देश के प्रधानमंत्री का यह तर्क बहुत अजीब है कि ‘सरकार ने काला धन खत्म करने के लिए ही इलेक्टोरल बॉन्ड की परंपरा को लागू किया।’ प्रधानमंत्री ने एक न्यूज एजेंसी को दिए साक्षात्कार में ऐसी कई बातें कही हैं जो व‍िश्‍वसनीयता के ल‍िहाज से संदेह के घेरे में हैं। असल में यह साक्षात्‍कार भी व‍िश्‍वसनीयता के संदेश से परे नहीं माना जा सकता, क्‍योंक‍ि देश का मीडिया आजतक इस बात के लिए परेशान रहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद दस वर्षों में उन्होंने कोई भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं किया, जबकि साक्षात्कार कई द‍िए और इन साक्षात्‍कारों का मौका भी चुनिंदा संस्थानों को ही म‍िला।

काले धन को इलेक्टोरल बांड के माध्यम से सफेद किया गया

आखिर प्रधानमंत्री क्यों ऐसा कहते हैं कि चुनाव में तो काला धन आता ही है और उद्योगपतियों के साथ आम जनता भी चंदा देने में भागीदारी निभाती है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने ही इस वादे पर थे कि उनके सत्ता में आते ही देश की कौन कहे, विदेशी बैंकों से भी काला धन निकालकर ले आया जाएगा, जिसमें से देश की सभी लोगों के बैंक खाते में पंद्रह पंद्रह लाख रुपए जमा करा दिए जाएंगे।

प्रधानमंत्री का साक्षात्कार चर्चा का विषय बना हुआ है

अब तो विपक्ष का यह आरोप भी साफ हो जाता है कि जो भी भ्रष्टाचारी भाजपा का दामन थाम लेता है, वह उसकी वाशिंग मशीन में धुलकर साफ हो जाता है। विपक्ष कई ऐसे नेताओं का नाम भी गिनाता है, जिन्हें सरकार ने कुछ दिन पहले तक भ्रष्टाचारी और दागी माना, और आज वही कई राज्यों के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री तक बना दिए गए हैं। आज देश में प्रधानमंत्री का यह साक्षात्कार चर्चा का विषय बना हुआ है और इसका विश्लेषण सब अपने अपने तरीके से कर रहे हैं।

सत्तारूढ़ भाजपा ने 400 पार का नारा किस आधार पर दिया

कई बातों के अतिरिक्त समाज में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि किस आधार पर सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा यह नारा दिया जा रहा है कि अबकी बार चार सौ पार…। विश्लेषकों का यह विश्लेषण है कि यह केवल देश को गुमराह करने का नारा है। सच में ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है, बल्कि मतदाता भ्रमित हों कि फिर से तीसरी बार पुरानी सरकार ही बनने जा रही है। इसलिए वे अपना कीमती वोट किसी और दल को देकर खराब करने के बजाय सत्तारूढ़ के पक्ष में ही मतदान करें। विश्लेषकों की मानें तो इस जुमले को जानबूझकर गढ़ा गया है, ताकि मतदाता भ्रमित हों और मतदान भाजपा के पक्ष में करे।

प्रधानमंत्री ने नोटबंदी पर भी अपने साक्षात्कार में कारण बताते हुए कहा कि चुनाव के दौरान बड़ी मात्रा में इन नोटों का दुरुपयोग किया गया और सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया कि काले धन के धंधे पर अंकुश लगे। उनका यह कहना भी हास्यास्पद है, क्‍योंक‍ि ऐसा कुछ हुआ हो ऐसा नहीं लगता। चुनाव आयोग ने इस बार जो जब्‍ती की है, वह 75 सालों में सबसे ज्‍यादा है।

आखिर काले धन को समाप्त करने में सरकार इतनी असफल साबित क्यों हो रही है!? काले धन के खेल में जो लिप्त हैं, उनके खिलाफ मुहिम चलाकर उस धन को सरकारी खजाने में जमा कराने का साहस किसी सरकार द्वारा अब तक क्यों नहीं दिखाया गया। उत्तर साफ है, आजादी के बाद से अब तक किसी भी सरकार ने ऐसा कोई प्रयास ही नहीं किया।

काले धन को बंद करने का प्रयास इसलिए भी नहीं किया गया; क्योंकि यदि ऐसा कर दिया जाता, तो बाहुबली चुनाव कैसे लड़ पाते? आजादी के पहले तो बाहुबली और दागी राजनीति में आते ही नहीं थे। उस समय तो महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे महानायक ही राजनीति में आते थे। आज क्या बात हो गई कि राजनीति करने वाले अपने चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च कर देते हैं और देश के शीर्ष पर बैठकर अपने हिसाब से उपकृत व्यक्तियों का हित साधने लगते हैं।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इसलिए तो हार गई, क्योंकि उसके लिए यह प्रचार करने में वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी सफल रही कि कांग्रेस सरकार निकम्मी है, भ्रष्ट है, उसके पास काले धन का अंबार है और उसी काले धन को देश से ही नहीं, विदेशी बैंकों से लाकर सबके खाते में जमा करा दिया जाएगा। यह भी वादा क‍िया गया था क‍ि उनकी सरकार बिल्कुल पाक-साफ होकर देश में जनता और उसके विकास के लिए कटिबद्ध रहेगी। लेकिन, ऐसा कुछ भी पिछले दस वर्षों में नहीं हो पाया और कालेधन का भंडार वैसे का वैसा ही पड़ा है। क्या ऐसा कभी नहीं हो सकता कि चुनाव बिना कालेधन का हो और सारे नेता देश की सेवा के लिए कटिबद्ध हों!

कहते हैं आदर्श से सावधान रहना। आदर्श के कारण ही आपका जीवन खाली रह गया है। आदर्श के कारण ही आदर्श फल-फूल नहीं पाए। अगर सच में आप चाहते हैं कि आदर्श आपके जीवन को भर दे, तो आदर्शों को बिल्कुल भूल जाएं और जीवन के साक्षी हो जाएं। जैसा है, है। जो है, है। इसमें रत्ती भर फेरबदल करने की आकांक्षा मत पालें? आप हेर-फेर कर कैसे सकते हैं, आज जीवन का यही लक्ष्य हो गया है। भारत सत्य और अहिंसा का देश रहा है। यहीं राजा हरिश्चंद्र भी हुए थे, जिन्होंने सत्य के लिए अपने सुखों को न्योछावर कर दिया था, लेकिन आज तो हर कोई सत्य का मुखौटा लगाकर आपके सामने प्रस्तुत होता है। क्या अब देश इसी तरह चलेगा?

इसी साक्षात्कार में पूछा गया कि विपक्षियों को जेल में डाला जा रहा है? प्रधानमंत्री विपक्षी दलों के इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि ईडी द्वारा दर्ज तीन प्रतिशत केस ही राजनेताओं के खिलाफ हैं, शेष 97 प्रतिशत मामले उन लोगों या कंपनियों के विरुद्ध हैं, जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं। ईमानदार व्यक्ति को कोई डर नहीं है, लेकिन भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को अपने पाप का डर है। प्रधानमंत्री का यह कहना शत-प्रतिशत सही है कि डरते वही हैं, जो असंवैधानिक कार्यों में लिप्त होते हैं, भ्रष्टाचारी होते हैं, काले धन के दम पर समाज पर राज करते हैं।

काश, हमारी सभी संस्थाएं असंवैधानिक कार्य करना बंद कर दे, भ्रष्टाचार बंद हो जाए और काला धन-बल खत्म हो जाए। इससे बड़ा देश के लिए हितकारी और कुछ हो ही नहीं सकता, पर इस कार्य को खत्म करने की जिम्मेदारी किसकी बनती है! निश्चित रूप से इसकी सीधी जिम्मेदारी भारतीय संविधान के अनुसार सरकार की ही होती है, लेकिन क्या कभी कोई सरकार इसे खत्म कर पाएगी?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)