51 साल के देवेंद्र फडणवीस की उतनी उम्र नहीं है, जितने साल शरद पवार ने चुनावी राजनीति में बिता दिए हैं। पिछले सप्ताह भाजपा नेता ने महाराष्ट्र की राजनीति के ग्रैंड ओल्ड मैन को मात दे उनकी नाक के नीचे से सत्ता चुराकर लगभग असंभव को हासिल कर लिया। हालांकि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आ चुकी है कि पवार ने महीनों पहले ही उद्धव ठाकरे को चेतावनी दी थी कि शिवसेना में विद्रोह हो सकता है।
2014 में आश्चर्यजनक रूप से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले और 2019 में आश्चर्यजनक रूप से कुर्सी गंवा देने वाले भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस एक बार फिर पोडियम से बस कुछ कदम पीछे नज़र आ रहे हैं। 2019 के त्रिशंकु परिणाम के बाद शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया था। कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना जितनी सीटों पर चुनाव लड़े थे, उसका आधा भी जीत नहीं पाए थे।
‘दिल में चोट लगी है’ : अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि शिवसेना के इस कदम से फडणवीस कड़वाहट से भर गए थे। महा विकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद फडणवीस ने एक पार्टी समारोह में निजी तौर पर कहा, ”चोट दिल में लगी है। बात सिर्फ सीएम पद खोने का नहीं है। शिवसेना ने जिस तरह हमारे साथ विश्वासघात किया, उससे हमें चोट पहुंची है। मुझे नहीं लगता कि इसके लिए इतनी आसानी से माफ किया जा सकता है।”
शिवसेना विधायकों की फूट में भाजपा का सीधा हस्तक्षेप भले ही न दिखे लेकिन उसके उंगलियों के निशान जरूर देखे जा सकते हैं। बागियों को भड़काने में भाजपा नेता सबसे आगे रहे हैं। वहीं भाजपा शासित राज्य ही बागियों को पनाह दे रहे हैं।
जहां तक फडणवीस का सवाल है, पिछली बार से सबक लेते हुए वो इस बार ज्यादा बात नहीं कर रहे लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं छोड़ा कि बात कर कौन रहा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि फडणवीस अपने पत्ते अपने सीने के पास रखते हैं, ”मैंने उनके साथ करीब से काम किया है। केवल वही रणनीति बना सकता हैं और बड़ी से बड़ी चुनौती को आसान कर सकते हैं।”
दिल्ली से झेली निंदा : 2019 के उलटफेर के ठीक बाद केंद्रीय नेतृत्व ने उन दो नेताओं को बढ़ावा दिया जिसे फडणवीस ने दरकिनार कर दिया था। विनोद तावड़े और चंद्रशेखर बावनकुले, ये दोनों नेता फडणवीस सरकार में मंत्री थे लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में दोनों को टिकट नहीं दिया गया था। बाद में विनोद तावड़े को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव और चंद्रशेखर बावनकुले को एमएलसी बनाया गया था। कोरोना महामारी के दौरान रेमडेसिवीर बांटने की वजह से फडणवीस की दिल्ली से निंदा भी हुई थी। क्योंकि नियमों के मुताबिक केवल राज्य सरकार को ऐसा करने की अनुमति थी।
मैदान मारने की तैयारी जारी : फडणवीस वापसी की तैयारी के लिए मैदान में जुटे हैं। पिछले ढाई साल से तीन बार पूरे राज्य का दौरा कर चुके हैं। उन जगहों पर काम कर रहे हैं जहां पहले कमी रह गयी थी। उन्होंने अपने दरवाजे भी खुले रखे। प्रवीण दरेकर, प्रसाद लाड, अभिमन्यु पवार और अतुल भटखल्कर जैसे नेताओं को उनका करीबी माना जाता है। लेकिन वो किसी एक मंडली को प्रमोट नहीं कर रहे हैं। हालांकि इस बात से सभी सहमत नहीं हैं। भाजपा के एक पदाधिकारी ने फडणवीस पर “बाहरी लोगों को बढ़ावा देने” का आरोप लगाया है। इस भाजपा पदाधिकारी को फडणवीस की शैली स्पष्ट रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की याद दिलाती है।
फडणवीस के दौरों ने भाजपा को मजबूत किया है। इसके अलावा फडणवीस विपक्ष के नेता के रूप में विधानसभा में एमवीए सरकार पर लगातार आक्रामक हमलों के साथ खबरों में भी बने रहते। फोन टैपिंग मामला जिसमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रश्मि शुक्ला आरोपी हैं, फडणवीस ने व्हिसलब्लोअर होने का दावा किया है। उधर पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और राकांपा मंत्री नवाब मलिक के मामलों में भी फडणवीस महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
दूसरी तरफ फडणवीस हिंदुत्व के मुद्दों को भी गति दिए रहते हैं। इससे हिंदुत्व के मुद्दे पर एमवीए गठबंधन के भीतर मौजूद असमानताएं सामने आ जाती हैं। मनसे के कंधों से भाजपा द्वारा चलाई गई हनुमान चालीसा की गोली ऐसा ही एक उदाहरण था। इसके अलावा एमवीए नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों ने भी दबाव बनाए रखा है। शिवसेना के कम से कम तीन बागी विधायक इस तरह के मामलों का सामना कर रहे हैं।
महाराष्ट्र भाजपा उपाध्यक्ष प्रसाद लाड का मानना है कि फडणवीस अपने आप में विपक्ष के एक नेता के रूप में उभर रहे हैं। वह कहते हैं, वह सामने से नेतृत्व करते हैं। चुनौती का सामना करते हैं और परिणाम देते हैं। वहीं एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ”फडणवीस एक अच्छे एडमिनिस्ट्रेटर हैं। लेकिन जब राजनीतिक की बात आती है तो उनकी आक्रामकता नहीं दिखती। आप लगातार युद्ध मोड में नहीं रह सकते।” फडणवीस के साथ दोस्त जैसा व्यवहार होने का दावा करने वाले एनसीपी के एक पूर्व मंत्री का कहना है कि वह भी फडणवीस के नए आक्रामक तेवर से हैरान थे, खासकर हनुमान चालीसा जैसे मुद्दों पर।
महाराष्ट्र संकट में फडणवीस का हाथ? : फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति में जो भी हो रहा है, उसके पीछे भी फडणवीस की रणनीति बतायी जा रही है। शिवसेना के विद्रोह का चेहरा एकनाथ शिंदे हैं, और ये सिर्फ संयोग से नहीं हो सकता। माना जाता है कि पुराने सेना को तैयार करने में फडणवीस की कड़ी मेहनत लगी है। फडणवीस साल 2014 में ही चाहते थे कि शिंदे भाजपा में शामिल हो जाएं।
जब फडणवीस से पूछा गया कि मुख्यमंत्री रहने के बाद विपक्ष की भूमिका के साथ कैसे तालमेल बिठाया, तो उनका कहना था कि मैंने हमेशा अपनी पहचान एक भाजपा कार्यकर्ता के रूप में देखी है। पार्टी की तरफ से जो भी जिम्मेदारी मिलती है उसे पूरा करता हूँ।
भाजपा महासचिव श्रीकांत भारतीय फडणवीस की रणनीति की तारीफ करते हुए कहते हैं कि जब समर्पण और कड़ी मेहनत की बात आती है तो कोई भी फडणवीस को हरा नहीं सकता है। मुंबई में पार्टी मुख्यालय के अंदर और बाहर घूमने वाले कार्यकर्ताओं ने अपनी भावना व्यक्त की है – महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में फडणवीस की वापसी तय है।