शहर: छपरा। जगह: राजद का मुख्य दफ्तर। समय सुबह करीब 9.30 बजे। तारीख 14 मई। सारण लोकसभा क्षेत्र से राजद की उम्मीदवार रोहिणी आचार्य के बाहर निकलने का इंतजार करते करीब 50 नेता-कार्यकर्ता-समर्थक एक बड़े शामियाने के नीचे बैठे हुए। सूरज की बढ़ती तपिश इंतजार को मुश्किल बना रही है। करीब एक घंटा और इंतजार करने के बाद रोहिणी अपने करीबी नेताओं के साथ कमरे से निकल कर शामियाने में आईं। कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से मुलाकात की। दस मिनट मेल-मिलाप के बाद रोहिणी गाड़ी में बैठती हैं। इसके बाद मीडिया से बातचीत शुरू होती है। 15-20 मिनट इसमें भी निकल जाते हैं। इसके बाद रोहिणी का काफिला धीरे-धीरे राजद दफ्तर से निकलने के लिए बढ़ता है। तभी सारी गाड़ियों को पीछे हट कर रास्ता बनाना पड़ता है।
राजद के मुखिया लालू प्रसाद को लेकर विशेष एसी बस दफ्तर के परिसर में दाखिल हो चुकी है। लालू पटना से पहुंचे हैं। अब रोहिणी का कार्यक्रम बदल जाता है। वह गाड़ी से उतर कर लालू के साथ हो लेती हैं और उनके साथ पहली मंजिल पर चली जाती हैं। इसी मंजिल पर रोहिणी ने इन दिनों अपना ठिकाना बनाया हुआ है।
सारण से रोहिणी आचार्य को जिताने के लिए 75 साल के लालू बीमारी के बावजूद लगातार छपरा आते-जाते रहते हैं और कई दिन तक डेरा जमाए रहते हैं। ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाने की डॉक्टरी सलाह के बावजूद लालू रोहिणी की जीत के लिए जितना कर सकते हैं, कर रहे हैं।
सारण में लालू क्यों लगाए हैं जी-जान
असल में यह सीट लालू के लिए प्रतिष्ठा की सीट है। यही वह सीट है जहां से लालू 1977 में पहली बार और 2009 में आखिरी बार सांसद बने। बीच में 1989 और 2004 में भी यहां से सांसद रहे।
सजायाफ्ता हो जाने के चलते चुनाव लड़ने के अयोग्य हुए तो 2014 में पत्नी राबड़ी देवी को लड़ाया। 2019 में समधी (तेज प्रताप के श्वसुर) चंद्रिका राय को उतारा। बीजेपी के राजीव प्रताप रूड़ी ने दोनों को हराया।
रूड़ी लगातार तीसरी बार सांसद बनने के लिए मैदान में हैं। रूड़ी को दो बार हरा चुके लालू किसी कीमत पर ऐसा होने देना नहीं चाहते। यही वजह है कि किडनी ट्रांसप्लांट के बाद संयमित जीवन जीने और उम्र संबंधी कुछ परेशानियों के बावजूद लालू अक्सर छपरा आकर कैंप करते हैं और रोहिणी की जीत के लिए योजना बनाते रहते हैं।
प्रबंधन पर सवाल, मुफ्त राशन का असर
लालू की मौजूदगी के बावजूद जमीनी स्तर पर चुनावी अभियान का वास्तविक प्रबंधन पूरी तरह सटीक हो, ऐसा नहीं लगता। राजद कार्यालय में ही राजद के एक पदाधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया- पैसों की कमी नहीं है, सही प्रबंधन की कमी है। क्षेत्र में प्रचार के लिए जाने के लिए कार्यकर्ता तैयार खड़े हैं, पर उनके लिए गाड़ी का इंतजाम कराने वाला कोई नहीं है। न ही कोई ऐसी व्यवस्था की गई है कि विभिन्न जातीय समूहों की आबादी वाले क्षेत्रों में संबंधित जातियों के कार्यकर्ताओं की टोली बना कर प्रचार के लिए भेजा जाए।
एक अन्य राजद कार्यकर्ता ने नाम सामने नहीं लाने की शर्त पर कहा कि पांच किलो मुफ्त राशन देने की केंद्र सरकार की योजना का बड़ा असर है और ऐसा लगता है कि इसके चलते अति पिछड़ी जातियां (ईबीसी) नरेंद्र मोदी के प्रभाव में हैं।
विकास और रोजगार के अभाव में इन जातियों के लिए सरकारी मदद का काफी महत्व है। मुख्य शहर से सटे एक महादलित बस्ती (नबीगंज) में हम पहुंचे तो पता चला कि वहां 29 अप्रैल को लगी आग में करीब दर्जन भर परिवारों के घर और सामान खाक हो गए थे। वहां लोगों का साफ कहना था कि जो हमें घर बनाने के लिए पैसे देगा, हम उसे ही वोट देंगे। हालांकि, सरकार की ओर से कई परिवारों को 12 हजार रुपये की तत्काल मदद दी गई थी।
मीडिया से दूरी
लालू अपने लोगों से लगातार ग्राउंड रिपोर्ट लेते रहते हैं। स्थानीय पत्रकार चंद्रशेखर बताते हैं, ‘लालू अक्सर आते हैं और लगातार रुकते हैं, पर पार्टी दफ्तर से बाहर कम ही निकलते हैं और मीडिया से भी दूर ही रहते हैं।
रोहिणी की टीम उन्हें भी मीडिया से दूर ही रखती है। लेकिन, मौका मिलते ही वह रूड़ी और पीएम मोदी पर ताबड़तोड़ हमले करती हैं। खुद के बाहरी होने और परिवारवाद के आरोपों पर अपनी दलीलें देती हैं। वह कहती हैं-
हमारा तो संस्कार है, बेटियां शादी होने के बाद जहां पति रहता है वहीं जाती हैं, पता नहीं भाजपा के संस्कार में क्या है, पर हमारा तो यही संस्कार है।
देखिए रोहिणी आचार्य का इंटरव्यू
रोहिणी का कहना है कि बिहार की जनता को बीजेपी उल्लू समझने की गलती कर रही है। नीचे वीडियो पर क्लिक कर सुनें उनकी पूरी बात:
बहुत पीछे रह गया है विकास
पहली बार चुनावी राजनीति में उतरीं रोहिणी का कहना है कि रूड़ी के सांसद रहते क्षेत्र का कोई विकास नहीं हुआ है। वैसे, छपरा में विकास का चेहरा कुछ खास दिखता भी नहीं है। गांवों की तो बात छोड़िए, मुख्य शहर में भी नहीं। सड़कों पर गंदगी, जाम एकदम आम समस्या है। शहरी इलाके में भी संकरी गलियों की भरमार है और दलित-महादलितों की कई बस्तियों में शौचालय तक नहीं हैं। हां, शहर में फ्लाईओवर जरूर निर्माणाधीन हैं।
रूड़ी पहली बार 1996 में यहां के सांसद बने। तब लालू बिहार के मुख्यमंत्री थे। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही धीरे-धीरे राजद की पकड़ यहां कमजोर होने लगी। 2014 में नरेंद्र मोदी के उभार के समय से यहां बीजेपी जमी हुई है। अब 20 मई को मतदान में जनता बीजेपी के पांव उखाड़ती है या लालू परिवार को नकारती है, यह चार जून को ही पता चलेगा।