75 वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर रियासत का भारत में विलय हुआ था। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने ‘विलय पत्र’ पर हस्ताक्षर कर किया था। हालांकि तब कश्मीर का मसला पूरी तरह हल नहीं हो पाया था, जिसके लिए आज भी भाजपा समेत तमाम हिंदू संगठन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हैं। सवाल उठता है कि नेहरू को ‘कश्मीर संकट’ के लिए दोषी ठहराना कितना सही है, और इस क्षेत्र को लेकर उनकी क्या नीति थी?

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in करें

नेहरू को थी कबायली हमले की खबर

आजादी के बाद जब हरि सिंह को पाकिस्तान या भारत में से किसी एक में शामिल होने को कहा गया, तो उन्होंने मौन साध लिया। वह स्वतंत्र रहने के पक्ष में थे। दिलचस्प यह है कि पाकिस्तान के जिस कबायली हमले के बाद हरि सिंह अपनी रियासत को भारत में मिलाने को मजबूर हुए, उस हमले की जानकारी नेहरू को पहले से थी। इंटेलिजेंस यूनिट ने नेहरू को पहले ही बता दिया था कि पाकिस्तान कबायली हमले की फिराक में है।

नेहरू ने इसे लेकर  27 सितंबर 1947 को पटेल को चिट्ठी ल‍िखी थी, ”कश्मीर की परिस्थिति तेजी से बिगड़ रही है। शीतकाल में कश्मीर का संबंध बाकी भारत से कट जाएगा। हवाई मार्ग भी बंद हो जाता है, पाकिस्तान कश्मीर में घुसपैठियों को भेजना चाहता है, महाराजा का प्रशासन इस खतरे को झेल नहीं पाएगा। वक्त की जरूरत है कि महाराजा, शेख अब्दुल्ला को रिहा कर नेशनल कॉन्फ्रेंस से दोस्ती करें।”

शेख अब्दुल्ला को रिहा करवाने के पीछे भी नेहरू की रणनीति थी, जिसका जिक्र उनके इसी पत्र में मिलता है। वह पटेल को लिखते हैं, ”शेख अब्दुल्ला की मदद से महाराजा पाकिस्तान के खिलाफ जनसमर्थन हासिल करें, शेख अब्दुल्ला ने कहा है कि वो मेरी सलाह पर काम करेंगे।”

हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला को 1946 में राजद्रोह के मामले में तीन साल के लिए जेल भेज दिया था। 1932 में अब्दुल्ला ने हरि सिंह की नीतियों के खिलाफ राज्य के मुसलमानों को एकजुट कर ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का गठन किया था, जो बाद में ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’ बना। अब्दुल्ला हरि सिंह से एक ऐसे प्रतिनिधि सरकार की मांग कर रहे थे, जो सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर बनी हो। इसी दौरान वह नेहरू के संपर्क में आए थे और अच्छे दोस्त बन गए।

नेहरू की चिट्ठी के बाद पटेल ने हरि सिंह से संपर्क किया और 29 सितंबर 1947 को अब्दुल्ला रिहा कर दिए गए। जब कबाइलियों ने हमला किया, तब राजा ने शेख अब्दुल्ला को ही अपने प्रतिनिधि के रूप में सहायता के लिए दिल्ली भेजा था। और इस तरह जिद पर अड़े हरि सिंह को विलय पत्र पर हस्ताक्षर के लिए राजी होना पड़ा।

कश्मीर को लेकर नेहरू का नजरिया

नेहरू विश्व राजनीति की गहरी समझ रखते थे। कोल्ड वॉर तो जारी ही था। उन्हें उससे आगे की भी चिंता थी। यही वजह थी कि वह कश्मीर को सिर्फ भारत-पाकिस्तान के सीमा विवाद के रूप में नहीं देखते थे।

तब कश्मीर एक ऐसा राज्य था जिसकी सीमाएं सोवियत संघ, चीन, अफगानिस्तान पाकिस्तान और भारत जैसे पांच बड़े देशों से जुड़ी थी। उन्हें कश्मीर की भौगोलिक स्थिति के गर्भ में छिपे वैश्विक राजनीति और युद्ध का अखाड़ा नजर आ रहा था। उन्हें आशंका थी कि अगर कश्मीर पाकिस्तान के हिस्से जाता है, तो अमेरिका उसे सोवियत संघ से भिड़ने का मंच बना देगा।  

2 नवंबर 1947 को राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए नेहरू ने कहा था, ”कश्मीर एक ऐसा भू-भाग है, जिसकी सीमाएं बड़े देशों को छूती हैं। इसलिए वहां हो रही गतिविधियों में हमें दिलचस्पी दिखानी चाहिए।”

Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा विशेष समाचार (Jansattaspecial News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
First published on: 27-10-2022 at 19:30 IST