मोहनदास करमचंद गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या के बाद 13 मई, 1948 को सरकारी अधिसूचना जारी कर लाल किले (Red Fort) को विशेष अदालत में तब्दील किया गया था। मामले की सुनवाई (Mahatma Gandhi Murder Case) औपचारिक रूप से 27 मई, 1948 को शुरू हुई थी।
गांधी हत्या (Assassination of Mahatma Gandhi) मामले में नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) और विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) समेत नौ लोग अभियुक्त थें। सावरकर को सुनवाई शुरू होने से दो दिन पहले 25 मई को हवाई जहाज से मुंबई से दिल्ली लाया गया था। मुकदमा शुरू होने के ठीक एक दिन सावरकर का जन्मदिन था। वह 28 मई, 1948 को पैंसठ साल के हुए थे।
मुकदमा शुरू होने से पहले सावरकर की मांग
27 मई, 1948 के दिन लाल किला में मुकदमा शुरू होने को था। दिल्ली में झुलसा देने वाली गर्मी थी, लेकिन कोर्ट रूम में लोग भरे हुए थे। अभी सुनवाई शुरू होती उससे पहले ही सावरकर के वकील एलबी भोपटकर ने जज आत्मा चरण के सामने एक विशेष डिमांड रख दी।
भोपटकर ने सावरकर के खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कहा, मेरे मुवक्किल के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें लकड़ी के तख्ते पर बैठाने की बजाए आरामदेह कुर्सी उपलब्ध कराई जाए।
दरअसल किले की सबसे ऊपरी मंजिल को अदालती कक्ष का रूप दिया गया था। लकड़ी का एक चबूतरा जज और अदालत के रिपोर्टर की सीट थी। कमरे में बाईं ओर खड़े होकर गवाहों को अपने बयान दर्ज कराने थे। वहीं दाईं ओर लकड़ी के तख्तों पर अभियुक्तों के बैठने की व्यवस्था की गई थी।
लेकिन सावरकर के वकील की मांग थी कि उनके मुवक्किल को आरामदेह कुर्सी दी जाए। पेंगुइन से दो खंडों में प्रकाशित सावरकर की जीवनी के लेखक विक्रम संपत ने अपनी किताब में बताया है कि जज ने सावरकर के कमजोर स्वास्थ्य को देखते हुए वकील भोपटकर की प्रार्थना तुरंत स्वीकार कर ली।
कोर्ट में खामोश रहते थे सावरकर
विक्रम संपत ही लिखते हैं कि सावरकर कोर्ट में धोती, कमीज और खुले कॉलर वाला कोट, ऊंची टोपी, चश्मा और चप्पल पहनकर पहुंचते थे। सुनवाई के दौरान वह कभी-कभार ही अपने वकीलों भोपटकर या गणपत राय से बात करते थे, बाकी समय खामोश बैठे रहते थे। वहीं दूसरे अभियुक्त अक्सर एक दूसरे से हंसी-मजाक करते नजर आते थे।
लाल किला और ऐतिहासिक मुकदमें
दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला मुगलों के पतन के बाद कई महत्वपूर्ण मुकदमों का गवाह बना। वहां 1857 की क्रांति के बाद आखिरी मुगल बहादुरशाह जफर पर मुकदमा चला। 1945 में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन छेड़ने वाले सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के पकड़े गए सिहापियों पर केस चला। आजादी के बाद लाल किला में पहला मुकदमा मोहनदास मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या का चला था।