आजादी और देश बंटवारे के बाद मेव मुसलमान पाकिस्तान की तर्ज पर अलग मेविस्तान बनाना चाहते थे। मुस्लिग लीग के नेताओं ने न सिर्फ मेव मुसलमानों को इसके लिए उकसाया था, बल्कि हथियार भी मुहैया कराए थे। गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को लिखी चिट्ठी में इस बात का जिक्र किया था। यहां तक कि मेव मुस्लिमों को बसाए जाने के मसले पर पटेल ने इसी चिट्ठी में कांग्रेस वर्किंग कमेटी से इस्तीफे की धमकी तक दे डाली थी।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच इस पत्राचार का ब्यौरा ‘सेलेक्टेड कॉरेस्पोंडेंस ऑफ सरदार पटेल 1945-50’ (Selected Correspondence Of Sardar Patel 1945-50) के छठवें खंड (पेज नंबर-383-384) में इस प्रकार दर्ज है…
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की चिट्ठी
डॉ. राजेंद्र प्रसाद 22 जून 1948 को सरदार वल्लभभाई पटेल को चिट्ठी में लिखते हैं, ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक 1 और 2 जुलाई को होने वाली है। इस बैठक में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी, जिसमें जम्मू कश्मीर और हैदराबाद का मामला शामिल है। मुझे आज मौलाना साहिब (मौलाना अबुल कलाम आजाद) की एक चिट्ठी मिली, जिसमें उन्होंने कहा है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रांत के स्कूलों से उर्दू हटाई जा रही है। वह चाहते हैं कि वर्किंग कमेटी या संसदीय बोर्ड में इस मसले पर चर्चा हो।
राजेंद्र प्रसाद ने याद दिलाया बापू का वादा
राजेंद्र प्रसाद आगे लिखते हैं, ”आज सुबह मुझसे विनोबा जी (विनोबा भावे) भी मिले। वह परसों उस जगह जा रहे हैं जहां मेव मुसलमान रह रहे हैं। उनमें से कुछ कल मुझसे भी मिलने आए थे जो गुड़गांव के थे। उनका कहना था कि उनके कंधे पर अलवर और भरतपुर के मेव मुसलमानों का भी बोझ डाल दिया गया है और सीमित संसाधन के चलते उन्हें अपने साथ रखने में सक्षम नहीं हैं। विनोबा जी का तर्क है कि जो मेव मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए और यहीं रह गए हैं लेकिन अपने पुश्तैनी घर से दूर हैं उन्हें उनके घर और जमीन लौटा देनी चाहिए। वे इसके अधिकारी हैं। बापू खुद उस जगह गए थे और उनसे (मेव मुस्लिमों से) पाकिस्तान न जाने को कहा था और वादा किया था कि उन्हें उनके घर और जमीनें लौटा दी जाएंगीं। इस वादे का सम्मान किया जाना चाहिए।
डॉ राजेंद्र प्रसाद आगे लिखते हैं, ‘कुरुक्षेत्र के शरणार्थियों को अलवर और भरतपुर में मेव मुस्लिमों की जमीनों पर बसाने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन ये शरणार्थी वहां जाने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में स्थिति यह है कि यहां की जमीनें न तो जिसकी हैं उन्हें मिल पा रही हैं और ना ही नए शरणार्थी यहां बस रहे हैं। जमीन बंजर पड़ी है। यह अच्छी बात नहीं है।
शेख अब्दुल्ला का भी जिक्र
डॉ. राजेंद्र प्रसाद चिट्ठी में आगे लिखते हैं- मैंने सुना है कि मेव मुसलमान शेख अब्दुल्ला से भी मिलने गए थे। उन्होंने उनसे कहा कि जमीन उनकी है और अगर उन्हें नहीं दी जाती है तो सत्याग्रह का सहारा लेना चाहिए। ऐसा लगता है कि समस्या बढ़ने वाली है। विनोबा जी वहां जा रहे हैं और उनसे कहेंगे कि सरकार बापू का किया वादा पूरा करेगी।
अब पढ़िए सरदार पटेल का जवाब
सरदार वल्लभभाई पटेल दो दिन बाद ही 24 जून 1948 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद की इस चिट्ठी का जवाब देते हैं। लिखते हैं कि ‘मेरी सेहत अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है। ऐसे में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की 1 और 2 जुलाई की बैठक में शामिल नहीं हो पाऊंगा। जहां तक मेव मुसलमानों की बात है, मैंने अलवर और भरतपुर में जो जांच कराई है उससे पुष्टि हुई है कि पिछले साल मार्च से मई के बीच मेव मुसलमानों ने जो हंगामा किया था, वह पूरी तरह पूर्व नियोजित था। वे मुस्लिम लीग की तरह पाकिस्तान की तर्ज पर मेविस्तान बनाना चाहते थे। मेव मुसलमानों के प्रदर्शन को मुस्लिम लीग के नेताओं ने न सिर्फ हवा दी थी बल्कि उन्हें गोला बारूद और हथियार भी उपलब्ध कराए थे।

बारूद के ढेर पर बैठे हैं…
सरदार पटेल आगे लिखते हैं कि इन झगड़ों के अलावा उस इलाके में रहने वाले मेव मुसलमान और अहीर व जाटों के बीच लंबे वक्त से तल्खी है, जिसे हमारे और आपके लिए इतनी दूर से समझना मुश्किल है। अलवर और भरतपुर पहले से ही आक्रोशित हैं। सिर्फ इन्हीं दो राज्यों में जाट और राजपूत गुस्से में नहीं हैं, बल्कि दूसरे राजपूताना राज्यों में भी यही हाल है। हालत बारूद के ढेर जैसी है, जिसमें आग भड़काने के लिए बस एक चिनगारी काफी है। इस स्थिति से निपटने के लिए फिलहाल मैं तैयार नहीं हूं।
पटेल आगे लिखते हैं कि कश्मीर और हैदराबाद में जिस तरीके से हालात हैं और पाकिस्तान किसी गैर मुस्लिम को स्वीकार करने को तैयार नहीं है, ऐसी स्थिति में ऐसे खतरनाक तत्वों के बीच मेव मुस्लिमों को बसाना आफत से कम नहीं होगा। इस स्थिति के बावजूद यदि शेख अब्दुल्ला मेव मुसलमानों को सत्याग्रह की सलाह दे रहे हैं और मौलाना अबुल कलाम आजाद चाहते हैं कि उन्हें यहां बसाया जाए, तो ऐसा करने के लिए वे स्वतंत्र हैं और सारी जिम्मेदारी उनकी होगी।

मुझे नहीं पता कि गांधी ने कोई वादा किया है…
पटेल लिखते हैं कि, ‘मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि महात्मा गांधी ने उनसे (मेव मुस्लिमों से) कोई वादा किया है। मैं आश्वस्त हूं कि उन्होंने मेव मुसलमानों को इन राज्यों में बसाने का कोई आश्वासन नहीं दिया होगा। मेरी लंबे समय से उनसे इस मसले पर बातचीत होती रही थी और हमारी यही नीति है कि राज्यों के आंतरिक प्रशासन में कोई दखल नहीं देंगे’।
पटेल साफ-साफ लिखते हैं कि मेव मुसलमानों को अलवर और भरतपुर में लौटने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि उन्हें गुड़गांव में उसी जमीन पर बसाना चाहिए, जिसे मेव मुस्लिम छोड़कर पाकिस्तान चले गए। इसी तरह पाकिस्तान से आने वाली गैर मुस्लिम शरणार्थियों को अलवर और भरतपुर में बसाना चाहिए। मौजूदा हालात में सबकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यही सबसे बेहतर नीति हो सकती है।
पटेल ने दी थी इस्तीफे की धमकी
सरदार पटेल इसी चिट्ठी में आगे लिखते हैं कि मुझे इस मसले पर जल्दबाजी का कोई कारण समझ नहीं आता। न ही मैं इस मसले पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी में चर्चा की कोई वजह समझता हूं। मैंने आपके सामने अपना पक्ष रख दिया है। इसके बावजूद यदि आपको लगता है कि इस मसले पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी में चर्चा होनी चाहिए और कोई अलग प्रस्ताव पास होना चाहिए तो मेरा सुझाव है कि इसे अगली बैठक तक टाल दें।
पटेल आगे लिखते हैं- मेरी राय है कि सबसे पहले शरणार्थियों को बसाने के मसले पर बात होनी चाहिए। अगर इसे टाला नहीं जाता है और मौजूदा नीति से उलट कोई फैसला लिया जाता है तो अफसोस के साथ मुझे कहना होगा कि मेरे पास वर्किंग कमेटी से इस्तीफा देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।