5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया गया था। इसका ऐलान करने से पहले, चार अगस्त की रात में ही जम्मू-कश्मीर के तमाम बड़े नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं। नजरबंद किए गए नेताओं में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला भी शामिल थे। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने Jansatta.com के कार्यक्रम ‘बेबाक’ में अपनी नजरबंदी के दौरान की कई आपबीती बयां की।
केंद्र के फैसले के बारे में पता कैसे चला
उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि आशंका तो पहले हो गई थी, क्योंकि जब कुछ बड़ा होने वाला होता था तो इंटरनेट बंद किया जाता था। फिर मुझे और बाकी नेताओं को घर में ही बंद रहने के लिए कहा गया था। इसलिए मुझे आशंका तो हो गई थी कि कुछ बड़ा होने वाला है। लेकिन जो हुआ, उसका अनुमान भी नहींं था। 5 अगस्त 2019 की सुबह नजरबंदी में जब मैं अपने घर में बैठा था और टीवी पर संसद की कार्यवाही देख रहा था, तभी पता चला कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान कर दिया है।
महबूबा मुफ्ती से बात करने की इजाजत नहीं
उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि पहले तो मुझे घर में ही नजरबंद रखा गया, लेकिन धारा 370 हटाने का ऐलान होने के कुछ घंटों बाद एक मकान में ले जाया गया। उस सरकारी मकान में कभी गुलाम नबी आजाद रहा करते थे। उसी मकान में महबूबा मुफ्ती को भी नजरबंद रखा गया था। दोनों को अलग-अलग फ्लोर पर रखा गया था। सुरक्षाकर्मियों ने हमें साफ कह दिया था कि आपको किसी से बातचीत तक नहीं करनी है। मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं बाहर टहलने जा सकता हूं या नहीं? तो उन्होंने कहा- दिन में एकाध घंटा टहल सकते हैंं। साथ में यह हिदायत भी दी कि किसी से बात-मुलाकात नहीं करनी है। मैंने कहा कि फिर ये बता दीजिए कि महबूबा मुफ्ती किस समय वॉक करेंगी, ताकि मैं अपना समय अलग रखूं। हालांकि दो दिन बाद ही महबूबा मुफ्ती को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया था।
नजरबंदी में क्या-क्या हुआ?
उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि नजरबंदी के दौरान न तो मेरे पास मोबाइल था और न ही अखबार जैसी चीजें। पता ही नहीं लग पा रहा था कि बाहर क्या हो रहा है। करीब दो-तीन सप्ताह बाद मुझे घर के लोगों से मिलने की इजाजत मिली। घर से कुछ सामान आता तो ऐसे चेक करते थे, मानो बम रखा हो। जब मैं वॉक कर रहा होता था, तो मेरे पीछे मेरी आलमारी से लेकर सारी चीजें चेक की जाती थीं। कुछ दिन बाद ईद आई। ईद पर मैं अकेले नहीं रहना चाहता था। मैंने कहा कि मुझे कम से कम सेंटोर होटल भेज दीजिए, ताकि मैं ईद की नमाज वहां कैद में रह रहे अपने दोस्तों-परिचितों के साथ अता कर सकूं। उसके बाद फिर मुझे वापस ले आइएगा। लेकिन इसकी इजाजत भी नहीं मिली।
नजरबंदी में उमर अब्दुल्ला की आपबीती का वीडियो
नजरबंदी में आपकी किसी ने मदद की? इस सवाल पर उमर अब्दुल्ला मुस्कुराते हुए कहते हैं कि क्यों किसी को मरवाना चाहते हैं?
जब उनसे कहा कि नाम लिए बिना बता दीजिए तो अब्दुल्ला बोले- ये लोग (केंद्र सरकार) सीसीटीवी निकलवाकर चेक करने लगेंगे…मेरी किसी ने मदद नहीं की।
सत्यपाल मलिक ने बोला झूठ
उमर अब्दुल्ला ने उस समय के गवर्नर सत्यपाल मलिक पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि गवर्नर रहते हुए सत्यपाल मलिक यह भरोसा दिलाते रहे कि कुछ नहीं होगा और इतनी बड़ी बात हो गई।
एक नेता से सबसे ज्यादा गिला?
उमर अब्दुल्ला ने मदद करने वालों के बारे में तो नहीं बताया, लेकिन उस एक नेता की बात जरूर की जिनसे उन्हें सबसे ज्यादा शिकायत रही। उन्होंने कहा कि मुझे किसी से कोई खास उम्मीद नहीं थी, लेकिन एक नेता ऐसे थे जिनसे बहुत उम्मीद थी क्योंकि मेरे पिता फारूक अब्दुल्ला ने लोकसभा चुनाव में अपना इलेक्शन छोड़कर उनके लिए चुनाव प्रचार किया था। मेरे रोकने के बावजूद। मैंने उनको यह कह कर रोका कि आप अपना चुनाव छोड़ कर कहां हैदराबाद जाएंगे? लेकिन उन्होंने कहा कि मुझे दोस्ती का फर्ज अदा करना है। मेरे पिता दो दिन चंद्रबाबू नायडू के प्रचार में गए। लेकिन जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाया तो सबसे पहले चंद्रबाबू नायडू ने ही इसको समर्थन दिया। मुझे चंद्रबाबू नायडू से सबसे ज्यादा गिला है। उन्होंने दोस्ती की परवाह तक नहीं की।
5 अगस्त 2019 से कुछ वक्त पहले ही आपने कहा था कि मोदी सरकार में हिम्मत नहीं है कि अनुच्छेद 370 हटा दे? इस सवाल पर उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि मैं अब भी अपने बयान पर कायम हूं। 370 हटाया नहीं गया बल्कि उसे डाइल्यूट कर दिया गया है। कागजों में अनुच्छेद 370 भले हटा दिया गया हो लेकिन घाटी में हालात जस के तस हैं।
हालात ठीक तो क्यों नहीं हुए विधानसभा चुनाव?
उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि मोदी सरकार बार-बार कह रही है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य हुए हैं, आतंकी घटनाओं में कमी आई है। सब कुछ ठीक है तो आखिर क्या वजह है कि 5 साल बाद भी विधानसभा चुनाव नहीं हो पाए? आखिर सरकार को किस बात का डर है? अगर सब कुछ ठीक है तो विधानसभा चुनाव कराने चाहिए। अब्दुल्ला कहते हैं कि आज भी जम्मू कश्मीर की बहुसंख्यक आबादी अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ है। विधानसभा चुनाव होंगे तो यह साफ हो जाएगा।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में 2014 में आखिरी बार विधानसभा चुनाव हुए थे और 2018 से राज्य में गवर्नर के जरिए केंद्र सरकार का शासन चल रहा है।