म‍िनरल वाटर ब्रांड बिसलेरी (Bisleri) अब टाटा समूह (Tata Group) का हो सकता है। ऐसी खबरें आ रही हैं। ब‍िसलेरी के माल‍िक रमेश चौहान ने माना है क‍ि वह ब‍िसलेरी के संभा‍व‍ित खरीददारों से बातचीत कर रहे हैं। ब‍िसलेरी की जो हैस‍ियत आज है वह चौहान ने अपने दम पर द‍िलाई है। 1969 में करीब पांच लाख रुपए में ज‍िस कंपनी को उन्‍होंने खरीदा था, उसके आज 7000 करोड़ में ब‍िकने की चर्चा है। मूल ब‍िसलेरी कंपनी एक ऐसा पेय बनाती थी, ज‍िसका इस्‍तेमाल शराब की लत छुड़वाने में होता था। हालांक‍ि, कंपनी ने भारत में अपने कदम पानी बेचने के इरादे से ही रखे थे। जान‍िए ब‍िसलेरी की पूरी कहानी:

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कंपनी का नाम बिसलेरी क्यों?

बिसलेरी को उसका नाम उसके संस्थापक से मिला है। बिसलेरी कंपनी की स्थापना 20 नवंबर, 1851 को इटली के एक बिजनेसमैन सिग्नोर फेलिस बिसलेरी ने की थी। सिग्नोर फेलिस व्यवसायी होने के साथ-साथ आविष्कार और केमिस्ट भी थी। उन्होंने बिसलेरी को इटली में नोसेरा उम्ब्रा नामक कस्बे में शुरू किया था। तब बिसलेरी को एंजेलिका नामक झरने के पानी और तमाम जड़ी-बूटियाँ और लौह लवण को मिलाकर बनाया जाता था क्योंकि सिग्नोर फेलिस ने बिसलेरी को एक अल्कोहल रेमेडी यानी शराब छुड़ाने वाले पेय के रूप शुरू किया था।

भारत कैसे पहुंची बिसलेरी?

1921 में सिग्नोर फेलिस की मृत्यु के बाद, कंपनी को उनके फैमली डॉक्टर डॉ. सेसार रॉसी ने संभाला। डॉ. रॉसी अपने वकील दोस्त खुशरू सुंतूक के साथ पानी बेचने के इरादे से भारत पहुंचे। हालांकि तब भारत में पानी की अनुपलब्धता किसी असुविधा की श्रेणी में नहीं थी। बावजूद इसके दूरदर्शी रॉसी और सुंतूक ने साल 1965 में मुंबई के ठाणे में बिसलेरी का पहला वाटर प्लांट स्थापित कर दिया।

कंपनी ने खुद को मिनरल वाटर और सोडा बेचने वाली कंपनी के रूप में प्रचारित करना शुरू किया। पांच सितारा होटलों और महंगे रेस्तराँ में अपनी जगह भी बना ली। लेकिन बड़ी सफलता के लिए इस बंद बोतल को भारत की आम जनता तक पहुंचाना जरूरी था।

400 नदियों वाले देश में कैसे बिकने लगा पानी

विदेशी दोस्तों की कंपनी आम भारतीयों को रग में अपनी कंपनी का पानी उतारने में सफल नहीं हो पा रही थी। मुनादी हुई की बिसलेरी बिकने वाली है। उधर आजादी के दो साल बाद बनी पारले नामक एक कंपनी धीरे-धीरे अपना विस्तार कर रही थी। पारले के संस्थापक जयंतीलाल चौहान के बेटे रमेश चौहान को जब बिसलेरी के बिकने की खबर मिली, तो उन्होंने कंपनी को साल 1969 में चार लाख रुपये देकर खरीद लिया।

लेकिन कंपनी को अभी इसकी वजह बतानी थी कि 400 नदियों वाले देश के लोग बोतल बंद पानी क्यों खरीदें। कंपनी ने विज्ञापन के लिए एक पोस्टर निकाला, जिसमें सबसे ऊपर WHO के हवाले से बताया गया था कि दुनिया में 80 प्रतिशत बिमारी साफ पानी न पीने से होती है। आम लोगों तक पहुंचने के लिए 1995 में कंपनी ने महज 5 रुपये की कीमत वाली 500 एमएल की छोटी बोतल भी पेश की।

कंपनी ने हमेशा इस बात का ख्याल रखा कि पानी बोतल हर उस जगह पर उपलब्ध रहे, जहां आम लोग जुटते हैं, जैसे- रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, सड़क किनारे की छोटी दुकानें… आदि। इसके बाद बिसलेरी को जो विस्तार हुआ, उसकी छाप पूरे देश में देखी जा सकती है।

ब‍िसलेरी से नक्‍काल भी हारे

स्पेलिंग में भ्रामक बदलाव कर नकलची कारोबारियों ने अपने पानी के बोतलों को बेचने की कोशिश तो बहुत की लेकिन बिसलेरी के दबदबे में कोई कमी नहीं आयी। आज भी मिनरल ड्रिंकिंग वाटर इंडस्ट्री (Mineral Water Industry) का 60 प्रतिशत मार्केट शेयर बिसलेरी की जेब में है। बीते वित्त वर्ष में बिसलेरी ने 1,181.7 करोड़ रुपए का कारोबार किया था, जिसमें 95 करोड़ रुपये प्रॉफिट था।

ब‍िसलेरी को क्‍यों बेच रहे रमेश चौहान

बिसलेरी के चेयरमैन रमेश चौहान का कहना है क‍ि कंपनी को नेक्‍स्‍ट लेवल पर ले जाने वाला कोई होना चाह‍िए। उनकी बेटी और कंपनी की वाइस चेयरपर्सन जयंती की इसमें रुच‍ि नहीं है। इसल‍िए वह खरीददार ढूंढ़ रहे हैं। चौहान ने कहा है कि कंपनी को आग बढ़ाने और उसके विस्तार के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं है।