672 घर थे। साल 2008 में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) ने पात्रा चॉल के पुनर्विकास का काम शुरु किया। MHADA ने गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (GACPL) को क्षेत्र के पुनर्विकास और 672 किरायेदारों के पुनर्वास का कॉन्ट्रैक्ट दिया। इस त्रिपक्षीय समझौते में GACPL, MHADA और किरायेदार शामिल थे। इस बात को 14 साल बीत चुके हैं लेकिन चॉल के लोगों को आज तक अपना घर नहीं मिला।
ईडी का मामला क्या है? : त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार, जीएसीपीएल को पात्रा चॉल के 672 किरायेदारों को फ्लैट देना था, MHADA के लिए फ्लैट बनना थे और शेष क्षेत्र को निजी डेवलपर्स को बेचना था। ईडी का दावा है कि संजय राउत के करीबी सहयोगी प्रवीण राउत और गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन के अन्य निदेशकों ने MHADA को गुमराह किया और बिना कोई निर्माण किए फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) को नौ निजी डेवलपर्स को बेचकर 901.79 करोड़ रुपया इकट्ठा किया। इसके बाद जीएसीपीएल ने मीडोज नामक एक परियोजना शुरू की और फ्लैट खरीदारों से लगभग 138 करोड़ रुपये की बुकिंग राशि ली। ईडी का आरोप है कि इन ‘अवैध गतिविधियों’ से गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन ने कुल 1,039.79 करोड़ रुपये कमाए हैं।
एजेंसी ने दावा किया है कि प्रवीण राउत ने रियल एस्टेट कंपनी एचडीआईएल से 100 करोड़ रुपये लेकर संजय राउत के परिवार सहित उनके करीबी सहयोगियों, परिवार के सदस्य, उनकी व्यावसायिक संस्थाओं के विभिन्न खातों में ‘डायवर्ट’ किया है। ईडी के मुताबिक, 2010 में ‘अवैध गतिविधियों’ से प्राप्त रुपयों में से 83 लाख रुपया संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत के ट्रांसफर किया गया, जिसका इस्तेमाल उन्होंने दादर में एक फ्लैट खरीदने के लिए किया। इसके अलावा महाराष्ट्र के अलीबाग में किहिम बीच पर वर्षा राउत और स्वप्ना पाटकर के नाम पर कम से कम आठ प्लॉट खरीदे गए हैं।
पात्रा चॉल प्रोजेक्ट में गड़बड़ी क्या हुई? : समझौते के अनुसार, डेवलपर को प्रोजेक्ट पूरा होने तक सभी 672 किरायेदारों को हर महीने किराए का भुगतान करना था। लेकिन किराए का भुगतान केवल 2014-15 तक ही किया गया था। इसके बाद किराएदारों ने किराए का भुगतान न होने और प्रोजेक्ट पूरा होने में देरी की शिकायत शुरु कर दी। लगभग उसी समय यह पता चला कि प्रवीण राउत और जीएसीएल के अन्य निदेशकों ने MHADA को गुमराह किया है और 672 विस्थापित किरायेदारों के पुनर्वास और MHADA हिस्से का निर्माण कराए बिना एफएसआई को नौ निजी डेवलपर्स के हाथों 901.79 करोड़ रुपये में बेच दिया। इसके बाद GACL ने मीडोज नामक एक प्रोजेक्ट शुरू किया और फ्लैट खरीदारों से लगभग 138 करोड़ रुपये की बुकिंग राशि ले ली।
किराए का भुगतान न करने, प्रोजेक्ट की देरी और अनियमितताओं को लेकर MHADA ने डेवलपर 12 जनवरी, 2018 को टर्मिनेशन नोटिस जारी किया। इस नोटिस के खिलाफ नौ डेवलपर्स जिन्होंने जीएसीएल से एफएसआई खरीदा था, उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में केस कर दिया। इस तरह मामला कोर्ट पहुंचने के बाद पुनर्विकास परियोजना पर रोक दिया गया और 672 किरायेदारों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया।
अभी प्रोजेक्ट की क्या स्थिति है? : साल 2020 में महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र के रिटायर्ड मुख्य सचिव जॉनी जोसेफ के नेतृत्व में एक सदस्यीय समिति का गठन किया। इस समिति को 672 किरायेदारों के पुनर्वास और किराये के भुगतान के लिए समाधान बताना था। समिति की सिफारिशों और MHADA के सुझाव के आधार पर राज्य कैबिनेट ने जून 2021 में पात्रा चॉल के पुनर्विकास को फिर से मंजूरी दी। जुलाई 2021 में इसके लिए सरकारी प्रस्ताव जारी किया गया।
इस साल 22 फरवरी को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आदेश पर रुके हुए निर्माण कार्य को दोबारा शुरू किया गया था। एक अधिकारी ने बताया है कि अब MHADA पूरी परियोजना पर एक डेवलपर के रूप में काम करेगा और 672 किरायेदारों को जल्द से जल्द फ्लैट देगा।