देश में मुकदमेबाजी और लंबित मामलों की संख्या बीते सालों में तेजी से बढ़ी है। केंद्र सरकार की एक रपट में जारी आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है। सरकार ने लटके मामलों को निपटाने के लिए लोक अदालतों की मदद ली है और इन अदालतों में कुल 24,45,82,383 विवादित मामलों का निपटारा किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि चार वर्षों में, साल दर साल सरकारी तंत्र के पास मामलों की संख्या बढ़ी है। निपटाए गए मामलों में 4,83,08,835 लंबित मामले और 19,62,73,548 मुकदमेबाजी के पूर्व मामले शामिल हैं। भविष्य में ऐसे मामलों में कमी लाई जा सके, इसके लिए न्यायालयों के आधुनिकीकरण की दिशा में काम किया जा रहा है।
मंत्रालय की रपट के मुताबिक, वर्ष 2021 में मुकदमेबाजी के पूर्व मामले 72,06,294 और लंबित मामलों की संख्या 55,81,743 थी। इसी प्रकार वर्ष 2022 में मुकदमेबाजी के पूर्व मामलों की संख्या 3,10,15,215 और लंबित मामलों की संख्या 1,09,10,795 रही। वर्ष 2023 में मुकदमेबाजी के पूर्व मामलों की संख्या 7,10,32,980 और लंबित मामलों की संख्या 1,43,09,237 रही, जबकि 2024 में मुकदमेबाजी के पूर्व मामलों की संख्या 8,70,19,059 और लंबित मामलों की संख्या 1,75,07,060 रही।
इन मामलों को राष्ट्रीय लोक अदालतों में रखा गया था और इनका निपटारा अदालतों द्वारा किया गया है। रपट के मुताबिक, जघन्य अपराधों, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, बच्चों आदि से संबंधित मामलों के निपटारे के लिए केंद्र सरकार ने त्वरित निपटान न्यायालयों की स्थापना की है और ऐसी 857 अदालतें कार्यरत हैं। निर्वाचित सांसदों व विधायकों से संबंधित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए नौ राज्यों में दस विशेष अदालतें संचालित की जा रही हैं। देशभर में 404 अन्य पाक्सो न्यायालयों सहित कुल 745 त्वरित निपटान विशेष अदालतों ने 3,13,000 मामलों का निपटारा किया है।
केंद्र सरकार के टेली-ला कार्यक्रम के तहत जरूरतमंदों और वंचितों को कानूनी सलाह देने की सुविधा दी जा रही है। इस केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक, यहां महिलाओं की तुलना में पुरुषों ने अधिक मदद ली है। विभिन्न श्रेणियों में इस कार्यक्रम के तहत 11,005,420 लोगों ने पंजीकरण कराया था और 1,08,69,661 लोगों को सलाह दी गई है। सलाह लेने वालों में 60.47 प्रतिशत पुरुष और 39.53 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं।
फरवरी 2025 तक हुई है 736 करोड़ से अधिक की वसूली
देश में कुल 28 आभासी न्यायालयों का संचालन किया जा रहा है। इन न्यायालयों ने 6.95 करोड़ से अधिक मामलों को संभाला है और 28 फरवरी 2025 तक 736.11 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। अब केंद्र सरकार न्यायालयों को और अत्याधुनिक बनाने के लिए ई-न्यायालय की तीसरे चरण की योजना लागू कर रही है। इस योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी जा चुकी है और इस पर 7210 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इस चरण में डिजिटल, ऑनलाइन और कागज-रहित न्यायालयों को तैयार किया जाएगा।
पहले और दूसरे चरण में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों की प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कार्य किया गया था। इसके तहत वर्ष 2023 तक 18,735 जिला और अधीनस्थ न्यायालयों को कंप्यूटरीकृत किया गया है। दूसरी ओर, मामलों की संख्या में कमी लाने के लिए कुटुंब न्यायालयों की भी मदद ली जा रही है और देश के सभी केंद्र शासित प्रदेशों व राज्यों में 914 अदालतें संचालित की जा रही हैं।