रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बाबरी मस्जिद के लिए सरकारी फंड का इस्तेमाल करना चाहते थे, लेकिन सरदार पटेल ने इसका विरोध किया था। इस बयान पर बवाल मचा हुआ है। कांग्रेस ने पलटवार करते हुए बीजेपी पर निशाना साधा है। कांग्रेस सांसद मणिक्कम टैगोर ने राजनाथ सिंह के बयान को पूरी तरह झूठ बताया।

मंगलवार को वडोदरा के साधली गांव में एक सभा को संबोधित करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा था, “जब पंडित नेहरू ने सरकारी खजाने से बाबरी मस्जिद पर पैसा खर्च करने का मुद्दा उठाया, तो अगर किसी ने इसका विरोध किया, तो वह सरदार वल्लभभाई पटेल थे, जिनकी मां गुजराती थीं। उस समय उन्होंने सरकारी फंड से बाबरी मस्जिद नहीं बनने दी।”

यह साफ नहीं है कि राजनाथ सिंह किस घटना का जिक्र कर रहे हैं। नेहरू के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध पत्रों और भाषणों में उनके द्वारा बाबरी पर सरकारी पैसा इस्तेमाल करने की बात का जिक्र मिलना मुश्किल है। हालांकि, उनके पत्रों से यह साफ है कि नेहरू बाबरी मस्जिद के आसपास सांप्रदायिक विवाद के सख्त खिलाफ थे। इसमें सरदार पटेल भी उनके साथ थे, जो इस मुद्दे को दोनों समुदायों के बीच आपसी सहनशीलता और सद्भावना की भावना से सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करना चाहते थे। नेहरू और पटेल ने अपने पत्रों में बाबरी मस्जिद के बारे में क्या लिखा है?

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1949 में अयोध्या में क्या हुआ था?

22 दिसंबर 1949 की रात को कुछ लोग अयोध्या में बाबरी मस्जिद परिसर में घुस गए और उसके केंद्रीय गुंबद के नीचे भगवान राम और देवी सीता की मूर्तियां रख दीं। उसी समय के आसपास अयोध्या और पूरे उत्तर प्रदेश में कुछ और सांप्रदायिक घटनाएं हुई थीं। बहुत परेशान नेहरू ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत सहित कई नेताओं को लिखे पत्रों में बाबरी और अन्य घटनाओं का जिक्र किया है। सभी पत्र नेहरू आर्काइव पर उपलब्ध हैं।

उनके पत्रों से यह साफ है कि नेहरू अपनी ही पार्टी के भीतर बढ़ती सांप्रदायिक प्रवृत्तियों को लेकर चिंतित थे और उन्हें आगे खतरा दिख रहा था। उनका मानना था कि अयोध्या की स्थिति का कश्मीर मुद्दे और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों पर असर पड़ेगा। वह तत्कालीन अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट के.के. नायर से भी नाराज थे, जिन्होंने मूर्तियों को हटाने से इनकार कर दिया था।

बाबरी मस्जिद मुद्दे पर नेहरू के खत

26 दिसंबर, 1949 को, बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखे जाने के तुरंत बाद नेहरू ने गोविंद वल्लभ पंत को एक टेलीग्राम भेजा, “मैं अयोध्या में हो रहे घटनाक्रम से परेशान हूँ। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप इस मामले में पर्सनली दिलचस्पी लेंगे। वहां एक खतरनाक मिसाल कायम की जा रही है जिसके बुरे नतीजे होंगे।” फरवरी 1950 में, उन्होंने पंत को एक और खत लिखा, “अगर आप मुझे अयोध्या के हालात के बारे में बताते रहेंगे तो मुझे खुशी होगी। जैसा कि आप जानते हैं, मैं इसे और पूरे भारत के मामलों और खासकर कश्मीर पर इसके असर को बहुत अहमियत देता हूं।” उन्होंने यह भी पूछा कि क्या उन्हें खुद अयोध्या जाना चाहिए, जिस पर पंत ने जवाब दिया कि अगर सही समय होता तो मैं खुद आपसे अयोध्या आने का रिक्वेस्ट करता।

एक महीने बाद गांधीवादी के.जी. मशरूवाला को लिखे एक खत में नेहरू ने कहा, “आपने अयोध्या मस्जिद का ज़िक्र किया है। यह घटना दो-तीन महीने पहले हुई थी और मैं इससे बहुत ज़्यादा परेशान हूं। यूपी सरकार ने दिखावा तो बहुत किया, लेकिन असल में कुछ खास नहीं किया। पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने कई मौकों पर इस काम की निंदा की, लेकिन शायद बड़े पैमाने पर दंगे के डर से कोई पक्का कदम उठाने से बचे रहे। मुझे पूरा यकीन है कि अगर हम अपनी तरफ से सही बर्ताव करते, तो पाकिस्तान से निपटना कहीं ज़्यादा आसान होता।”

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नेहरू ने अपनी बेबसी भी ज़ाहिर की। उन्होंने कहा, “मुझे बस यह नहीं पता कि हम देश में बेहतर माहौल बनाने के लिए क्या कर सकते हैं। जब लोग गुस्से में होते हैं तो सिर्फ़ अच्छी बातें करने से उन्हें और गुस्सा आता है। बापू शायद ऐसा कर सकते थे, लेकिन हम इस तरह की चीज़ों के लिए बहुत छोटे हैं।”

जुलाई 1950 में नेहरू ने लाल बहादुर शास्त्री को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने डर ज़ाहिर किया कि हम फिर से किसी तरह की मुसीबत की तरफ बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, “जैसा कि आप जानते हैं, अयोध्या में बाबरी मस्जिद का मामला हमारे लिए एक बड़ा मुद्दा है और यह हमारी पूरी पॉलिसी और इज़्जत पर गहरा असर डालता है। लेकिन इसके अलावा, ऐसा लगता है कि अयोध्या में हालात और भी खराब हो गए हैं। बहुत मुमकिन है कि इस तरह की परेशानी मथुरा और दूसरी जगहों पर भी फैल जाए।”

इससे पहले अप्रैल में नेहरू ने पंत को एक और लंबा खत लिखा, जिसमें कहा, “मैं काफी समय से महसूस कर रहा हूं कि UP का पूरा माहौल कम्युनल नज़रिए से खराब होता जा रहा है। सच तो यह है कि UP मेरे लिए लगभग एक पराया देश बनता जा रहा है। मैं वहां फिट नहीं बैठता। UP कांग्रेस कमेटी, जिसके साथ मैं 35 साल से जुड़ा हुआ हूं, अब इस तरह से काम करती है जो मुझे हैरान कर देता है। विश्वंभर दयाल त्रिपाठी जैसे सदस्य इस तरह से लिखते और बोलते हैं जो हिंदू महासभा के सदस्य के लिए भी आपत्तिजनक होगा। हम डिसिप्लिनरी एक्शन की बहुत बात करते हैं। लेकिन कांग्रेस की पॉलिसी में ये बड़ी गड़बड़ियां लगातार की जा रही हैं और उन्हें माना भी जा रहा है।”

बाबरी मस्जिद मुद्दे पर सरदार पटेल क्या चाहते थे?

नेहरू की तरह ही पटेल ने भी बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद पंत को एक खत लिखा (सरदार पटेल का पत्र-व्यवहार, वॉल्यूम 9. दुर्गा दास द्वारा संपादित)। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री पहले ही आपको अयोध्या में हो रहे घटनाक्रमों पर अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए एक टेलीग्राम भेज चुके हैं। मैंने लखनऊ में आपसे इस बारे में बात की थी। मुझे लगता है कि यह विवाद बहुत ही गलत समय पर उठाया गया है। बड़े कम्युनल मुद्दे हाल ही में अलग-अलग समुदायों की आपसी सहमति से सुलझाए गए हैं। जहां तक मुसलमानों का सवाल है, वे अभी अपनी नई वफादारियों के साथ तालमेल बिठा रहे हैं। हम यह कह सकते हैं कि बंटवारे का पहला झटका और उसके बाद की अनिश्चितताएं अभी खत्म होनी शुरू हुई हैं और यह मुमकिन नहीं है कि बड़े पैमाने पर वफादारियों में कोई बदलाव होगा। मुझे लगता है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे दोनों समुदायों के बीच आपसी तालमेल और सद्भावना की भावना से मिल-जुलकर सुलझाया जाना चाहिए। मुझे एहसास है कि जो कदम उठाया गया है, उसके पीछे बहुत सारी भावनाएं जुड़ी हुई हैं। साथ ही, ऐसे मामले तभी शांति से सुलझाए जा सकते हैं जब हम मुस्लिम समुदाय की मर्ज़ी भी साथ लें। ऐसे विवादों को ज़बरदस्ती से सुलझाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। ऐसे में कानून और व्यवस्था बनाए रखने वाली ताकतों को हर कीमत पर शांति बनाए रखनी होगी।”

पटेल ने आगे लिखा, “इसलिए, अगर शांतिपूर्ण और समझाने-बुझाने के तरीकों को अपनाना है, तो आक्रामकता या ज़बरदस्ती पर आधारित कोई भी एकतरफ़ा कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जा सकती। इसलिए मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले को इतना बड़ा मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए और मौजूदा गलत समय पर होने वाले विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाया जाना चाहिए और जो बातें हो चुकी हैं, उन्हें मिल-जुलकर समझौते के रास्ते में रुकावट नहीं बनने देना चाहिए।”