श्रीलंका से लेकर नेपाल और फ्रांस तक सरकारों के खिलाफ असंतोष जन आंदोलन बनकर सड़कों पर उतरा। कोविड के कुछ वर्षों के भीतर इन आंदोलनों के अगुआ रहे युवाओं के आक्रोश में श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में सरकारें धराशायी हो गईं। इंडोनेशिया और फ्रांस में युवाक्रोश से सरकारें सहम गईं। भारत के पड़ोस में तीन देशों—श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कुछ जनविरोधी फैसलों से आए उबाल में सरकारें नहीं बच पाईं। नेपाल में केपी शर्मा ओली को सत्ता से हटना पड़ा। यह घटनाक्रम नौ सितंबर को जेन जी प्रदर्शनकारियों द्वारा संसद परिसर में घुसकर आग लगाने और वरिष्ठ मंत्रियों के घरों को निशाना बनाने के बाद हुआ। जेन जेड के साथ बातचीत के बाद नेपाल में सुशीला कार्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बन गई।
पिछले साल, बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में तय आरक्षण के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हटा दिया। साल 2022 में, जब श्रीलंका में एक बड़ा आर्थिक संकट आया, तो जनता के गुस्से ने कोलंबो में हिंसक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया। वहां राजपक्षे बंधु, तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को देश छोड़कर जाना पड़ा।
विश्व बैंक ने 2024 में चेतावनी दी थी कि दक्षिण एशिया एक ऐसे रास्ते पर है, जिससे विकास के अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को बर्बाद करने का जोखिम है। इस चेतावनी से पहले साल 2022 में श्रीलंका में सरकार गिर चुकी थी। फिर साल 2024 में बांग्लादेश, अगस्त 2025 में इंडोनेशिया (हिंसक प्रदर्शन, हालांकि सरकार कायम) और अब एक महीने बाद नेपाल। पिछले कुछ साल एशिया के कई देशों में युवा-नेतृत्व वाले विद्रोह से भरे हुए हैं। ये ऐसे समय में हुए हैं, जब प्रमुख विकास आंकड़े श्रम बल में प्रवेश करने वालों के जीवन स्तर में सुधार नहीं ला पाए हैं।
साथ ही, सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग और व्यापारी वर्ग समृद्ध होता दिख रहा है। पिछले हफ्ते नेपाल के राजनीतिक वर्ग के बच्चों को सोशल मीडिया पर अपनी विलासितापूर्ण जीवनशैली का प्रदर्शन करने के लिए कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था और ‘नेपो किड्स’ शब्द चलन में आ गया। दरअसल, भ्रष्टाचार पर जेन जी का गुस्सा इसके केंद्र में है। 2024 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्टाचार रैंकिंग में नेपाल को 180 देशों में 107वां स्थान दिया गया था। बांग्लादेश को 151वां, श्रीलंका को 121वां और इंडोनेशिया को 99वां स्थान मिला था।
अगर राजनीति दिखावे की है, तो इन देशों के नेताओं ने खुद की मदद नहीं की है। इस हफ्ते की शुरुआत में, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो ने विश्व स्तर पर सम्मानित श्रीमुलयानी इंद्रावती को वित्त मंत्री के पद से हटा दिया। दरअसल, सांसदों को 3,000 डॉलर के बराबर मासिक आवास भत्ता मिलने वाला था। इसका खुलासा होने के बाद इंडोनेशिया में अशांति फैल गई। कई दिनों के हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद चार सितंबर को इस भत्ते को रद्द किया गया। यह भत्ता राजधानी जकार्ता में देश के उच्चतम मासिक न्यूनतम वेतन 337 डॉलर का लगभग 10 गुना था।
विश्व बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की कार्यकारी निदेशक इंद्रावती ने तीन राष्ट्रपतियों के अधीन 13 साल तक वित्त मंत्री के रूप में अपने राजकोषीय कौशल से इंडोनेशिया की छवि चमकाई थी।
भ्रष्टाचार के उच्च स्तर और राजनीतिक निरंतरता के अभाव के कारण आर्थिक विकास समावेशी नहीं रहा है, खासकर युवाओं को इससे जूझना पड़ रहा है। और ये सभी देश अपेक्षाकृत युवा हैं। संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या संभावना 2024 रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष नेपाल की औसत आयु 25 वर्ष थी, जो बांग्लादेश की 25.7 वर्ष से थोड़ी ही कम है। इंडोनेशिया में यह 30.1 वर्ष थी, जबकि श्रीलंका में 33.1 वर्ष।
जनसांख्यिकीय लाभांश कहां है
युवा आबादी वाले देश आर्थिक विकास को गति देने के लिए युवाओं पर निर्भर रहते हैं। यह लाभ, जिसे जनसांख्यिकीय लाभांश कहा जाता है, देश की जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव से आता है। इसके कारण कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात उन लोगों की तुलना में लगातार बढ़ रहा है जो काम नहीं करते—छोटे बच्चे और सेवानिवृत्त लोग।
जैसे-जैसे युवा अपनी शिक्षा पूरी करते हैं, वे श्रम बल में शामिल होने और घरेलू कंपनियों के लिए उपलब्ध प्रतिभाओं को बढ़ावा देने की उम्मीद करते हैं। प्रतिभाओं की संख्या में वृद्धि यह भी सुनिश्चित कर सकती है कि वेतन में ज्यादा वृद्धि न हो। इससे मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलती है, जिससे भविष्य के निवेशों में पूंजी निवेश करने में मदद मिल सकती है। इससे और अधिक रोजगार सृजन को बढ़ावा मिल सकता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि एशिया की कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में ऐसा नहीं हुआ है। एशियाई विकास बैंक ने जून में कहा था कि हालांकि उल्लेखनीय और काफी हद तक टिकाऊ विकास हुआ है, लेकिन इसके साथ लाखों नए रोजगार पैदा नहीं हुए हैं।
शहरी इलाकों में, ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़ा निर्माण लाखों युवाओं के लिए श्रम बाजार में प्रवेश का जरिया हुआ करते थे। लेकिन अब ज्यादातर औद्योगिक उत्पादन यांत्रिकीकृत हो गया है। लिहाजा यह ऐसा दौर है, जहां इन पारंपरिक क्षेत्रों में रोजगार बहुत कम हो गए हैं। आज एक औसत कार फैक्टरी में 25 साल पहले जितने कर्मचारियों की जरूरत थी, उसका लगभग 15 फीसद ही रोजगार उपलब्ध है। इसी तरह, हर जगह बार-बार होने वाला कलपुर्जों को जोड़ने का काम भी अब बढ़ते स्वचालन की भेंट चढ़ गया है।
पिछले साल विश्व बैंक ने चेतावनी दी थी कि दक्षिण एशिया एक ऐसे रास्ते पर है, जहां विकास का जनसांख्यिकीय लाभांश बर्बाद होने का खतरा है। बैंक के अनुसार, 2000 से 2023 तक दक्षिण एशिया ने औसतन प्रति वर्ष एक करोड़ नौकरियां पैदा कीं, जो जरूरत के आधे से थोड़ा अधिक है।
उच्च युवा बेरोजगारी
इंडोनेशिया में, साल 2024 में राष्ट्रीय औसत बेरोजगारी दर 4.91 फीसद थी, लेकिन 20-24 आयु वर्ग के लोगों के लिए बेरोजगारी दर तीन गुना से भी अधिक थी: 15.34 फीसद। बांग्लादेश में, 2023 में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 3.35 फीसद थी। हालांकि, 15-24 आयु वर्ग के लोगों के लिए बेरोजगारी दर 8.24 फीसद थी, जो सर्वाधिक थी।
नेपाल में, देश के सांख्यिकी कार्यालय ने जुलाई में कहा था कि रोजगार की चुनौती महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने नेपाल में जनसांख्यिकी लाभांश नामक एक रिपोर्ट में कहा, विदेशी रोजगार और प्रेषण पर उच्च निर्भरता, औपचारिक क्षेत्र में सीमित औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन नीति-निर्माताओं के लिए चुनौतियां बन गए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक श्रम बाजार क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है। बेरोजगारी 2017-18 में 11.4 फीसद से बढ़कर 2022-23 में 12.6 फीसद हो गई। अल्प-रोजगार की स्थिति होने से 15-24 वर्ष की आयु वर्ग के नेपाली रोजगार की तलाश में विदेश जा रहे थे। इसके परिणामस्वरूप देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग एक चौथाई हिस्सा विदेश से आने वाले धन का था।
ये रुझान उभरते क्षेत्रों और उद्योगों में घरेलू रोजगार सृजन की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं, ताकि प्रतिभाओं को बनाए रखा जा सके और अर्थव्यवस्था को स्थायी रूप से सहारा दिया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया कि पर्याप्त रोजगार सृजन के बिना नेपाल अपने जनसांख्यिकीय लाभांश के आर्थिक लाभों से वंचित रह सकता है।
युवा आबादी, आर्थिक चिंताएं
जेन जी नाम से प्रसिद्ध नेपाल का यह आंदोलन आठ सितंबर को युवा प्रदर्शनकारियों, खासकर 28 साल से कम उम्र के लोगों के साथ शुरू हुआ। यह पिछले हफ्ते फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, एक्स और यूट्यूब सहित 26 सोशल मीडिया मंचों पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ था, क्योंकि ये सरकार के आदेशों का पालन नहीं कर रहे थे। सरकार ने कहा कि मंचों के पंजीयन के निर्देश का उद्देश्य बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को नियंत्रित करना था।
नेपाल की कुल जनसंख्या में 16 से 25 आयु वर्ग की हिस्सेदारी लगभग 20.8% है, जबकि 40.68% लोग 16 से 40 आयु वर्ग के हैं। हालांकि यह आंदोलन अन्य जनसांख्यिकीय समूहों में भी फैल गया, लेकिन युवाओं में असंतोष को एक प्रमुख प्रेरक कारक के रूप में देखा गया, जिसमें अवसरों तक पहुंच की कमी का मुद्दा ‘नेपो किड्स’ यानी राजनेताओं के बच्चों के खिलाफ नारेबाजी में शामिल था।
विश्व बैंक के 2024 के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, नेपाल की प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 1,447 डॉलर होगी, जबकि वैश्विक औसत 13,673 डॉलर है। नेपाल में रिकॉर्ड शुद्ध प्रवास (एक वर्ष में लोगों के आगमन और बहिर्गमन के बीच का अंतर) भी देखा गया है, जो 2023 में चार लाख से अधिक हो गया, जबकि 2000 में यह 1.47 लाख था।
बांग्लादेश में भी युवाओं ने ही विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। 15 से 29 आयु वर्ग कुल जनसंख्या का 25% है। हालांकि बांग्लादेश ने पिछले कुछ दशकों में आर्थिक विकास में प्रगति की है, फिर भी उसे धन वितरण के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 2024 में इसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी 2,593 डॉलर थी। महंगाई दर भी 2024 में 10.5% तक पहुंच गई, जबकि वैश्विक औसत तीन फीसद है।
वर्ष 2023 में श्रीलंका की युवा आबादी (15 से 29 वर्ष की आयु के बीच) 23.6 फीसद थी। अरागालय विरोध प्रदर्शन (सिंहली भाषा में संघर्ष के लिए शब्द) इस मायने में अलग थे कि आर्थिक मंदी के दौर में सभी आयु वर्ग के लोगों की इसमें व्यापक भागीदारी थी। 2022 में महंगाई दर के चरम पर पहुंचने के बाद अर्थव्यवस्था अब कुछ स्थिर है। 2024 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 4,515 डॉलर था, जो क्षेत्र के बाकी हिस्सों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है।
राजनीतिक अस्थिरता का रहा है लंबा इतिहास
1951 में राणा राजवंश को उखाड़ फेंकने के बाद नेपाल में संसदीय प्रणाली की स्थापना हुई, लेकिन इसके कारण अगले कुछ दशकों में राजनीतिक नेताओं के बीच सत्ता के लिए और अधिक प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। नेपाल 2008 में एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना और तब से अब तक 14 सरकारें बन चुकी हैं। किसी भी सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
देश में मुख्य राजनीतिक दल कम्युनिस्ट, कांग्रेस पार्टी और माओवादी हैं। साथ ही राजतंत्र या संवैधानिक राजतंत्र की वापसी के पक्षधर राजतंत्रवादी भी सक्रिय हैं। पिछले दशकों में सात संविधान लागू किए गए, जिनमें से सबसे हालिया 2015 में लागू हुआ, जो निरंतर राजनीतिक संकटों को दर्शाता है। पुराने राजनेताओं का शासन, जो अक्सर एक-दूसरे के साथ गठबंधन में होते थे, निराशा का एक प्रमुख स्रोत माना जाता रहा है। इसने इस धारणा को भी बल दिया कि सभी नेता एक ही भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा हैं, जो केवल अभिजात्य वर्ग को समृद्ध बनाने के लिए काम करते हैं।
बांग्लादेश के मामले में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। 1971 में इसकी स्थापना के बाद से ही इसे राजनीतिक संकटों और कार्यवाहक सरकारों के दौर का सामना करना पड़ा है। अवामी लीग की शेख हसीना और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की खालिदा जिया ने हाल के दशकों में राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखा है। 2009 से 2024 तक लगातार शासन करते हुए, हसीना को राजनीतिक विरोध सहित असहमति को दबाने के लिए जाना जाता था। हसीना के बाद अब एक अंतरिम सरकार सत्ता में है, लेकिन अल्पसंख्यकों पर हमलों के बीच धार्मिक इस्लामी कट्टरवाद के बढ़ने की चिंताएं सामने आई हैं।
श्रीलंका में, सिंहली भाषी बहुसंख्यक समुदाय और तमिल भाषी अल्पसंख्यक समुदाय के बीच 1983 से 2009 तक गृहयुद्ध चला। इस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, लोगों का पलायन हुआ और राजनीति व राज्य में जनता का विश्वास कमजोर हुआ। प्रमुख राजनीतिक हस्तियों की सूची में राजपक्षे परिवार और पूर्व प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे जैसे लोग लंबे समय से शामिल रहे हैं। यहां भी नेताओं को भ्रष्ट माना जाता रहा है। 2024 में विरोध प्रदर्शनों के बाद हुए पहले राष्ट्रपति चुनाव में गैर-वंशवादी मार्क्सवादी नेता, 56 वर्षीय अनुरा कुमारा दिसानायके, 42% वोटों के साथ विजयी हुए। विश्लेषकों ने इसे अतीत से नाता तोड़ने का आह्वान माना।