कोलकाता का टाउन हॉल कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। रोमन-डोरिक वास्तुकला शैली में निर्मित टाउन हॉल भारत में अंग्रेजी शासन के उरूज से लेकर उसके अंत तक साक्षी रहा है। हालांकि कोलकाता से बाहर आम लोगों के बीच इस इमारत को वैसी ख्याति नहीं मिली, जैसी मिलनी चाहिए। इस साल मई में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने टाउन हॉल के पुनर्निर्मित संरचना का उद्घाटन किया था।
इस दो मंजिला इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर अगले कुछ सालों में एक म्यूजियम तैयार होने वाला है। इसके बाद इस सुंदर रोमन-डोरिक इमारत को पर्यटक अपने यात्रा कार्यक्रमों की सूची में शामिल कर सकेंगे। इस भव्य प्राचीन सफेद भवन के बनने से लेकर अब तक की कहानी बहुत ही दिलचस्प है, आइए जानते हैं:
लॉटरी के पैसों से शुरू हुआ निर्माण
बात उस समय की है जब अंग्रेज भारत में पैर जमा चुके थे। उन्हें अपने सामाजिक समारोहों के लिए राजधानी में एक भवन की जरूरत महसूस हुई। हुगली नदी के दृश्य वाले भव्य टाउन हॉल के लिए आर्किटेक्ट और इंजीनियर मेजर जनरल जॉन गार्स्टिन ने सार्वजनिक लॉटरी से 700,000 रुपये जुटाए। महारानी विक्टोरिया के जन्म से छह साल पहले 1813 में भवन बनकर तैयार हो गया। आज यह कोलकाता की सबसे पुरानी औपनिवेशिक संरचनाओं में से एक है।
शुरुआती में सरकार द्वारा तय कायदों को ध्यान में रखकर लोग हॉल में रात्रिभोज व अन्य समारोहों का आयोजन करते थे। लेकिन ऊपरी मंजिलों पर जाने की अनुमति सभी को नहीं थी। इस भवन की पहली मंजिल की छत करीब 30 फुट ऊंची है, जो चमकदार सागवान की लकड़ी से बनी है। 1867 में कोलकाता नगर पालिका ने टाउन हॉल को अपने संरक्षण में ले लिया और इसके कई भागों का नवीनीकरण किया गया।
ऐतिहासिक घटनाएं
टाउन हॉल विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। साल 1905 में इसी भवन में सुरेंद्रनाथ बनर्जी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक से स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक शुरुआत हुई थी। भवन के निर्माण के 10 साल बाद ही साल 1823 में राजा राममोहन राय ने स्पेन में संघीय सरकार की स्थापना का जश्न मनाते हुए टाउन हॉल में रात्रिभोज का आयोजन किया था। अंग्रेजी सरकार के एक प्रतिबंधात्मक प्रेस अध्यादेश के खिलाफ द्वारकानाथ टैगोर ने कई प्रमुख भारतीय के साथ यहीं बैठक की थी।
1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे सत्र के अंतिम दो दिनों का आयोजन भी टाउन हॉल में ही किया गया था। रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा पेश किए गए राजद्रोह बिल के खिलाफ टाउन हॉल में ही एक जोरदार भाषण दिया था। 1894 में एनी बेसेंट ने यहीं अपना चर्चित व्याख्यान India’s Mission in the World दिया था। 1921 में यहां महात्मा गांधी का भी सम्मान किया गया था।
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