राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने सुभाषचंद्र बोस की जयंती (23 जनवरी) मनाने की घोषणा की है। बोस (Subhas Chandra Bose) को श्रद्धांजलि देने के लिए खुद आरएसएस चीफ मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) पश्चिम बंगाल का पांच दिवसीय दौरा करेंगे। इस घोषणा के बाद एक बार फिर सुभाष चंद्र बोस और हिंदुत्ववादी विचारधारा के बीच समानता और असमानता की बहस तेज हो गयी है।
बोस ने सावरकर को बताया था बेखबर
हिंदुत्व की परिभाषा देने वाले विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) को लेकर सुभाष चंद्र बोस ने अपनी किताब कई बातें लिखी हैं। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी किताब ‘द इंडियन स्ट्रगल’ (The Indian Struggle) में सावरकर और जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) के साथ एक मुलाकात का वर्णन किया है। दोनों से मुलाकात के बाद बोस इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) और मुस्लिम लीग (All-India Muslim League) की राजनीति में बहुत समानता है। दोनों का राजनीतिक आधार एक है।
बोस लिखते हैं, “मिस्टर जिन्ना तब केवल यही सोच रहे थे कि अंग्रेजों की मदद से पाकिस्तान (भारत का विभाजन) के अपने विचार को कैसे साकार किया जाए।भारतीय स्वतंत्रता के लिए कांग्रेस के साथ संयुक्त लड़ाई लड़ने का विचार उन्हें रास नहीं आया।.. . मिस्टर सावरकर अंतरराष्ट्रीय स्थिति से बेखबर लग रहे थे। वह केवल यह सोच रहे थे कि कैसे भारत के हिंदू ब्रिटेन की सेना में शामिल होकर सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। इन साक्षात्कारों से मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि न तो मुस्लिम लीग से और न ही हिंदू महासभा से कुछ भी उम्मीद की जा सकती है।” सुभाष चंद्र बोस ने यह बात ‘द इंडियन स्ट्रगल’ के पेज नंबर 384 पर लिखी है।

बोस ने ऐसा क्यों लिखा?
द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों की भर्ती के लिए हिंदू महासभा बड़े स्तर पर युद्ध परिषदों का गठन किया था। इसके जरिए ही हिंदू महासभा अंग्रजों के लिए सैनिकों की बहाली कर रहा था। सावरकर ने अपने नेतृत्व में बड़े पैमाने पर ब्रिटिश सेना में हिंदुओं की भर्तियां करवाईं। रिक्रूट हुए लोगों में गांधी हत्या में शामिल गोपाल गोडसे और नारायण आप्टे भी शामिल थे।
मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चलाई सरकार
कांग्रेस द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों को झोंके जाने और पूर्ण आजादी का वादा न मिलने से नाराज थी। वह विभिन्न राज्यों में अपनी सरकार भंग कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ चलाने की तैयारी कर रही थी। ठीक उसी दौरान सावरकर की अगुआई वाली हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सिंध, उत्तर पश्चिमी प्रांत और बंगाल में सरकार बनाई थी।
बंगाल में हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के गठबंधन से बनी सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी वित्त मंत्री थे। उस सरकार के प्रीमियर यानी प्रधानमंत्री वही फजलुल हक थें, जिन्होंने मुस्लिम लीग के भीतर भारत के विभाजन का प्रस्ताव पेश किया था।
भारत छोड़ो आंदोलन का किया बहिष्कार
सावरकर की नेतृत्व वाली हिंदू महासभा ने अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुए देशव्यापी आंदोलन ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का बहिष्कार किया था। भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने पर सावरकर ने हिंदू महासभा के सभी सदस्यों से इसका बहिष्कार करने का आग्रह किया। उन्होंने निर्देश दिया था कि जो नगर पालिकाओं, स्थानीय निकायों, विधायिकाओं, या सेना में सेवारत हैं… वह अपने पदों पर बने रहें।