शरद पवार कॉलेज के दिनों से राजनीति में सक्रिय थे। वह छात्र जीवन में ही कॉलेज से जुड़ गए थे। पवार को 1962 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सक्रिय भागीदारी का अवसर मिला था। इस चुनाव में कांग्रेस ने पुणे की शिवाजी नगर विधानसभा सीट से पूर्व आईसीएस और पुणे म्युनिसिपल कारपोरेशन के पूर्व कमिश्नर एम.जी. बर्वे को अपना उम्मीदवार बनाया था। बर्वे का मुकाबला जनसंघ के उम्मीदवार रामभाउ म्हालगी से था।
पार्टी ने पवार को पुणे शहर में घूम-घूमकर पोस्टर चिपकाने का काम सौंपा था। वह अपने दोस्तों के साथ साइकिल से जाकर पूरे शहर के विभिन्न प्रमुख स्थानों पर पोस्टर चिपकाते थे। क्योंकि पवार अपनी टीम में सबसे लम्बे थे इसलिए ज्यादातर पोस्टर भी उन्हें ही चिपकाने पड़े थे।
शरद पवार अपने संस्मरण ‘अपनी शर्तों पर’ में लिखते हैं, “मेरे साथी साइकिल को दोनों तरफ से मजबूती से पकड़ लेते और मैं सीट पर खड़ा होकर पोस्टर चिपकाता। वोटरों के नाम की पर्ची लिखना और उनको वितरित करना का काम भी हमें ही मिला था।”
जब दरवाजे से भगाए गए पवार
एक शाम पवार और उनके साथियों ने पुणे के प्रभात रोड स्थित बस्ती के एक घर का दरवाजा खटखटाया। घर के दरवाजे पर लगी नेम प्लेट से पता चला था कि यह घर बिग्रेडियर राने का है। पवार लिखते हैं, “एक उम्रदराज भद्र पुरुष ने दरवाजा खोला उनका विचित्र चेहरा कुछ अधिक बड़ा लग रहा था। मैंने कहा, हम लोग कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं। हम अपनी पार्टी के लिए आपसे वोट और समर्थन की आशा करते हैं।”
पवार की बात सुनकर बिग्रेडियर तीखे स्वर में कहा, “कांग्रेस? इसे भूल जाओ। मैं तुम्हारी पार्टी को कभी भी वोट नहीं दूंगा।’ यह ब्रिगेडियर का प्रतिकार पूर्ण उत्तर था। कुछ वर्षों बाद पवार को पता चला कि उनकी शादी उन्हीं ब्रिगेडियर राने की पोती प्रतिभा से हुई है।
दूसरी तरफ पवार जिस चुनाव के लिए मेहनत कर रहे थे, उसमें बर्वे को जीत मिली और वह महाराष्ट्र सरकार में वित्त मंत्री भी बने।
भाई के खिलाफ किया चुनाव प्रचार
पार्टी में अपनी मेहनत के दम पर पवार लगातार आगे बढ़ते रहे। दो वर्ष तक पुणे की यूथ कांग्रेस के सचिव पद पर कार्य करने के बाद उन्हें पश्चिम महाराष्ट्र के युवा बिंग का सचिव नियुक्त किया गया। इस बीच बारामती लोकसभा सीट पर मध्यावधि चुनाव होना तय हुआ। दरअसल, साल 1960 में वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता केशवराव जेधे हो गया था और तब से वह सीट खाली थी।
इस सीट से वामपंथी पार्टी पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया (पीडब्ल्यूपी) ने शरद पवार के बड़े भाई वसंतराव को उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस ने इस सीट से केशवराव के बेटे गुलाबराव जेधे को अपना उम्मीदवार घोषित किया। वाई.बी. चव्हाण के नेतृत्व में कांग्रेस इस सीट को प्रतिष्ठा का विषय बना चुकी थी क्योंकि एसएम जोशी, आचार्य अत्रे और ऊधवराव पाटिल जैसे कद्दावर नेताओं ने वसंतराव को अपना समर्थन दिया था।
पवार लिखते हैं, “मेरा भाई विपक्षी उम्मीदवार था इसलिए हर कोई यह सोच रहा था कि मैं क्या करूंगा! यह एक जटिल स्थिति थी जो राजनीतिक परिपक्वता की मांग कर रही थी और मेरे भाई वसंतराव ने इस राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया। उन्होंने बड़ी विनम्रता और सहजता से इस समस्या का समाधान निकाला। उन्होंने सीधे मुझसे बात की और बहुत ही संतुलित तथा सीमित शब्दों में कहा, ‘तुम कांग्रेस की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध और समर्पित हो। इसलिए चुनाव के अभियान में मेरे खिलाफ प्रचार करने में जरा भी संकोच मत करो।’ मैंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में पूरी शक्ति से काम किया और वह विजयी हुआ जबकि मेरा भाई हार गए।”