जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने वहां के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। मलिक उस समय जम्मू-कश्मीर के गवर्नर थे, जब वहां से धारा 370 हटाया गया था। 2019 में पांच अगस्त को केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया था। इस फैसले के चार साल पूरा होने से कुछ ही दिन पहले अब्दुल्ला ने जनसत्ता.कॉम के संपादक विजय कुमार झा से ‘बेबाक’ कार्यक्रम में बातचीत की। इस दौरान उन्होंने धारा 370 हटाए जाने से एक दिन पहले हुई अपनी नजरबंदी के दौरान की कई आपबीती भी सुनाई।
5 अगस्त, 2019 को जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को निरस्त किया गया तब सत्यपाल मलिक ने बतौर राज्यपाल सरकार के इस फैसले का समर्थन किया था। 30 अगस्त, 2019 को एक इंटरव्यू में मलिक ने कहा था कि “सरकार ने इसके लिए लोकतांत्रिक रास्ता अख्तियार किया। ऐसा नहीं है कि मोदी जी ने अपनी जेब से किसी कागज के टुकड़े को निकाल संसद के दोनों सदनों में पास करवा लिया।” मलिक ने तब एक विवादित बयान देते हुए कहा था, जो लोग 370 के हिमायती हैं, चुनाव में लोग उन्हें जूतों से मारेंगे।
हालांकि अब सत्यपाल मलिक खुद धारा 370 और 35 ए को निरस्त करने की मुखालफत करते नजर आते हैं। उन्होंने अपने एक हालिया इंटरव्यू में कहा था कि चार अगस्त की रात उन्हें एक पत्र भेजा गया था, पांच अगस्त 2019 की सुबह उन्होंने उस पत्र पर हस्ताक्षर कर दिल्ली वापस भेजा।
बाद में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राज्यपाल सत्यपाल मलिक की सहमति को ही जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति बताई। क्योंकि उस समय जम्मू कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं थी। तो सरकार की सहमति का मतलब वास्तव में राज्यपाल यानी सत्यपाल मलिक की सहमति थी।
सत्यपाल मलिक पर क्या बोले अब्दुल्ला?
सत्यपाल मलिक के हलिया सरकार विरोधी बयानों के बारे में एक सवाल के जवाब में अब्दुल्ला ने कहा, “मैं नहीं जानता कि सत्यापाल मलिक अभी जो कुछ कह रहे हैं वो क्यों कह रहे हैं और पहले जो कहते थे वो क्यों कहते थे। मेरे पास उनके बारे में सोचने का बहुत वक्त नहीं है। मैं यह नहीं भूल सकता कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर की जनता से झूठ बोला।”
अब्दुल्ला आगे कहते हैं, “वह स्टेट के राज्यपाल थे और उन्होंने टीवी पर जाकर जम्मू-कश्मीर की जनता से कहा कि डरने की कोई जरूरत नहीं है। कुछ भी बुरा नहीं होगा। जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। अगर उन्हें सच्चाई नहीं पता थी तो ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। अगर आपको नहीं पता तो साफ-साफ कह दीजिए मुझे नहीं पता है कि क्या होने वाला है। ये ठीक है। लेकिन राजभवन से यह कहना कि आपको कुछ खतरा नहीं है। कुछ नहीं होगा जम्मू-कश्मीर को। ये सब अफवाह है। आप लोगों से झूठ बोला जा रहा। डराया जा रहा है। और फिर इसके दो दिन बाद सब-कुछ हो जाता है।”
सत्यपाल मलिक पर यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर की जनता से झूठ बोला था। हालांकि राज्यपाल रहते उन्होंने यह कभी नहीं माना कि उन्होंने झूठ बोला था। तब यही कहा था, “मैंने जो कहा, सही कहा। मैं ऑफिशियल सीक्रेट्स जाहिर नहीं कर सकता। मैंने संविधान के तहत गुप्त रखने की शपथ ली है। लोगों को यह पता होना चाहिए था। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने धारा 370 खत्म करने को चुनावी मुद्दा बनाया था और उसे अपने घोषणा पत्र में भी शामिल किया था।”
मलिक ने एक इंटरव्यू में यह भी कहा था कि केंद्र सरकार ने जिस तरह से धारा 370 लागू किया (इंटरनेट बंद करना, गिरफ्तारियां, सख्त सुरक्षा इंतजाम आदि), वह उनकी सलाह के खिलाफ था। मलिक के मुताबिक उन्होंने केंद्र सरकार से कहा था कि उन्होंने राज्य में ऐसा माहौल बना दिया है कि धारा 370 हटाए जाने का कहीं विरोध नहीं होगा, अशांति का कोई खतरा नहीं होगा।
कैसे थे उमर अब्दुल्ला के नजरबंदी के दिन?
उमर अब्दुल्ला को 4 अगस्त को ही नजरबंद कर दिया गया था। पहले तो उन्हें घर पर ही रखा गया। लेकिन, पांच अगस्त को उन्हें उस मकान में ले जाया गया, जो कभी गुलाम नबी आजाद (पूर्व मुख्यमंत्री) का सरकारी निवास हुआ करता था। वहां एक फ्लोर पर अलग महबूबा मुफ्ती को भी रखा गया था। हालांकि, दो दिन बाद महबूबा को वहां से हटा दिया गया था।
उमर अब्दुल्ला ने नजरबंदी के दिनों को याद करते हुए कहा कि दो-तीन हफ्ते तक तो परिवार वालों से भी नहीं मिलने दिया। घर से कोई सामान आता था तो ऐसे चेक किया जाता था, मानो बम रखा हो। ईद की नमाज तक के लिए मोहलत नहीं दी। (उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी की आपबीती विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)
370 को हटाना गलता था- अब्दुल्ला
370 के फैसले पर ‘बेबाक’ में उमर अब्दुल्ला कहते हैं, “जम्मू-कश्मीर में आज भी उन लोगों की तादाद ज्यादा है जो समझते हैं कि 370 को हटाना गलत था। ये तो हमनें साबित कर के दिखाया है। पिछले दिनों जब बीडीसी और डीडीसी के चुनाव हुए तो वो लोग चुनाव जीते जो भाजपा की मुखालफत करते हैं, जो 370 को हटाने की मुखालफत करते हैं, जो 5 अगस्त 2019 के खिलाफ हैं। अगर हमारी मेजॉरिटी नहीं होती तो आज जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए होते। आखिर क्या कारण है कि पांच साल के बाद भी आज जम्मू-कश्मीर में केंद्र शासन लगा हुआ है। कुछ तो वजह होगी। अगर सारा कुछ बीजेपी के हक में तो वह फटाफट चुनाव कराते वहां पर।”
अब्दुल्ला ने कहा कि वे (केंद्र सरकार) राज्य विधानसभा से (370 हटाने) के अपने फैसले पर मुहर लगवाना चाहेंगे और हम वह होने नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि यह जम्मू-कश्मीर की जनता की मर्जी के खिलाफ हुआ है और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इंसाफ करेगा। बता दें कि 2 अगस्त से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई है।
कितने वादे पूरे हुए?
उमर अब्दुल्ला का आरोप है कि धारा 370 को निरस्त किए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में डेमोक्रेटिक स्पेस कम हुआ है। वह कहते हैं, “370 हटाने के वक्त जो वादे किए गए थे उनमें से एक भी पूरा नहीं हुआ। कश्मीर के विकास और रोजगार का वादा किया गया था। गुड गवर्नेंस की बात कही गई थी। लेकिन अब तक तो देखने को कुछ नहीं मिला। हां ये है कि सरकार की तरफ से सख्ती ज्यादा बढ़ गई है। डेमोक्रेटिक स्पेस में कमी आयी है। जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से मीडिया को कंट्रोल किया जा रहा है, पहले शायद ही ऐसा कभी हुआ हो। इतना बदलाव तो जरूर आया है।”
अब्दुल्ला आगे कहते हैं, “केंद्र का दावा है कि वह जम्मू-कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप्मेंट पर काम कर रही है। रोड और टनल बना रही है। लेकिन इन सब का क्या फायदा जब लोगों की गाड़ियों को जगह-जगह पर रोका ही जा रहा है। फौज की गाड़ियों के गुजरने पर आम लोगों की आवाजाही रोक दी जाती है। जबकि फौज की गाड़ियां दूसरे चैनल पर जा रही होती हैं। बीच में डिवाइडर होता है। फिर किस बात का खतरा। और अगर खतरा है तो हालात ठीक कैसे हैं?
जब सरकार कहती है कि मिलिटेन्सी भी खत्म, हालात ठीक हो गई, पूरी नॉर्मेल्सी है… फिर लोगों की गाड़ियां क्यों रोकी जा रही है। अगर सरकार को लग रहा है खतरा है, तब तो यह मानना होगा कि हालात ठीक नहीं हैं।
इसके बाद उमर अब्दुल्ला एक और दूसरे उदाहरण से यह समझाते हैं कि कश्मीर में अब भी सब कुछ ठीक नहीं है। वह कहते हैं कि जब राज्यपाल साहब सड़क से गुजरते हैं तो 12 मिनट ट्रैफिक को रोका जाता है। मैं खुद ट्रैफिक लाइट पर रुकता हूं इस वजह से। फिर कहां है नॉर्मेल्सी? अगर प्रिकॉशन के तौर पर गवर्नर साहब के लिए आपको रास्ता बंद करना पड़ता है, जो शायद दिल्ली में प्रधानमंत्री के लिए भी नहीं किया जाता, फिर हालात ठीक कैसे हैं? सरकार के बयान और जमीनी हालात में फर्क है।”
क्या हिंसा में कमी आई है?
उमर अब्दुल्ला से पूछा गया कि 370 हटाए जाने का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि पिछले 30-35 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब मुहर्रम का जुलूस अपने पारंपरिक रास्ते से निकला हो, लेकिन इस बार ऐसा हुआ है। अब पत्थरबाजी नहीं होती, पैलेट गन नहीं चलाते। तो क्या अब जम्मू-कश्मीर में हिंसा कम हो गई है?
जवाब में अब्दुल्ला कहते हैं, “कर्फ्यू लगाकर जुलूस निकालना तो हर कोई कर सकता था। लेकिन हम कर्फ्यू लगाना नहीं चाहते थे। हां यह सही है कि पत्थरबाजी कम हुई है। लेकिन उसका कारण जानना चाहिए। क्या लोगों की सोच बदल गई है, या लोगों में डर ज्यादा है? मेरा मानना है कि लोगों में डर ज्यादा है। जब लोगों को घर से बाहर निकलने की इजाजत ही नहीं दी जाती तो पत्थरबाजी कहां से होगी। मामूली बातों पर पूरे गांव को सताया जाता है। बिना पूछे घर गिरा दिए जाते हैं। कुछ भी प्रोसेस के जरिए नहीं किया जा रहा है। कई ऐसे कारण हैं।”
केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे जम्मू-कश्मीर में आए बदलाव के दावों पर तंज करते हुए अब्दुल्ला कहते हैं, “ऐसे ऐसे इलाके जहां आतंकवादी हमले हम पूरी तरह से भूल गए थे। वहां पर दोबारा ये हमले देखने को मिल रहे हैं। जम्मू की पहाड़ियों में, राजौरी में, पुंछ में, जिस तरह के हमले पिछले दिनों देखने को मिले… जिस तरह फौज को निशाना बनाया गया। ऐसे हालात बहुत अरसे के बाद देखने को मिल रहे हैं। जिस तरह कश्मीर वादी में चुन-चुन कर अल्पसंख्यकों (नॉन मुस्लिम) को निशाना बनाया गया, उन्हें एक बार फिर पलायन करने को मजबूर होना पड़ा… ये सब बदलाव ही है।”