सुप्रीम कोर्ट में धर्म के आधार पर जजों की नियुक्ति का चलन रहा है। भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के बेटे और बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब सुप्रीम व्हिस्पर्स में लिखा है, “उच्चतम न्यायालय की स्थापना के समय से ही कोर्ट में एक सीट मुस्लिम जज के लिए आरक्षित की गई। चूंकि सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है, मुस्लिमों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या भी बढ़ गई है।”
सरकार की कोशिश रहती थी कि सुप्रीम कोर्ट में कोई न कोई मुस्लिम जज हो ही। ऐसे में अन्य धर्मों के नेता भी अपने धर्म के जजों को नियुक्त कराने की कोशिश करते थे। साल 1973 में उच्चतम न्यायालय में सिख जज की नियुक्ति के लिए पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और लोकसभा अध्यक्ष जी.एस. ढिल्लों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। दोनों केंद्रीय कानून मंत्री एच.आर. गोखले और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक पहुंच गए थे।
शुरू हुई सिख जज की तलाश
ज्ञानी जैल सिंह और जी.एस. ढिल्लों ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अनुरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट में सिखों को मौका दिया जाए। गोखले और इंदिरा गांधी, दोनों मान गए। इसके बाद सिख जज की तलाश में गोखले चंडीगढ़ की यात्रा पर गए। गोखले ने अदालत के सभी न्यायाधीशों के साथ दोपहर का भोजन किया। इस बीच अफवाह उड़ी की ढिल्लों नाम के एक बहुत ही जूनियर और कट्टरपंथी सिख न्यायाधीश का चयन होने जा रहा है।
कानून मंत्री गोखले के सम्मान में पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों ने रात्रिभोज का आयोजन किया, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल हुए। सुप्रीम कोर्ट में किसे नियुक्त किया जाएगा, इसे लेकर तरह-तरह की अफवाह थी। सभी जानते थे कि गोखले को एक सिख जज की तलाश है।
खेत में काम करने वाले जज के पास पहुंचे जैल सिंह
गोखले की चंडीगढ़ यात्रा के कुछ समय बाद ज्ञानी जैल सिंह ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के सिख जज रणजीत सिंह सरकारिया (Justice Ranjit Singh Sarkaria) से संपर्क किया। दोनों एक गेस्ट हाउस में मिले। जैल सिंह ने जस्टिस सरकारिया को सुप्रीम कोर्ट का जज बन जाने का अनुरोध किया।
सरकारिया ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए जैल सिंह का ऑफर ठुकरा दिया। दरअसल, जस्टिस सरकारिया बहुत महत्वाकांक्षी नहीं थे। वह वीकेंड पर अपने खेत में काम करने के लिए पटियाला जाना पसंद करते थे। उच्च न्यायालय में सरकारिया के सहयोगियों में से एक न्यायमूर्ति पी.सी. पंडित ने सरकारिया से जैल सिंह का ऑफर स्वीकार करने का आग्रह किया। न्यायमूर्ति पंडित उस समय अदालत में सेकंड मोस्ट सीनियर जज थे।
इसके बाद सरकारिया ने अपनी पत्नी से बात की। उनका भी मानना था कि सरकारिया को प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना चाहिए। अब जस्टिस रणजीत सिंह सरकारिया ने जैल सिंह से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन तब तक वह दिल्ली के लिए निकल चुके थे। जस्टिस सरकारिया समझ नहीं पा रहे थे कि वह उनसे संपर्क कैसे करें। हालांकि थोड़ी कठिनाई के बाद जैल सिंह से बात हो गई। उन्होंने जैल सिंह को बताया कि उनका विचार बदल गया है। उधर से जैल सिंह ने बताया कि वह तो प्रधानमंत्री से मिलने आए थे ताकि यह बता सकें कि सरकारिया ने प्रस्ताव ठुकरा दिया है।
खैर, जैल सिंह से बातचीत के बाद गोखले ने तत्कालीन CJI ए.एन. रे को फोन मिलाया और सरकारिया के फैसले की जानकारी दी। इस तरह 17 सितंबर, 1973 को जस्टिस सरकारिया की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति हुई। वह 15 जनवरी, 1981 को रिटायर हुए।
