सोमवार को राज्यसभा में केंद्रीय आवास मंत्री मनोहर लाल खट्टर का हल्का-फुल्का अंदाज देखने को मिला। राज्यसभा में चर्चा के दौरान सांसद जया बच्चन ने जब सभापति जगदीप धनखड़ से कहा कि खट्टर के नाम के आगे या पीछे उनकी पत्नी का भी नाम लगा दीजिए तो इसका खट्टर ने जो जवाब दिया, उस पर सांसदों ने ठहाके लगाए।
जया अमिताभ बच्चन कहने पर हुईं नाराज
खट्टर ने क्या जवाब दिया इससे पहले बात करते हैं सांसद जया बच्चन की। बीते कुछ दिनों से राज्यसभा सांसद जया बच्चन काफी सुर्खियों में हैं। जया बच्चन हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री रही हैं और समाजवादी पार्टी की सांसद हैं। शादी से पहले उनका नाम जया भादुड़ी था लेकिन भारतीय फ़िल्म जगत के बड़े अभिनेता अमिताभ बच्चन से शादी के बाद उन्हें जया बच्चन के नाम से जाना गया। हालांकि राज्यसभा में दिए गए हलफनामे में उनका पूरा नाम जय अमिताभ बच्चन ही दर्ज है।
पिछले महीने जब राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने उन्हें जया अमिताभ बच्चन कहकर पुकारा था तो वह काफी नाराज हो गई थीं। उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति से कहा था कि अगर वह सिर्फ जया बच्चन बोल देते तो काफी था। जया ने कहा था कि यह जो नया चलन है कि महिलाएं अपने पति के नाम से जानी जाएंगी क्या उनकी कोई उपलब्धि नहीं है। इसके बाद हरिवंश ने कहा था कि आपकी बहुत उपलब्धि है।

इसके बाद जब सोमवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने उन्हें जया अमिताभ बच्चन के नाम से बुलाया तो वह फिर से नाराज हो गईं। जया ने सभापति से कहा कि क्या उन्हें अमिताभ का मतलब पता है?
सभापति ने उनसे कहा कि जो नाम चुनाव सर्टिफिकेट में आता है और जो राज्यसभा में दिया जाता है, उसमें बदलाव किया जा सकता है और वह खुद भी 1989 में ऐसा कर चुके हैं। इस पर जया बच्चन ने कहा कि उन्हें अपने नाम पर गर्व है, अपने पति पर गर्व है और उनकी उपलब्धियां पर भी गर्व है।
इस दौरान सभापति धनखड़ ने केंद्रीय शहरी आवास मंत्री मनोहर लाल खट्टर का नाम पुकारा। लेकिन खट्टर के खड़े होने से पहले ही जया बच्चन खड़ी हो गईं और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि खट्टर के नाम के आगे या पीछे उनकी पत्नी का भी नाम लगा दीजिए।
इसके बाद मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि जया बच्चन ने यह सुझाव दिया है कि उनके नाम के साथ कुछ जोड़ दिया जाए लेकिन उन्हें इसके लिए अगले जन्म का इंतजार करना पड़ेगा और उससे पहले यह संभव नहीं है। उनकी इस बात पर आसपास बैठे सांसद खिलखिला कर हंस पड़े।
कौन हैं मनोहर लाल खट्टर?
मनोहर लाल खट्टर साढ़े नौ साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं और इस साल मार्च में ही उन्हें उनके पद से हटाकर कुरुक्षेत्र के तत्कालीन सांसद नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। बताना होगा कि मनोहर लाल खट्टर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके हैं और उन्होंने शादी नहीं की है। इस बार वह करनाल से लोकसभा का चुनाव जीते हैं और उन्हें मोदी सरकार में आवास एवं शहरी मामलों का मंत्री बनाया गया है।
पति का सरनेम जोड़ा जाना चाहिए या नहीं?
जया बच्चन के इस वाकये की वजह से सोशल मीडिया पर एक बहस शुरू हो गई कि शादी के बाद महिलाओं को अपने पति का सरनेम खुद के साथ जोड़ना चाहिए या नहीं। इस तरह के सवाल उठे हैं कि महिलाओं की अपनी क्या पहचान है? क्या शादी के बाद उन्हें पति का सरनेम अपने साथ जोड़ना चाहिए या नहीं?
कई महिलाओं के लिए उनका जो शादी से पहले का नाम है, उसे बरकरार रखना उनकी पहचान और उनकी प्रोफेशनल प्रतिष्ठा को बनाए रखने से संबंधित है। श्रीनिधि जी कृष्णन ने शादी के बाद अपना नाम नहीं बदला। कृष्णन द इंडियन एक्सप्रेस से कहती हैं कि वह ऐसा नहीं मानती कि उनके पिता के साथ उनका रिश्ता सिर्फ इसलिए बदल जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने शादी कर ली है।

कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत का कानून महिलाओं को उनका शादी से पहले वाला नाम रखने के हक का समर्थन करता है। दिल्ली में कानूनी मामलों से जुड़ीं मेघना मिश्रा कहती हैं कि भारत में सरनेम को शेयर करना आमतौर पर परिवार में एकता को दिखाता है। हालांकि महिलाओं को शादी के बाद भी अपना पुराना नाम रखने का कानूनी हक है और उन्हें अपने पति का सरनेम लगाने की जरूरत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड डॉक्टर अनघ मिश्रा कहते हैं कि भारत की कानून व्यवस्था शादी के बाद महिला को उसकी पहचान बनाए रखने के हक को मान्यता देता है और इसमें शादी के बाद उनके नाम का मामला भी शामिल है।
कुछ महिलाओं के लिए शादी से पहले वाला नाम रखना एक तरह का सशक्तिकरण है। श्यामला कृष्णन ने अपनी पहली और दूसरी शादी के बाद भी अपना नाम बरकरार रखा। वह कहती हैं कि पहली शादी खत्म करने की अदालती कार्यवाही के दौरान जब वह मुंबई में एक फैमिली कोर्ट में बैठी थीं तब उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें अपने नाम से ताकत मिल रही थी इसलिए वह अपना नाम नहीं बदलना चाहती थीं।
हालांकि शादी से पहले वाला नाम रखे जाने को हमेशा स्वीकृति नहीं मिलती है। कई महिलाओं को अपने पारिवारिक सदस्यों या समाज के दबाव का सामना करना पड़ता है।
सकरा वर्ल्ड हॉस्पिटल बेंगलुरु में क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक डॉक्टर शिल्पी सारस्वत कहती हैं कि समाज में हमेशा महिलाओं का उनके नाम के आधार पर आकलन किया जाता है। वह हमेशा डर और संशय में रहती हैं कि समाज और उनका परिवार उन्हें स्वीकार करेगा या नहीं। वह कहती हैं कि ऐसा करना उन महिलाओं के लिए आसान नहीं है जो अपने पति का नाम नहीं अपनाना चाहती।

इस मामले में कई महिलाओं को अपने जीवनसाथी का समर्थन मिलता है। श्रीनिधि बताती हैं कि उनके पति इस बात से सहमत थे और उनका परिवार भी इस मामले में उनके साथ था। परिवार से मिलने वाला यह समर्थन पारिवारिक और सामाजिक मामलों में काफी अहम हो सकता है।