सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ल‍िए आरक्षण के अंदर आरक्षण देने की इजाजत दी। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ सहित सात जजों की पीठ ने छह-एक के बहुमत से फैसला द‍िया क‍ि राज्यों को संवैधानिक रूप से SC-ST कैटेगरी के अंदर सब-क्लासिफिकेशन करने का अधिकार है, ताकि आरक्षण के जर‍िए उस जाति-समूह के ज्‍यादा जरूरतमंद लोगों की स्‍थ‍ित‍ि ऊपर उठाई जा सके। जस्‍ट‍िस बेला त्र‍िवेदी एससी-एसटी के अंदर नए स‍िरे से जात‍ीय समूह न‍िर्धार‍ित करने का अध‍िकार राज्‍यों को देने के पक्ष में नहीं थीं।

एक तरफ जहां कई दलित समूहों ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का विरोध किया है, वहीं कर्नाटक के 50 साल पुराने दलित संगठन दलित संघर्ष समिति (डीएसएस) ने इसका समर्थन किया है। हालांकि, संगठन ने क्रीमी लेयर को कोटा से बाहर करने के सुझाव का विरोध किया है।

डीएसएस का नेतृत्व मुख्य रूप से ‘दलित दक्षिणपंथी’ होलिया द्वारा किया जाता है, जिन्हें ‘दलित वामपंथी’ या मैडिगा की तुलना में जातिगत स्पेक्ट्रम में उच्च माना जाता है और आर्थिक व राजनीतिक रूप से अधिक उन्नत माना जाता है।

कई दलित संगठनों ने किया सब-क्लासिफिकेशन का विरोध

जिन दलित संगठनों ने सब-क्लासिफिकेशन का विरोध किया है, उनमें महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन अगाड़ी और उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम) शामिल हैं। कई विरोधियों को डर है कि इस कदम से एससी/एसटी के भीतर विभाजन पैदा हो जाएगा और संगठ‍ित तौर पर उनकी ताकत कम होगी।

1990 और 2000 के दशक में DSS कई समूहों में बंट गया

डीएसएस की स्‍थापना 1974 में बी कृष्णप्पा द्वारा की गई थी। डीएसएस के संस्थापक सदस्यों में से एक, इंदुधारा होन्नापुरा ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “डीएसएस सिर्फ संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। यह दलित को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो उत्पीड़ित है और इसलिए विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को आकर्षित करता है।”

1990 और 2000 के दशक में DSS कई समूहों में बंट गया लेकिन ये पिछले साल एक ‘ओक्कुट्टा’ (सभा) में एक साथ आए। DSS के संस्थापक समन्वयक वी नागराज जिन्होंने बेंगलुरु में आयोजित बैठक में लगभग दो लाख दलितों को एकजुट किया था, ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हम सब-क्लासिफिकेशन का समर्थन करते हैं क्योंकि आरक्षण जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए। दलितों में कई उप-समूह कम उन्नत हैं और उन्हें उचित आरक्षण की आवश्यकता है।”

क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर करने का विरोध

हालांकि, DSS क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर करने का विरोध करता है। वह यह कहता है कि यह संविधान में निहित आरक्षण की मूल अवधारणा के खिलाफ है, जिसका उद्देश्य उन समुदायों को ऊपर उठाना है जिन्होंने जाति के आधार पर सामाजिक पिछड़ेपन और उत्पीड़न का सामना किया है।

DSS नेता मावली शंकर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हम क्रीमी लेयर को बाहर करने का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि एक दलित आर्थिक स्थिति सुधरने पर गैर-दलित नहीं बन जाता है। सभी दलितों को उनके आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना आरक्षण का अधिकार होना चाहिए। हालांकि, सब-क्लासिफिकेशन सामाजिक न्याय के लिए आवश्यक है।”

दलित अभी भी अन्य प्रमुख जातियों द्वारा उत्पीड़न के शिकार

नागराज ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह साबित करता हो कि आर्थिक स्वतंत्रता के साथ दलितों की सामाजिक स्थिति बदलती है। उन्होंने कहा, “जो दलित जाति पदानुक्रम में ऊंचे माने जाते हैं, वे अभी भी अन्य प्रमुख जातियों द्वारा उत्पीड़ित होते हैं।”

नागराज ने यह भी स्वीकार किया कि DSS के भीतर सभी लोग सब-क्लासिफिकेशन के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे नेता हैं जो सोचते हैं कि दलितों को एक समान रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि वे दावा करते हैं कि प्रत्येक उप-समूह जाति व्यवस्था से समान रूप से प्रभावित होता है। हालांकि, हम में से अधिकांश सब-क्लासिफिकेशन के समर्थन में हैं।”

क्या SC सूची में शाम‍िल सभी जातियां समान हैं?

संविधान के आर्टिकल 341(1) में राष्ट्रपति को किसी राज्य में जातियों, जातीय समूहों या जनजातियों को निर्धारित करने की शक्ति दी गई है, जिन्हें उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में अनुसूचित जातियां माना जाएगा। अनुच्छेद 341(2) यह भी कहता है कि केवल संसद ही एससी की सूची से किसी भी जाति, जातीय समूह या जनजाति को शामिल या बाहर कर सकती है। हालांकि, अपने हालिया फैसले में सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस आधार को खारिज करते हुए कहा कि राष्ट्रपति की सूची में शामिल होने का तात्पर्य यह नहीं है कि किसी जाति को और वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।