राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ और कांग्रेस के संबंध उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या के बाद संघ पर लगे प्रतिबंध से परेशान तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल को पत्र लिखकर कांग्रेस के साथ काम करने की इच्छा जताई थी।

नीलांजन मुखोपाध्याय की किताब ‘द आरएसएस: आइकॉन ऑफ द इंडियन राइट’ के मुताबिक, गोलवलकर के अनुरोध पर सरदार पटेल संघ को कांग्रेस में मिलाने पर विचार भी कर रहे थे, लेकिन नेहरू ने RSS को ‘देशद्रोही संगठन’ करार देते हुए प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

भाजपा के पूर्व विचारक सुधींद्र कुलकर्णी ने द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अपने एक लेख में बताया था कि कैसे नेहरू को श्रद्धांजलि देते हुए गोलवलकर ने ना सिर्फ उनकी देशभक्ति की प्रशंसा की थी, बल्कि उन्हें “भारत माता का महान सपूत” भी बताया था। कुलकर्णी ने संघ की शाखा का एक किस्सा भी बताया था, जिसके मुताबिक गोलवलकर ने नेहरू की कठोर आलोचना वाले स्वयंसेवक को शिविर से चले जाने के लिए कह दिया था।

गोलवलकर ने की इंदिरा गांधी की तारीफ

द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी आने वाली वाली किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में संघ और कांग्रेस के संबंध पर विस्तार से लिखा है। चौधरी ने लिखा है कि साल 1971 में आरएसएस ने बांग्लादेश को अलग करने और पाकिस्तान को कमजोर करने के लिए इंदिरा गांधी की प्रशंसा की थी। तत्कालीन आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर ने लिखा था, ‘इस उपलब्धि का सबसे बड़ा श्रेय आपको (इंदिरा) जाता है।’ किताब के मुताबिक, आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने एक बार बातचीत के दौरान कहा था कि ‘इंदिरा गांधी बहुत बड़ी हिंदू हैं।’

आपातकाल के दौरान इंदिरा से मिलना चाहते थे सरसंघचालक

इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए 1975 के आपातकाल के दौरान संघ की कमान मधुकर दत्तात्रेय देवरस उर्फ बाला साहब देवरस के पास ही थी। देवरस ने जेल से पत्र लिखकर RSS को ना सिर्फ आपातकाल विरोधी आंदोलन से अलग बताया था, बल्कि मुसलमानों के बीच परिवार नियोजन को लागू करने के संजय गांधी के अभियान की प्रशंसा भी की थी। देवरस इंदिरा गांधी से मिलना चाहते थे लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें समय नहीं दिया। ये जानकारी देवरस की किताब ‘हिंदू संगठन और सत्तावादी राजनीति’ में उपलब्ध है।

इंदिरा ने राजीव गांधी को देवरस से मिलने भेजा

आपातकाल के बाद सत्ता में वापसी और संजय गांधी की मौत के बाद की इंदिरा गांधी के बारे में नीरजा चौधरी ल‍िखती हैं- इसके बाद उनका झुकाव दक्षिणपंथ की तरफ होने लगा था। जिस इंदिरा ने आपातकाल के दौरान संघ प्रमुख देवरस से मिलने से इनकार कर दिया था, उसी इंदिरा ने 1982 में अपने बेटे राजीव गांधी को देवरस के भाई भाऊराव देवरस से मिलने और उनके साथ बातचीत शुरू करने के लिए भेजा था।

राजीव गांधी और देवरस की चार मुलाकातें

नीरजा चौधरी ने अपनी किताब में लिखा है, साल 1982 से 1984 के बीच राजीव गांधी और भाऊराव देवरस के बीच तीन बार मुलाकात हुई थी। पहली बैठक सितंबर 1982 में कपिल मोहन के 46, पूसा रोड स्थित आवास पर हुई थी। भाऊराव से मोहन की पुरानी दोस्ती थी। दूसरी बैठक भी पूसा रोड वाले आवास पर ही हुई। तीसरी मुलाकात फ्रेंड्स कॉलोनी स्थित अनिल बाली के आवास पर हुई थी। चौथी बैठक 10 जनपथ पर साल 1991 की शुरुआत में हुई थी, जब राजीव पावर से बाहर थे।

मोहन मीकिन ग्रुप के कपिल मोहन के भतीजे अनिल बाली के अनुसार, इन बैठकों को आयोजित करने वाले मुख्य व्यक्ति इंदिरा के राजनीतिक सचिव एमएल फोतेदार थे। नीरजा अपनी किताब में बाली के हवाले से ल‍िखती हैं, “अगर 1985-87 के बीच राजीव गांधी पर हिंदूवादी प्रभाव डालने वाला कोई एक व्यक्ति था, तो वह फोतेदारजी ही थे… फोतेदार ने एक बातचीत के दौरान खुलासा किया था कि इंदिरा गांधी ने राजीव को आरएसएस के साथ चल रही बातचीत के बारे में घर पर बात करने से मना किया था, क्योंकि वह जानती थीं कि सोनिया संघ को बिल्कुल पसंद नहीं करतीं।”

पता था संघ को फायदा होगा, तब भी किया ये काम

बाली आगे बताते हैं, “प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव भाऊराव से नहीं मिले। लेकिन वे संपर्क में रहे। राजीव गांधी का आधा कार्यकाल खत्म होने के बाद आरएसएस ने उनसे दूरदर्शन पर रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण धारावाहिक के प्रसारण के लिए अनुरोध किया था। पहले दूरदर्शन के अधिकारी और खुद सूचना और प्रसारण मंत्री भी रामायण को सरकारी चैनल पर प्रसारित करने के पक्ष में नहीं थे।

कांग्रेस नेता एचकेएल भगत, जो बाद में सूचना और प्रसारण मंत्री बने, वह उस समय चिंतित हो गए जब राजीव ने उनसे आरएसएस के अनुरोध के बारे में बताया। भगत ने राजीव को चेतावनी दी कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा और भाजपा-विहिप-आरएसएस के नेतृत्व वाले राम जन्मभूमि आंदोलन के पक्ष में माहौल तैयार हो जाएगा… राजीव ने भगत की आशंकाओं पर ध्यान नहीं दिया। और दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण हुआ।” (इस बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)