सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के अंदर आरक्षण देने की इजाजत दी। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ सहित सात जजों की पीठ ने फैसला दिया कि राज्यों को संवैधानिक रूप से SC-ST कैटेगरी के अंदर सब-क्लासिफिकेशन करने का अधिकार है, ताकि आरक्षण के जरिए उस जाति-समूह के ज्यादा जरूरतमंद लोगों की स्थिति ऊपर उठाई जा सके। हालांकि, कई बहुजन नेताओं और कार्यकर्ताओं को डर है कि इस फैसले से दलित एकता प्रभावित हो सकती है।
पंजाब में भी दलित समूह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर विभाजित हो गए हैं। ये मतभेद बुधवार को अदालत के फैसले के खिलाफ कुछ दलित और आदिवासी समूहों द्वारा बुलाए गए भारत बंद के दौरान सार्वजनिक रूप से देखने को मिले। पंजाब में 2011 की जनगणना के अनुसार दलितों का अनुपात सबसे अधिक है (32% आबादी)। राज्य में दलितों के दो मुख्य समूह वे समूह हैं जो चमड़े के उत्पाद बनाने में कुशल हैं, जिन्हें रामदासिया, रामदासिया सिख, रविदासिया या रविदासिया सिख और मज़हबी सिख और बाल्मीकि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
मजहबी सिख और बाल्मीकि जहां एससी-एसटी सब-क्लासिफिकेशन के पक्ष में हैं, वहीं बाकी दलित उप-समूहों ने बंद के आह्वान का समर्थन किया। बंद को राज्य में आंशिक प्रतिक्रिया मिली, वह भी दोआब क्षेत्र में जहां रविदासिया प्रमुख दलित समूह हैं। मालवा और माझा क्षेत्र, जहां मजहबी सिख और बाल्मीकि अधिक हैं बंद से लगभग अछूते रहे।
पंजाब में मजहबी और बाल्मीकि अनुसूचित जाति की आबादी का लगभग 40%
लगभग 88.66 लाख दलितों में से मजहबी और बाल्मीकि अनुसूचित जाति की आबादी का लगभग 40% हैं। हालाँकि, सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों के साथ-साथ पंजाब में दलित राजनीतिक क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है। 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में 34 एससी-आरक्षित विधानसभा सीटों में से मजहबी या बाल्मीकि जाति के नेता केवल आठ निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। एससी-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के चार सांसदों में से सभी रविदासिया समुदाय से हैं।
बाल्मीकि समुदाय से आने वाले चार बार के कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री राज कुमार वेरका ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “सब-क्लासिफिकेशन पर इस हंगामे के बाद, राजनीतिक दल पार्टी संरचना के साथ-साथ विधानसभा और संसद में मज़हबी सिखों और बाल्मिकियों को उचित प्रतिनिधित्व देने के बारे में सोचेंगे। साक्षरता दर में सुधार होने से समुदाय अधिक जागरूक हो गया है।” हालांकि, दलित सब-ग्रुप के दोनों समूहों के निर्वाचित जन प्रतिनिधि अदालत के फैसले के बारे में काफी हद तक चुप हैं।
पंजाब में बंद का कम असर
जालंधर स्थित मज़हबी समुदाय के एक भाजपा नेता ने कहा, “बंद का कम प्रभाव पड़ा क्योंकि दलित विरोध प्रदर्शन में अधिकांश भागीदार हमारे समुदाय से आते हैं लेकिन हम बंद का हिस्सा नहीं थे। मैं इस वक्त कुछ नहीं बोलना चाहता क्योंकि फैसला हमारे पक्ष में है। यह सच है कि हमारे समुदाय को नौकरियों सहित किसी भी क्षेत्र में उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।”
1975 में जब ज्ञानी जैल सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने निर्देश दिया कि बाल्मिकियों और मजहबियों को जहां भी संभव हो अनुसूचित जाति के लिए उपलब्ध कोटा का 50% दिया जाए। तब से यह समुदाय कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। हालांकि, 2007 के चुनावों में इन दलित समुदायों के एक वर्ग ने अकाली दल के लिए मतदान किया और हाल के वर्षों में भाजपा उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है।
सरकारी नौकरियों में बाल्मिकियों और मजहबियों का कम प्रतिनिधित्व
दलित कार्यकर्ता डॉ. कश्मीर सिंह ने कहा, “सरकारी नौकरियों में उनके कम प्रतिनिधित्व के कारण ज्ञानी जैल सिंह को पंजाब में मजहबी सिखों और बाल्मिकियों को 50% आरक्षण देना पड़ा। इस आरक्षण के बावजूद, इन दोनों समुदायों का सरकारी नौकरियों के साथ-साथ राजनीति में भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।”
दलित कार्यकर्ता ने कहा, “जैल सिंह सरकार के निर्देश के कुछ महीने बाद आरक्षण केवल सरकारी नौकरियों में भर्ती तक ही सीमित था और शैक्षणिक और व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश से हटा दिया गया। परिणामस्वरूप, इन समुदायों से आज तक बहुत कम लोगों को भर्ती किया गया है।”
चमड़े का काम करने वाली जातियां अधिक उन्नत
चमड़े का काम करने वाली जातियों के तुलनात्मक रूप से अधिक उन्नत होने का एक कारण यह है कि ब्रिटिश शासन के दौरान सेना छावनियों में सैन्य जूतों की मांग के कारण उनका व्यापार बढ़ गया था। इससे उनमें शिक्षा की आकांक्षा जगी और उन्होंने 1920 के दशक में पंजाब में पहला दलित आंदोलन, मंगू राम के आद धर्म शुरू किया और 1931 की जनगणना में बड़ी संख्या में खुद को आद धर्मी के रूप में शामिल किया।
बाल्मीकियों के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेता दर्शन रत्न रावण ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, ”अलग-अलग पार्टियों में ज्यादातर मजहबी सिख और बाल्मीकि समुदाय के नेता केवल प्रतीकात्मक चेहरे हैं। वे असली नेता नहीं हैं। हम क्रीमी लेयर को लेकर बंद समर्थक दलित संगठनों के तर्क से सहमत हैं लेकिन हम आरक्षण में सब-क्लासिफिकेशन का कोई विरोध बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह हमारा अधिकार है। हमारा अगला कदम इस सब-क्लासिफिकेशन के कार्यान्वयन पर जोर देना होगा। पंजाब में एससी-आरक्षित चार सीटों में से दो हमारे लिए होनी चाहिए।”
भाजपा हमारे समुदाय को शिकार बना सकती है- बाल्मीकि नेता
बाल्मीकि नेता ने कहा, “मेरा सबसे बड़ा डर यह है कि भाजपा हमारे समुदाय को शिकार बना सकती है क्योंकि वे उनके बीच आरएसएस प्रचारक भेज रहे हैं। अन्य पार्टियाँ अगर हमारे अधिकारों पर चुप रहना पसंद करती हैं तो यह उनका नुकसान होगा।
इससे पहले द इंडियन एक्सप्रेस को दिये गए में दर्शन रावण ने तर्क दिया था कि सब-कोटा दलित एकता को प्रभावित नहीं करेगा और जिस दिन महादलित जो कि दलितों में सबसे पिछड़े हैं आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक प्रगति करेंगे दलित समाज बढ़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट के SC-ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की इजाजत देने के खिलाफ दलित-आदिवासी संगठनों ने 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान किया था। हालांकि, हरियाणा और पंजाब में बंद का कुछ खास असर देखने को नहीं मिला। पंजाब में बहुजन समाज पार्टी (BSP) बंद के समर्थन में थी, वहीं वाल्मीकि समाज भारत बंद के विरोध में था, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को सही बताया।