अफगानिस्तान में तालिबान शासन के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी यात्रा प्रतिबंधों से छूट मिलने के बाद अगले हफ्ते भारत दौरा करने वाले हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ क्षेत्रीय हालात के मद्देनजर इस दौरे को अहम बता रहे हैं। अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से यह तालिबान सरकार के किसी मंत्री की पहली आधिकारिक भारत यात्रा होगी। भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है लेकिन हाल के दिनों में संपर्क तेज हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि मुत्तकी का ये दौरा भारत और अफगानिस्तान दोनों के लिए एक अहम कूटनीतिक क्षण है, क्योंकि इससे दशकों पुरानी भारत और तालिबान की दुश्मनी समाप्त होने की उम्मीद जगी है।

राजनीतिक परिदृश्य पर फिर से उभर रहा

भारत अतीत में अफगान तालिबान के विरोधी समूहों का समर्थन करता रहा है। इनमें वे समूह भी शामिल हैं जिन्होंने 2021 तक अफगान सरकार का नेतृत्व किया था, जबकि तालिबान को भारत के प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान का एक हथियार माना जाता था। मुत्तकी की भारत यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने काबुल के पास बगराम एअर बेस को वापस लेने की घोषणा की है। जिंदल यूनिवर्सिटी में अफगान अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर राघव शर्मा का कहना है कि इस समय मुत्तकी का आना इसलिए अहम है क्योंकि अफगानिस्तान में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। राघव शर्मा के मुताबिक, पाकिस्तानी सरकारों के साथ तालिबान के नजदीकी रिश्तों के कारण भारत उनके साथ अपने रिश्तों को लेकर सतर्क रहा है। शर्मा कहते हैं, मुत्तकी का दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अफगान मोर्चे पर बहुत कुछ हो रहा है। यह इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत का उससे बहुत धीमा और सतर्क तालमेल अब अपना असर दिखा रहा है।

कोलकाता में आलिया विश्वविद्यालय में अफगान-भारत संबंधों के शोधकर्ता मोहम्मद रियाज का कहना है कि 2010 से यह साफ हो गया था कि अफगान तालिबान अफगानिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य पर फिर से उभर रहा है। उनके मुताबिक, उस समय दुनिया भर के विभिन्न देशों ने तालिबान से संपर्क शुरू कर दिया था लेकिन भारत ने उनसे संपर्क करने में देरी की। वो कहते हैं, भारत पहले तालिबान से दूरी बनाए रखता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हालांकि तालिबान के काबुल पहुंचने के बाद भारत ने अपने राजनयिक कर्मचारियों को वापस बुला लिया और सीधा संपर्क स्थगित कर दिया, लेकिन जल्द ही उसने अपनी रणनीति बदल दी। भारत को एहसास हो गया था कि तालिबान से पूरी तरह दूरी बनाना संभव नहीं है। दिल्ली में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर अजय दर्शन बहिरा कहते हैं, भारत ने जल्द ही पर्दे के पीछे बातचीत शुरू कर दी ताकि तालिबान अपने क्षेत्र का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने दे।

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भारत और तालिबान की प्राथमिकताएं

स्थानीय मीडिया रपट के अनुसार,जब दोनों पक्षों के बीच कुछ विश्वास बहाल हुआ तो तालिबान ने 2022 में अपने एक राजनयिक को दिल्ली भेजा। हालांकि भारत ने अभी तक उसे अफगान दूतावास का कार्यभार संभालने की अनुमति नहीं दी है। 2024 में ऐसी खबरें आईं कि एक तालिबान राजनयिक ने मुंबई वाणिज्य दूतावास का प्रभार संभाल लिया है लेकिन दोनों ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया। 2022 में भारत ने काबुल में अपना दूतावास सीमित आधार पर फिर से खोला और 2025 में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में मुत्तकी से मुलाकात की, अंतत: मई 2025 में पहलगाम हमले के बाद दोनों विदेश मंत्रियों ने फोन पर बात की। लेकिन जयशंकर और मुत्तकी के बीच हुई इस बातचीत के बाद दोनों देशों की ओर से जारी किए गए बयानों में उनकी राष्ट्रीय प्राथमिकताएं दिखीं। भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा की बात की, क्योंकि वह चाहता है कि अफगानिस्तान फिर से भारत विरोधी आतंकी समूहों के लिए पनाहगाह न बने, जबकि अफगानिस्तान ने वीजा और व्यापार का उल्लेख किया क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय मान्यता और निवेश चाहते हैं।

अफगानिस्तान में भारत के कई हित

जिंदल यूनिवर्सिटी में अफगान अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर राघव शर्मा बताते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के विदेश मंत्री मुत्तकी का दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अफगान मोर्चे पर बहुत कुछ हो रहा है। यह इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत का उससे बहुत धीमा और सतर्क तालमेल अब अपना असर दिखा रहा है। अफगानिस्तान में भारत के कई हित हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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आलिया विश्वविद्यालय में अफगान-भारत संबंधों के शोधकर्ता मोहम्मद रियाज की मानें तो खासकर तब जब तालिबान विरोधी गुट बिखरे हुए हैं और उन्हें वैश्विक ताकतों का समर्थन नहीं मिल रहा। भारत अफगानिस्तान में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए तालिबान सरकार के साथ नजदीकी बढ़ा रहा है।

क्षेत्रीय सुरक्षा का मुद्दा

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अफगानिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति पर आपत्ति है, लेकिन इसके बावजूद वह तालिबान को नजरअंदाज नहीं कर सकता। क्योंकि अफगान तालिबान के साथ भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजंसियों की ओर से तालिबान और अन्य सशस्त्र समूहों को प्राक्सी के रूप में इस्तेमाल करने की चिंता भी शामिल है।

व्यापार को मिलेगी रफ्तार

भारत द्वारा अफगानिस्तान से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में अंजीर, हींग, किशमिश, सेब, लहसुन, केसर, सौंफ, बादाम, प्याज, अनार एवं अखरोट शामिल है। वर्ष 2024 में भारत ने 29,123 टन अंजीर का आयात किया था और लगभग 98% अंजीर की आपूर्ति अफगानिस्तान से हुई थी।
हींग, किशमिश एवं लहसुन का सबसे बड़ा स्रोत अफगानिस्तान ही था।