Supreme Court Verdict Section 6A: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6 ए की वैधता को बरकरार रखने का फैसला सुनाया था। इस फैसले के तहत 24 मार्च, 1971 से पहले असम में आने वाले सभी बाहरी लोगों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद असम में एक बार फिर नेशनल सिटिजनशिप रजिस्टर (NRC) और सिटिजनशिप एमेंडमेंट एक्ट (CAA) को लेकर बहस शुरू हो गई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार CAA का कानून लाई थी। इस कानून के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन हुआ था और विपक्षी दलों ने इसे संविधान के खिलाफ बताया था।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि कई लोग चाहते थे कि कट ऑफ 1951 हो लेकिन असम समझौते में इसे 1971 निर्धारित किया गया था। सरमा ने पहले 1951 की कट ऑफ का समर्थन किया था।

केंद्र की राजीव गांधी सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 1985 में धारा 6A को इसमें जोड़ा गया था। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में धारा 6A की वैधता को चुनौती दी गई थी और कहा गया था कि 25 मार्च, 1971 की जगह 1951 को कट ऑफ बनाया जाए।

असम पब्लिक वर्क्स (APW) नाम की एनजीओ के अध्यक्ष अभिजीत सरमा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साफ है कि कट ऑफ 1971 है इसलिए अब हमने असम के सभी 22 जिलों में 100% पुनः सत्यापन की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर कर दी है। अभिजीत ने द इंडियन एक्सप्रेस को बातचीत में बताया कि असम में सभी लोग NRC से खुश नहीं हैं।

एनआरसी को साल 2019 में प्रकाशित किया गया था लेकिन भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने अभी तक इसे नोटिफाई नहीं किया है। बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य की असम सरकार ने कहा है कि NRC को इसके मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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NRC के विरोध में हैं ये तर्क

NRC की आलोचना करने वालों में APW, असम सरकार, AASU भी शामिल हैं। उनका कहना है कि NRC में बहुत सारी खामियां हैं क्योंकि इसमें असम के ‘मूल लोगों’ को शामिल नहीं किया गया है और बड़ी संख्या में ‘विदेशी’ शामिल हैं। उनका दावा है कि 24 मार्च, 1971 की कट ऑफ के बाद राज्य में जितने लोग आए उनकी संख्या 2019 की NRC से बाहर किए गए लोगों की संख्या 19 लाख से कहीं ज्यादा है।

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समर्थन करने वालों में AASU भी है। AASU का कहना है कि अब राज्य और केंद्र सरकारों को NRC के पुनर्सत्यापन के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। मुख्यमंत्री सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में 20% तथा अन्य जिलों में 10% पुनर्सत्यापन के पक्ष में है।

ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और सरकार से 2019 की NRC को नोटिफाई करने का आग्रह किया है। AAMSU के अध्यक्ष रेजाउल करीम ने कहा है कि अगर कोई भी शख्स 1971 के बाद अवैध रूप से देश में घुसा है- चाहे वह मुसलमान हो या हिंदू, उसे बाहर निकाला जाना चाहिए।

CAA को लेकर उठाए सवाल

असम में विपक्षी दल की भूमिका निभा रहे कांग्रेस, राइजोर दल और असम जातीय परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद CAA का सवाल उठाया है। CAA का कानून पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, फारसी या ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता देता है। CAA का असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में जबरदस्त विरोध हुआ था और कहा गया था कि यह असम समझौता 1971 के खिलाफ है।

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राइजोर दल के प्रमुख अखिल गोगोई कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह पता चलता है कि CAA को असम में लागू नहीं किया जा सकता। CAA का विरोध करने वालों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए क्योंकि इस मामले में कोर्ट का फैसला पक्ष में आ सकता है। 

CAA और NRC के खिलाफ हुए थे जोरदार प्रदर्शन

याद दिलाना होगा कि CAA और NRC के खिलाफ असम में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस साल लोकसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले भारत सरकार ने CAA को लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि CAA का कानून किसी की भी नागरिकता नहीं छीनता और विपक्षी दलों के द्वारा मुस्लिम समुदाय के लोगों को इसके खिलाफ उकसाया जा रहा है। शाह ने कहा था कि CAA ऐसा कानून है जो बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में धार्मिक रूप से उत्पीड़न का सामना करने वाले शरणार्थियों को नागरिकता देता है।