सौम्यरेंद्र बारिक
भारत का डिजिटल आईडी ‘आधार’ एक बार फिर सवालों के घेरे में है। दुनिया की जानी-मानी रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स ने आधार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। मूडीज ने आधार की बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह गर्म और ह्यूमिडिटी वाले क्षेत्र के विश्वसनीय ढंग से काम नहीं कर पाता। इससे लोगों को कई सर्विस से वंचित रहना पड़ जाता है।
सरकार ने मूडीज के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि इन्वेस्टर्स सर्विस एजेंसी ने बिना किसी सबूत के दुनिया की सबसे भरोसेमंद डिजिटल आईडी आधार के खिलाफ दावा किया है। बता दें कि पिछले साल देश शीर्ष लेखा परीक्षक CAG आधार डेटा के त्रुटिपूर्ण प्रबंधन के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) की खिंचाई की थी।
आधार को लेकर मूडीज ने क्या कहा है?
मूडीज ने आधार को परिभाषित करते हुए कहा है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल आईडी प्रोग्राम है। यह नागरिकों की सार्वजनिक और निजी सेवाओं तक पहुंच को सक्षम बनाता है। कहीं पर आधार देने पर उसका सत्यापन फिंगरप्रिंट या आईरिस स्कैन के जरिए होता है। वन-टाइम पासकोड जैसा विकल्प भी मिलता है। आधार का उद्देश्य हाशिए पर रहने वाले समूहों को एकजुट करना और कल्याणकारी लाभों को उन तक पहुंचाना है।
मूडीज़ ने कहा, “आधार सिस्टम को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन सबसे ज्यादा चिंता अथराइजेशन और बॉयोमीट्रिक की विश्वसनीयता पैदा करती है। सिस्टम की समस्याओं के कारण वेरिफिकेशन न होने से अक्सर लोगों को सर्विस नहीं मिल पाती। बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी की विश्वसनीयता, विशेष रूप से गर्म और आर्द्र जलवायु में काम करने वाले मजदूरों के लिए संदिग्ध है।”
सरकार की प्रतिक्रिया
अपने बयान में सरकार ने कहा कि मूडीज़ ने दावा तो किया है लेकिन अपनी राय को साबित करने के लिए डेटा या शोध का हवाला नहीं दिया है। इन्वेस्टर्स सर्विस ने जो मुद्दे उठाए हैं, उनसे जुड़े तथ्यों का का पता लगाने के लिए यूआईडीएआई से संपर्क नहीं किया गया है।
भारत की गर्म और आर्द्र जलवायु में आधार बायोमेट्रिक्स के काम न करने सवाल पर सरकार ने कहा कि चेहरे के प्रमाणीकरण और आईरिस प्रमाणीकरण जैसे संपर्क रहित माध्यमों से भी बायोमेट्रिक जमा करना संभव है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि केंद्रीकृत आधार प्रणाली में सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी कमजोरियां हैं। इस संबंध में तथ्यात्मक स्थिति का खुलासा संसद के सवालों के जवाब में बार-बार किया गया है। संसद को स्पष्ट रूप से सूचित किया गया है कि आज तक आधार डेटाबेस से कोई उल्लंघन की सूचना नहीं मिली है।
सरकार ने यह भी कहा कि आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने “आधार की सराहना की है”। इसमें कहा गया है, “कई दूसरे देश भी आधार की टेक्नोलॉजी समझने के लिए भारत के साथ जुड़े हैं ताकि वे ऐसा डिजिटल आईडी सिस्टम अपने यहां ला सकें।”
विश्वसनीयता संबंधी चिंताओं का क्या?
आधार की विश्वसनीयता पर चिंताएं महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह एक प्राइमरी आइडेंटिटी डॉक्यूमेंट है जो सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ा हुआ है। यदि आधार की तकनीक विश्वसनीय नहीं है, तो इससे बड़ी संख्या में लोगों के विभिन्न सब्सिडी से वंचित रहने की आशंका है, जिसके वे हकदार हैं। ध्यान रहे, सरकारी सब्सिडी पर निर्भर रहने वाले बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
कुछ आंकड़ों पर एक नजर-
31 जुलाई, 2023 तक, 765.30 मिलियन भारतीयों ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से राशन प्राप्त करने के लिए आधार को राशन कार्ड से जोड़ा था। पहल के माध्यम से 280 मिलियन से अधिक लोगों ने एलपीजी सब्सिडी के लिए आधार को रसोई गैस कनेक्शन से जोड़ा।
788 मिलियन से अधिक आधार को एनपीसीआई मैपर पर बैंक खातों के साथ विशिष्ट रूप से जोड़ा गया है। और पीएम किसान योजना के तहत लगभग 100 प्रतिशत किसान-लाभार्थी आधार के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
लिबटेक इंडिया के वरिष्ठ शोधकर्ता लावण्या तमांग ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “आधार की विश्वसनीयता एक मुद्दा बन जाता है क्योंकि आप आवश्यक सेवाओं की डिलीवरी के लिए बायोमेट्रिक्स पर निर्भर हैं। जबकि बायोमेट्रिक्स दोषरहित नहीं है। बता दें कि तमांग जिस लिबटेक इंडिया में है वह एक एक एक्शन रिसर्च संगठन है जो पीडीएस जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों पर ध्यान रखता है।
तमांग कहते हैं, “ऐसी विफलताओं के परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड में आधार बायोमेट्रिक्स मैच न होने और इसके परिणामस्वरूप लोगों को पीडीएस से राशन नहीं मिलने के कारण भूख से लोगों की मौत हो जाती है।”
सीएजी की रिपोर्ट में क्या था?
आधार आज भले ही यह 1.3 अरब से अधिक भारतीयों के लिए वास्तविक पहचान बन गया है। लेकिन आधार की गोपनीयता और विश्वसनीयता के मुद्दे पिछले कुछ वर्षों में बार-बार उठाए गए हैं।
पिछले साल सीएजी ने एक रिपोर्ट में डेटा मिलान, प्रमाणीकरण में त्रुटियां और डेटा संग्रह में कमी का मुद्दा उठाया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि कुछ मामलों में 10 साल बाद भी आधार कार्ड धारकों का डेटा उनके आधार नंबर से मेल नहीं खाता है।
रिपोर्ट में कहा गया था कि भले ही यूआईडीएआई दुनिया के सबसे बड़े बायोमेट्रिक डेटाबेस में से एक का रखरखाव कर रहा हो, लेकिन उसके पास डेटा संग्रह नीति नहीं है।”
सीएजी ने पिछले अप्रैल में 108 पेज की रिपोर्ट में कहा, “यूआईडीएआई ने अपने स्वयं के नियमों के प्रावधानों के विपरीत, मार्च 2019 तक बैंकों, मोबाइल ऑपरेटरों और अन्य एजेंसियों को मुफ्त में प्रमाणीकरण सेवाएं प्रदान कीं, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ।”