किरण पाराशर
1990 के दशक की शुरुआत में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कर्नाटक में भाजपा और उसके सहयोगियों ने राजनीतिक विवाद पैदा करने के लिए एक सांप्रदायिक मुद्दे खोज निकाला था। उत्तर कर्नाटक के हुबली शहर में 1.12 एकड़ का एक मैदान है। वहां मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ा करते हैं। 1920 के दशक में हुबली-धारवाड़ नगर निगम ने यह जमीन अंजुमन-ए-इस्लाम को पट्टे पर दी थी।
भाजपा और उसके सहयोगियों जमीन के उस टुकड़े को सार्वजनिक मैदान घोषित करने और वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अभियान चलाया था। तनाव बढ़ने पर जब समझौते के लिए कानूनी रास्ता अपनाया गया, तभी साल 1994 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने का प्रयास किया। इससे इलाके में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, जिसके बाद पुलिस फायरिंग में पांच लोगों की मौत हो गई। इस घटना के बाद 1995 में गणतंत्र दिवस पर अंजुमन-ए-इस्लाम ने दोनों समुदायों के बीच सौहार्द बहाल करने के मकसद से राष्ट्रीय ध्वज फहराया, उसके बाद यह विवाद काफी हद तक खत्म हो गया।
क्या फिर 1994 जैसी स्थिति बनाना चाहती है भाजपा? : हुबली ईदगाह मैदान विवाद के लगभग तीन दशक बाद 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले दक्षिणपंथी समूहों ने एक और ईदगाह मैदान विवाद को हवा दी है। इस बार खोज दक्षिण बेंगलुरु की तरफ हुई है। कर्नाटक दक्षिण भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा सरकार बनाने में सफल हुई है।
बेंगलुरु के चामराजपेट क्षेत्र के ईदगाह मैदान का मुद्दा पार्टी को नगर परिषद चुनाव में भी मदद कर सकता है। यह चुनाव सितंबर 2022 के आसपास हो सकता है। चामराजपेट विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के बी० ज़ेड० ज़मीर अहमद खान विधायक हैं।
2.5 एकड़ में फैले इस मैदान का उपयोग मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान और बकरीद जैसे त्योहारों पर नमाज अदा करने के लिए करते हैं। अन्य दिनों में मैदान का इस्तेमाल स्थानीय युवा प्ले ग्राउंड के रूप करते हैं। साथ ही गणेश उत्सव और राज्य स्थापना दिवस के मौके पर मैदान में कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। भूमि पर मालिकाना हक किसका है, यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन अधिकार कथित तौर पर बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) और वक्फ बोर्ड दोनों के पास निहित हैं।
इस मैदान को लेकर पहली बार तनाव 1983 में पैदा हुआ था, जब गणेश उत्सव और बकरीद एक ही दिन पड़ गया था। इसके अलावा यह क्षेत्र काफी हद तक शांत ही रहा है। अभी कुछ सप्ताह पहले दक्षिणपंथी समूहों ने चामराजपेट ईदगाह मैदान को सार्वजनिक मैदान घोषित करने की मांग उठाई है। प्रशासन को बकरीद के मौके पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका थी। हालांकि सब शांतिपूर्वक ही बीत गया। अगली चिंता 15 अगस्त को लेकर है क्योंकि दक्षिणपंथी समूहों ने ईदगाह मैदान ने झंडा फहराने की घोषणा की है।
हालांकि कांग्रेस विधायक ज़मीर अहमद खान ने मुस्लिम समुदाय की तरफ से पहले ही मैदान में झंडा फहराने की पेशकश कर दी है। लेकिन दक्षिणपंथी समूह इस बात पर जोर दे रहे हैं कि झंडारोहण का आयोजन बीबीएमपी करे। संयोग से पिछले महीने ही बीबीएमपी के मुख्य आयुक्त तुषार गिरिनाथ ने कहा था कि सिविक बॉडी के पास जमीन का स्वामित्व नहीं है। तब दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने मुख्य आयुक्त का विरोध करते हुए कहा था कि उन्हें उक्त जमीन के विषय में जानकारी नहीं है।
मंगलवार को दक्षिणपंथी समूहों ने चामराजपेट में बंद का आह्वान किया था, जो शांतिपूर्ण रहा। जिन प्रदर्शनकारियों ने जबरन मैदान में घुसने की कोशिश की, पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया। भाजपा के सूत्रों ने स्वीकार किया कि ईदगाह मैदान का मुद्दा केवल चामराजपेट निर्वाचन क्षेत्र को प्रभावित नहीं करेगा। यह कांग्रेस का एक पारंपरिक गढ़ है। 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए ज़मीर अहमद यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ऑफर कर रहे हैं। ऐसे में इस सीट से अगर भाजपा कोई नैरेटिव गढ़ने में सफल होती है, तो उसका प्रभाव पूरे राज्य पर पड़ेगा।
1994 में हुबली ईदगाह मैदान विवाद के समय भाजपा इस फार्मूले को आजमा चुकी है। उस विवाद से पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े सहित कई भाजपा नेताओं ने पहचान बनाई थी। 1999 और 2004 के चुनावों में भाजपा धीरे-धीरे ही सही लेकिन पैठ बनाने में सफल रही थी। अंततः साल 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा राज्य के 224 सीटों में से 110 को जीतने में सफल रही। बी एस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने।
बताया जा रहा है कि चामराजपेट ईदगाह मैदान का मुद्दा कथित तौर पर उन चर्चाओं में उठा है जो हाल के दिनों में आरएसएस नेताओं ने सीएम बोम्मई के साथ की है। फिलहाल आधिकारिक तौर पर भाजपा इस मुद्दे से खुद को दूर दिखा रही है। गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा है, ”सरकार ने मंगलवार के बंद का किसी भी तरह से समर्थन नहीं किया।” वहीं कांग्रेस विधायक ने कहा है कि कोई यह नहीं कह रहा है कि ईदगाह मैदान में बच्चों को खेलने नहीं देंगे। मेरी आखिरी सांस तक ईदगाह मैदान खेल का मैदान बना रहेगा। इस साल से चामराजपेट ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराया जाएगा।