EVM (Electronic voting machine) की विश्वसनीयता को लगभग नियमित रूप से चुनौती दी जाती है। कभी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ईवीएम पर भरोसा करने को तैयार नहीं थी। अब कांग्रेस, आप, सपा, बसपा समेत कई विपक्षी दल EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते रहते हैं।

मतदाताओं के एक वर्ग में भी EVM को लेकर संदेह देखने को मिलता, जिसकी अभिव्यक्ति आए दिन सोशल मीडिया पर नज़र आती है। हालांकि चुनाव आयोग ने हमेशा EVM का बचाव किया है। ऐसा क्या करने पीछे क्या कारण रहा है, इसे भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (Former Chief Election Commissioner) एसवाई कुरैशी (SY Quraishi) समझाते हैं।

हाल में कुरैशी The Indian Express के चर्चित कार्यक्रम आइडिया एक्सचेंज (Idea Exchange) में शामिल हुए थे। उन्होंने ईवीएम की विश्वसनीयता के सवाल पर कहा, “मैंने हमेशा ईवीएम का बचाव किया है और आज भी करूंगा। कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार हुई, इसके लिए इससे ज्यादा सबूत क्या चाहिए? ईवीएम भरोसेमंद है और इसलिए मैं पूरी तरह से ईवीएम का बचाव करता हूं। हमने VVPAT (वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) के माध्यम से ईवीएम में सुधार किया।

जब भाजपा नेता ने किताब लिखकर ईवीएम पर उठाया सवाल

कुरैशी याद करते हैं, “2009 में बीजेपी ही ईवीएम का विरोध कर रही थी। भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क’ नाम से किताब भी लिखी थी। उसे पुरस्कृत किया गया और वह सांसद भी बने। खुद लालकृष्ण आडवाणी ने किताब की प्रस्तावना लिखी थी। लेकिन हमने उन्हें गलत साबित कर दिया। हमने उन्हीं खुली चुनौती दी कि वे ईवीएम में हेरफेर कर के दिखाएं।”

बता दें कि ईवीएम का विरोध करने वाली सबसे पहली राष्ट्रीय पार्टी भाजपा ही थी। साल 2009 के आम चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। 2010 तक पार्टी के तत्कालीन प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने यह साबित करने के लिए कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव है, पूरी की पूरी किताब लिख डाली। किताब का नाम रखा- ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क: कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’

इस किताब की प्रस्तावना आडवाणी ने लिखी। किताब के भीतर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू का भी संदेश छपा। सुब्रमण्यम स्वामी जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने विशेषज्ञों की मदद से ईवीएम के खिलाफ देशव्यापी अभियान छेड़ दिया था। हालांकि अब भाजपा ईवीएम का समर्थन करती है।

क्या NRI (Non-Resident Indians) को मतदान का अधिकार होना चाहिए?

अक्सर यह सवाल उठता है कि भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों के पास वोट देने का अधिकार होना चाहिए या नहीं? इस विषय पर कुरैशी कहते हैं, “बहुत से लोग कहते हैं कि NRI को वोट देने का अधिकार नहीं होना चाहिए। वे यहां कोई टैक्स नहीं दे रहे हैं।”

इंटरनेट वोटिंग के खतरों को रेखांकित करते हुए कुरैशी कहते हैं, “कई बार मांग उठती है कि इंटरनेट वोटिंग की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि अब हम एक आईटी महाशक्ति हैं। लेकिन ऐसा नहीं किया जाएगा। मान लीजिए कि इंटरनेट वोटिंग की अनुमति है, तो मैं पिस्तौल लेकर आपके घर आऊंगा और आपको किसी को वोट देने के लिए मजबूर करूंगा। या मैं आपको 5,000 रुपये दे दूंगा और खुद आपके सभी वोट दे दूंगा। हम (चुनाव आयोग) घर पर आपकी रक्षा नहीं कर सकते। ईवीएम सबसे बेहतरीन प्रणालियों में से एक है। लेकिन सुधार जरूरी है।”

इलेक्टोरल बॉन्ड के पीछे क्या छिपाया जा रहा है?

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठाते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी पूछते हैं कि आखिर राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले अपनी पहचान गुप्त क्यों रखना चाहते हैं, कहीं वे चंदा के बदले में मिलने वाले फायदों को छिपाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं?

विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें- राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले अपनी पहचान क्यों छिपाना चाहते हैं, ताकि बदले में मिलने वाले लाइसेंस, कॉन्ट्रैक्ट और लोन को छिपा सकें?: पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने पूछा

SY Quraishi
 (PC- The Indian Express)