गांधी मेमोरियल की पत्रिका ‘अंतिम जन’ ने हिंदुत्ववादी नेता विनायक दामोदर सावरकर पर विशेषांक निकाला है। विपक्ष और गांधीवादी इसकी आलोचना कर रहे हैं। दरअसल ‘अंतिम जन’ केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन आने वाली गांधी स्मृति और दर्शन समिति की पत्रिका है। यह संस्था पूरी तरह से गांधी और उनके दर्शन को समर्पित रही है। यही संस्था राजघाट स्थित गांधी स्मारक और उस घर (अब संग्रहालय) के संरक्षण का काम भी देखती है, जहां गांधी की हत्या हुई थी।
गांधी स्मृति और दर्शन समिति की अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं। समिति के संरक्षक और उपाध्यक्ष का पद पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल के पास है, जिन्होंने ताजा अंक में एक लेख भी लिखा है।
किसने की आलोचना? : गांधी के परपौत्र तुषार गांधी ने महात्मा गांधी के जीवन और दर्शन पर गंभीर शोध किया है। उन्होंने गांधी पर कई किताबें भी लिखी हैं। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, गांधी को समर्पित पत्रिका में सावरकर विशेषांक निकालने को तुषार ने गांधीवादी विचारधारा को भ्रष्ट करने की सुनियोजित रणनीति बताया है। वहीं कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसे आरएसएस का एजेंडा बताया है।
क्यों हो रही है आलोचना? : गांधी और सावरकर की विचारधारा एक दूसरे के विपरीत है। गांधी भारत विभाजन के खिलाफ थे, सावरकर ने जिन्ना से पहले दो राष्ट्र का सिद्धांत दे चुके थे। गांधी का विश्वास सर्वधर्म समभाव में था, सावरकर मुसलमानों और ईसाइयों को बाहरी मानते थे और उनके लिए अप्रिय विचार रखते थे। गांधी जब अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन चला रहे थे, तब सावरकर भारतीयों को अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे।
चम्पारण सत्याग्रह के दौरान गांधी ने अंग्रेजों की अदालत में जुर्माना देने के बजाए, जेल जाने के विकल्प चुना था। वहीं सेलुलर जेल में बंद सावरकर ने जेल से बाहर आने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगी थी। गांधी और सावरकर के बीच ऐसे सैकड़ों मतभेद गिनाए जा सकते हैं। यही वजह है कि गांधी को समर्पित संस्था की पत्रिका में सावरकर विशेषांक निकाले जाने की आलोचना हो रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है, गांधी की हत्या के मामले में सावरकर भी आरोपी बनाया गया था।
गांधी हत्या में सावरकर की भूमिका : 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या हुई थी। इसके छठे दिन सावरकर को गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ्तार किया गया था। गांधी की हत्या के मामले में कुल सात लोगों को सजा हुई थी। इनमें से नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी व शेष को उम्र कैद की सजा हुई थी। इस मामले में हिंदू महासभा के नेता सावरकर पर भी मुकदमा चला था लेकिन ‘स्वतंत्र साक्ष्यों’ के अभाव में वह छूट गए थे।
तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने 18 जुलाई 1948 को श्यामाप्रसाद मुखर्जी को खत लिखते हुए स्पष्ट किया था कि उनके दिमाग़ में कोई संदेह नहीं है कि हिंदू महासभा का अतिवादी धड़ा गांधी हत्या के षडयंत्र में शामिल था। बता दें कि हिन्दू महासभा की स्थापना सावरकर ने ही की थी।
षड्यंत्र की नए सिरे से जांच के लिए 22 मार्च 1965 में एक कमीशन बना। पहले इसकी अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील गोपाल स्वरूप पाठक ने की। पाठक के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद कमीशन की जिम्मेदारी जस्टिस जीवनलाल कपूर को मिली। इसलिए कमीशन को कपूर कमीशन के नाम से भी जाना जाता है। तीन साल की गहन छानबीन के बाद कमीशन इस नतीजे पर पहुंचा था कि सावरकर और उनका संगठन गांधी हत्या के षड्यंत्र में शामिल था। हालांकि सावरकर की मृत्यु 1966 में ही हो गयी थी, इसलिए उन पर दोबारा केस नहीं चल सका।