आपातकाल के बाद हुए 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने जीत हासिल की थी। इस चुनाव में रामनरेश यादव आजमगढ़ से जीते थे। 3 महीने बाद ही जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी कामयाबी हासिल की थी और रामनरेश यादव को मुख्यमंत्री चुना गया था।
23 जून, 1977 को रामनरेश यादव ने उत्तर प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। तब मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए हुई दौड़ में उनके अलावा लालगंज सीट (सुरक्षित) से चुनाव जीते रामधन भी शामिल थे। रामधन कांग्रेस के टिकट पर दो बार पहले भी चुनाव जीत चुके थे।
चौधरी चरण सिंह ने राम नरेश की उम्मीदवारी का समर्थन किया था जबकि एक और दिग्गज नेता चंद्रशेखर दलित समुदाय से आने वाले रामधन के समर्थन में खड़े हुए थे। रामनरेश यादव मुख्यमंत्री बने थे और बनारसी दास को सर्वसम्मति से विधानसभा का स्पीकर चुना गया था।
1977 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने दो-तिहाई से ज्यादा सीटें जीती थी और उसके द्वारा जीती गई सीटों का आंकड़ा 351 था। कांग्रेस को तब सिर्फ 46 सीटों पर जीत मिली थी। सीपीआई को 9 और सीपीएम को एक सीट मिली थी।

5 सदस्यों वाले मंत्रिमंडल के मुखिया रामनरेश ने गरीबों और वंचित तबके के कल्याण और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए बहुत सारे कदम उठाए।
ओबीसी के लिए लागू किया 15% आरक्षण
राम नरेश यादव 1 साल 10 महीने तक मुख्यमंत्री रहे। उनका कार्यकाल 23 जून 1977 से 27 फरवरी 1979 तक रहा। इस दौरान उन्होंने सरकारी नौकरियों में ओबीसी वर्ग के लिए 15% आरक्षण को लागू किया। इससे उत्तर प्रदेश की सरकारी नौकरियों में ओबीसी वर्ग भागीदारी बढ़ी।
आपातकाल के दौरान जेल में रहे थे यादव
रामनरेश यादव का जन्म 1928 में हुआ था और उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) से अपनी एमए और एलएलबी की डिग्री पूरी की थी। उन्होंने 1953 में आजमगढ़ में लॉ की प्रैक्टिस भी की थी। रामनरेश आपातकाल के दौरान 19 महीने तक जेल में रहे थे। इसके अलावा भी वह कई बार जेल गए थे।
पूर्व मुख्यमंत्रियों जैसे- सीबी गुप्ता, चरण सिंह और हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस से शुरू किया था लेकिन रामनरेश यादव के राजनीतिक करियर की शुरुआत चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाले भारतीय लोकदल (बीएलडी) से हुई थी और अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम दिनों में वह कांग्रेस में थे।

‘पूर्वांचल का गांधी’ कहे जाते थे राम नरेश
अपनी सादगी की वजह से उन्हें ‘पूर्वांचल का गांधी’ कहा जाता था लेकिन उनका राजनीतिक करियर मध्य प्रदेश में हुए व्यापम भर्ती घोटाले के आरोपों की वजह से खत्म हुआ था। रामनरेश 2011 से 2016 के बीच मध्य प्रदेश के राज्यपाल थे।
जून, 1977 में हुए चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा का पहला सत्र 12 जुलाई, 1977 को शुरू हुआ था। इसमें राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में लोकायुक्त अधिनियम को तत्काल प्रभाव से लागू करने की घोषणा की थी। यह अधिनियम मुख्यमंत्री को छोड़कर हर सरकारी कर्मचारी पर लागू होता था। हालांकि राज्यपाल का कहना था कि उनकी सरकार चाहती है कि मुख्यमंत्री के दफ्तर को भी इस अधिनियम के तहत लाया जाए।
रामनरेश ने जब मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी तो मुलायम सिंह यादव जैसे नेता जो 1967 से विधायक थे, उन्हें भी मुख्यमंत्री पद के लिए नजरअंदाज कर दिया गया था। क्योंकि चौधरी चरण सिंह रामनरेश के पक्ष में थे।
मुख्यमंत्री का पद संभालने के लिए जब रामनरेश ने आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया तो उन्होंने एटा की निधौलीकलां सीट से विधानसभा का उपचुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे।

संघ की शाखाओं को लेकर दिया था आदेश
15 फरवरी, 1979 को रामनरेश ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हें इसलिए इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि जनता पार्टी के ऐसे सदस्य जो पहले भारतीय जन संघ में थे, उन्होंने 11 फरवरी 1979 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने जुड़ाव की वजह से रामनरेश की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। यह इस्तीफा ‘दोहरी सदस्यता’ के चलते हुआ था।
14 फरवरी, 1979 को रामनरेश यादव की सरकार ने एक आदेश जारी किया था कि बिना अनुमति के सार्वजनिक स्थानों पर संघ की शाखाएं नहीं लगाई जा सकती।

चरण सिंह का पकड़ा था हाथ
जब जनता पार्टी टूटी तो रामनरेश चरण सिंह के साथ चले गए और जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर उन्होंने एक बार फिर निधौलीकलां सीट से चुनाव लड़ा। हालांकि तब उन्हें हार मिली थी। 1985 में वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर शिकोहाबाद की सीट से चुनाव जीते।
28 मार्च, 1988 को वह लोकदल के उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा के लिए चुने गए। 1980 के आखिर में उत्तर भारत में ओबीसी आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा था। उस दौरान रामनरेश कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए।
1996 के विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर फूलपुर सीट से चुनाव जीते। 2002 के विधानसभा चुनाव में वह फिर से कांग्रेस के टिकट पर फूलपुर से जीते और 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने आजमगढ़ से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 2011 में जब केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार थी तो उन्हें मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था।

यादव नेताओं का उभार
1970 के बाद से ही मुलायम सिंह यादव बलराम सिंह यादव चंद्रजीत यादव और रामनरेश उत्तर प्रदेश में बड़े यादव नेता के रूप में उभरे और ये कई मौकों पर एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी भी थे। 1980 के अंत में बलराम यादव को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया तब मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश जनता दल की कमान मिली थी लेकिन मुलायम सिंह यादव को जनता दल का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से रामनरेश यादव नाराज हो गए और उन्होंने जनता दल से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
रामनरेश यादव को उनकी सादगी के लिए जाना जाता था। जब वह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए राजभवन जा रहे थे तो रिक्शे से गए थे और जब वह राज्यपाल को इस्तीफा देकर घर लौटे तब भी उन्होंने यही किया था हालांकि जीवन के आखिरी सालों में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। 22 नवंबर, 2016 को लखनऊ में उनका निधन हो गया।