बिहार की राजधानी पटना में  नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पहल पर 23 जून को विपक्षी एकता का प्रदर्शन करने के ल‍िए बैठक होने वाली है। सीएम हाउस में होने वाली बैठक 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने की रणनीति बनाने के ल‍िए है। नीतीश की मुह‍िम में बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के अलावा, कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्‍ल‍िकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्‍यमंत्री भगवंत मान, स्‍टाल‍िन समेत कई विपक्षी नेताओं के श‍िरकत करने की संभावना है। लेक‍िन, इससे पहले जो हो रहा है वह व‍िपक्ष को मजबूत करने वाले संकेत नहीं हैं।

पटना के कार्यक्रम से एक द‍िन पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट किया है कि विपक्ष की बैठक ‘दिल मिले ना मिले, हाथ मिलाते रहिए’ वाली कहावत को चरितार्थ करती है। उधर, बैठक से पहले सपा अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने शर्त रख दी है कि कांग्रेस को यूपी से दूर रहना चाहिए। इन बयानों को दोनों पार्ट‍ियों के क‍िसी गठबंधन से दूर रहने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में किसी गठबंधन के बिना विपक्ष, बीजेपी को कैसे रोक पाएगा?

एक और बात यह हुई क‍ि पटना में कुछ पोस्‍टर लगा द‍िए गए ज‍िनमें अरव‍िंंद केजरीवाल को पीएम का दावेदार बता द‍िया गया। पोस्‍टर में आम आदमी पार्टी का नाम ल‍िखा है, लेक‍िन पार्टी का कहना है क‍ि यह काम उनके व‍िरोध‍ियों का है, आप कार्यकर्ताओं का नहीं। पोस्‍टर कांड की अनदेखी भी कर लें तो गठबंधन की कमजोर संभावना और 2019 में हुए चुनाव के नतीजे व‍िपक्षी एकता और नीतीश की पहल की कामयाबी के ल‍िहाज से अच्‍छे संकेत नहीं दे रहे। 

पहले 2019 लोकसभा चुनाव नतीजों की बात…

पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2019 के आंकड़ों पर नजर डालें तो 7 राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्षी गठबंधन की संभावना ना के बराबर है। ये राज्य हैं- गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड। 2019 में बीजेपी ने अपनी 303 सीटों में से 106 सीटें इन्हीं 7 राज्यों से हासिल की थी।

इन 7 राज्यों में क्यों मुश्किल है विपक्ष की राह?

इन सातों राज्यों में बीजेपी का सीधा मुकाबला कांग्रेस से होता है। पिछले चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस के अलावा कोई ऐसी दूसरी विपक्षी पार्टी थी ही नहीं, जिसका वोट शेयर 5 फ़ीसदी से ज्यादा रहा हो। संभव है कि अगर 2019 में भी विपक्षी एकता जैसी कोई बात होती तो कांग्रेस इसका हिस्सा नहीं होती। और होती भी तो इन राज्यों के चुनाव नतीजों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। वैसे, विपक्षी एकता पर कांग्रेस का रुख भी साफ नहीं है। 

उत्‍तर प्रदेश का समीकरण

यूपी देश का ऐसा राज्य है, जहां सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोकदल मिलकर चुनाव लड़े थे, इसके बावजूद बीजेपी 62 सीटों के साथ करीब 50 फीसदी वोट शेयर हासिल करने में सफल रही थी। महागठबंधन के बावजूद सपा के खाते में महज 5 और बसपा के खाते में 10 सीट आई थी। 2019 के बाद दोनों दलों के रास्ते जुदा हो गए।

ममता बनर्जी का अलग आलाप

ममता ने कहा है कि बंगाल में कांग्रेस का सीपीआई (एम) की अगुवाई वाली लेफ्ट पार्टियों से गठबंधन है। ऐसे में TMC, कांग्रेस से गठबंधन नहीं कर सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में टीएमसी और बीजेपी में कांटे की टक्कर थी। टीएमसी को 22 सीटें मिली थीं, तो बीजेपी को 18 सीटें। दोनों पार्टियों में वोट शेयर के मामले में भी कोई खास अंतर नहीं था। जहां टीएमसी का वोट शेयर 43.69% था, तो बीजेपी का वोट शेयर 40.64% था। कांग्रेस के खाते में 2 सीटें आई थीं।

इस बार अभी तक जो स्थिति है, उससे बंगाल में किसी विपक्षी गठबंधन की सूरत नजर नहीं आ रही है। और कोई गठबंधन हो भी गया और 2019 जैसे ही हालत रहे तो बीजेपी पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है।

ऐसे में नीतीश कुमार को 23 जून की बैठक का मकसद कामयाब करने के ल‍िए अभी बहुत सोचने और काम करने की जरूरत है।