UGC Chairperson M. Jagadesh Kumar Interview: पिछले दिनों UGC (University Grants Commission) की एक ड्राफ्ट गाइडलाइन से यह भ्रम फैला कि विश्वविद्यालयों से आरक्षण को खत्म किया जा रहा है। हालांकि कुछ ही घंटों में शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने स्पष्ट कर दिया कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। ड्राफ्ट गाइडलाइन में लिखा था कि रिजर्व कैटेगरी की खाली रह गईं फैकल्टी सीटों को जनरल कैटेगरी से भरा जाएगा।
जनसत्ता डॉट कॉम के कार्यक्रम बेबाक में संपादक विजय कुमार झा से बातचीत में यूजीसी के चेयरमैन एम. जगदीश कुमार ने बताया कि आखिर यह आरक्षण खत्म करने की गलत जानकारी फैली कैसे?
जगदीश कुमार ने पूरे मामले को विस्तार से समझाते हुए कहा, “हमारे सेंट्रल यूनिवर्सिटी सिस्टम में डी-रिजर्वेशन है ही नहीं। आगे भी ऐसा नहीं होगा। यूजीसी में एक पुराना गाइडलाइन था Implementation Of Reservation In University, उसे रिवाइज करने के लिए हमने एक कमेटी बनाई। ये कमेटी इसलिए बनानी पड़ी क्योंकि पिछले कुछ सालों में आरक्षण की नीति में कुछ बदलाव आए थे। जैसे 2019 में केंद्र सरकार ने Central Educational Institutions (Reservation in Teachers’ Cadre) Act पास किया था। इसके तहत ओबीसी को प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर लेवल पर आरक्षण दिया जाता है। बाद में इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को भी जोड़ा गया। पहले हमने आरक्षण लागू करने के लिए विश्वविद्यालय के अलग-अलग डिपार्टमेंट को अलग-अलग यूनिट मानते थे लेकिन बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद पूरे विश्वविद्यालय को सिंगल यूनिट मानकर रिजर्वेशन रोस्टर बनाने लगे। ये सब 2006 के पुराने गाइडलाइन में नहीं था, इसलिए उसे रिवाइज और रिव्यू कर, विश्वविद्यालयों को गाइडलाइन भेजना था, ताकि आरक्षण 2019 के एक्ट के तहत ठीक से लागू हो सके। लेकिन एक्सपर्ट कमेटी ने गलती से गाइडलाइन में डी-रिजर्वेशन की जानकारी डाल दी। इसलिए हमने स्पष्टीकरण भी जारी किया कि ये केवल ड्राफ्ट गाइडलाइन है। फाइनल गाइडलाइन में डी-रिजर्वेशन वाली पूरी बात निकाल दी जाएगी। इस बारे में कोई संदेह नहीं रखना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालयों में कोई डी-रिजर्वेशन नहीं होगा, यह निश्चित है।”
बता दें कि ड्राफ्ट गाइडलाइन सार्वजनिक होते ही डी-रिजर्वेशन की बात का पुरजोर विरोध सामने आया और इसे बहाली में आरक्षण खत्म करने के कदम के रूप में बताया गया। हंगामे के मद्देनजर शिक्षा मंत्रालय ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल (अब एक्स) से सफाई देते हुए लिखा था कि हायर एजुकेशन इंस्टिट्यूट्स में आरक्षण का लाभ ‘रिजर्वेशन इन टीचर्स कैडर एक्ट 2019’ के तहत मिलता रहेगा। यूजीसी ने शिक्षा मंत्रालय के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा कि डी-रिजर्वेशन नहीं किया जा रहा है।
बता दें कि अब यूजीसी की वेबसाइट पर से ड्राफ्ट गाइडलाइन हटा ली गई है। कहा जा रहा है कि इस पर प्रतिक्रिया देने की मियाद खत्म हो जाने के चलते इसे हटा लिया गया है। यूजीसी चेयरमैन ने जनसत्ता.कॉम से कहा था कि फाइनल गाइडलाइन में ‘डी-रिजर्वेशन’ से संबंधित कोई भी बात शामिल नहीं की जाएगी।
आरक्षण को लेकर यूजीसी चेयरमैन की क्या है राय?
यूजीसी का चेयरमैन बनने से पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के वाइस चांसलर (VC) रहे एम. जगदीश कुमार का मानना है कि आरक्षण से विद्यार्थियों और उनके परिवार की जिंदगी में व्यापक स्तर पर सकारात्मक बदलाव आया है। वह आरक्षण को लेकर कहते हैं, “हमारे देश में विद्यार्थी अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं। ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं, सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं, इसलिए हायर एजुकेशन में अवसर की समानता सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी बनती है। यही वजह है कि SC, ST, EWS और सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण दिया जाता है। सभी हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन का यह शीर्ष उद्देश्य होता है कि सभी आरक्षित सीटों को भरा जाए, कोई सीट खाली न रह जाए। इसलिए जब हम एडमिशन प्रोसेस शुरू करते हैं तो कई राउंड में इसकी कोशिश करते हैं। मैं जेएनयू के अपने अनुभव से बता सकता हूं कि वहां विद्यार्थी ऐसे-ऐसे बैकग्राउंड से आते हैं कि क्या कहा जाए… लेकिन जेएनयू में पढ़ने के बाद वे आत्मविश्वास और ज्ञान से भर जाते हैं। जेएनयू से निकलने के बाद वे समाज में अपना योगदान देते हैं। सिर्फ विद्यार्थियों की ही जिंदगी नहीं बदलती, बल्कि उनके परिवार की भी सामाजिक आर्थिक स्थिति बेहतर हो जाती है। शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के रूप में लागू अफरमेटिव एक्शन से बड़े स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हमारे विद्यार्थियों की जिंदगी बदली है।”
दुनिया के टॉप 50 विश्वविद्यालयों में भारतीय संस्थान क्यों नहीं?
क्यूएस की ताजा यूनिवर्सिटी रैंकिंग के मुताबिक एशिया के टॉप 100 एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन में सिर्फ सात भारतीय संस्थान हैं। उसमें से भी पांच आईआईटी हैं। ऐसी स्थिति क्यों हैं, आजादी के 75 साल बाद भी हम टॉप 10 में क्यों नहीं आ पा रहे हैं?
इस सवाल के जवाब में यूजीसी चेयरमैन बताते हैं कि भारतीय संस्थानों के एजुकेशन की क्वालिटी तो अच्छी है लेकिन ग्लोबल रैंकिंग का पैमाना अलग होने की वजह से हम पिछड़ जाते हैं। एम. जगदीश कुमार कहते हैं, “ज्यादातर लोग यही सोचते हैं कि हमारे यहां इतने अच्छे संस्थान हैं फिर भी हम वर्ल्ड रैंकिंग में जगह क्यों नहीं बना पाते। इसके लिए हमें देखना चाहिए कि वर्ल्ड रैंकिंग तय करने वाले किस पैरामीटर का इस्तेमाल करते हैं। दुनिया में करीब 20 संस्थान हैं, जो वर्ल्ड रैंकिंग निकालते हैं। वर्ल्ड रैंकिंग तय करने में 40 प्रतिशत वेटेज पीयर परसेप्शन (गुणवत्ता से जुड़े आंकड़ों या सवालों पर आधारित सर्वे) का है। 10 प्रतिशत वेटेज एम्पलॉयर के परसेप्शन का होता है। लोगों को ईमेल जाता है। उसमें लोग जवाब देते हैं। उस रेटिंग का रैंकिंग तय करने में इस्तेमाल होता है। इस तरह रैंकिंग तय करने में 50 प्रतिशत काम परसेप्शन के आधार पर हो रहा होता है। वैज्ञानिक तौर पर परसेप्शन को मापना बहुत कठिन है। इसके अलावा इस बात से भी फर्क पड़ता है कि हमारे संस्थानों में विदेशी फैकल्टी और विद्यार्थी कितने हैं, साइटेशंस कितने हैं आदि। फिलहाल भारत में 45000 विदेशी विद्यार्थी हैं। धीरे-धीरे संख्या बढ़ेगी, जिसका असर वर्ल्ड रैंकिंग में भी दिखेगा।”
यूजीसी चेयरमैन आगे कहते हैं, “डिसिप्लिनरी रेटिंग में भारतीय संस्थान अच्छे रैंक हासिल करते हैं। जैसे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के मामले में आईआईटी टॉप 100 में हैं। आईआईटी दिल्ली टॉप 50 के आसपास है। एंथ्रोपोलॉजी के मामले में जेएनयू दुनिया के टॉप 50 संस्थानों में शामिल है। लेकिन जब पूरे यूनिवर्सिटी के रूप में मापा जाता है तो हम टॉप 100-200 में नजर नहीं आते हैं। इसकी वजह हमारे लिमिटेशन और उनके पैरामीटर्स हैं।”