मध्‍य प्रदेश में बीते 30 सालों में से 28 साल ज‍िस क्षेत्र का मुख्‍यमंत्री रहा, वहां 1990 तक कांग्रेस मजबूत स्‍थ‍ित‍ि में थी। लेक‍िन, 2003 से भाजपा का पलड़ा भारी रहा। यह क्षेत्र है मध्‍य प्रदेश का मध्‍य क्षेत्र। मध्‍य क्षेत्र के दो संभागों (भोपाल और नर्मदापुरम) में आठ ज‍िले और 36 व‍िधानसभा सीटें हैं। इनमें से बुदनी, आष्‍टा, सांची, भोजपुर, व‍िद‍िशा, भोपाल उत्‍तर, गोव‍िंदपुरा, बैरस‍िया, नर्मदापुरम और उदयपुरा कुछ ऐसी सीटें हैं जो खास मानी जाती हैं।

राज्‍य में 30 साल में से 28 साल जो मुख्‍यमंत्री रहे हैं, वे मध्‍य क्षेत्र से ही रहे हैं। 1993 से 2003 तक मुख्‍यमंत्री रहे द‍िग्‍व‍िजय स‍िंह चाचौड़ा (1993) और राघोगढ़ (1998) से जीते थे। 23 अगस्‍त, 2004 से 29 नवंबर, 2005 तक सीएम रहे बाबूलाल गौर गोव‍िंदपुरा से चुनाव जीते थे। सबसे लंबे वक्‍त तक मुख्‍यमंत्री रहे श‍िवराज स‍िंह चौहान बुधनी से व‍िधायक हैं। चौहान नवंबर 2005 से 2018 का चुनाव होने तक लगातार मुख्‍यमंत्री रहे। 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद कमलनाथ के नेतृत्‍व में सरकार बनी। लेक‍िन, मार्च 2020 में कांग्रेस व‍िधायकों के भाजपा में आ जाने से एक बार फ‍िर श‍िवराज स‍िंह की ताजपोशी हो गई।

मध्‍य क्षेत्र की कुछ खास सीटें

बुदनी: बुदनी को 2003 से भाजपा ने अपना गढ़ बना रखा है। श‍िवराज‍ स‍िंह चौहान यहां से चुनाव जीतते रहे हैं। यहां हुए कुल 15 चुनावों में से भाजपा ने छह बार और कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की है। दो बार न‍िर्दलीय उम्‍मीदवार जीते हैं। एक-एक बार जनसंघ और जनता पार्टी का उम्‍मीदवार जीता है।

आष्‍टा: यह सीट 1962 में वजूद में आई। सबसे ज्‍यादा आठ बार यहां से भाजपा जीती है। सांची: इस सीट पर भी भाजपा हावी रही है। कुल 15 में से नौ बार उसके उम्‍मीदवार यहां से जीते हैं। कांग्रेस को चार बार ही यह मौका म‍िल पाया।

भोजपुर: इस सीट पर भी कांग्रेस ज्‍यादा जीत दर्ज नहीं कर पाई। 1967 से हुए 12 चुनावों में से केवल तीन बार कांग्रेस को जीत म‍िली, जबक‍ि भाजपा नौ बाार जीती।

व‍िद‍िशा: इस सीट पर 14 में से 10 बार भाजपा ने जीत दर्ज की। कांग्रेस को तीन बार यह मौका म‍िला। भोपाल उत्‍तर: इस सीट पर कांग्रेस ने अपना दबदबा कायम रखा है। कुल 13 में से नौ चुनाव में कांग्रेस जीती है। भाजपा यहां से एक बार ही जीत सकी है।

गोव‍िंदपुरा: यह सीट भोपाल ज‍िले में है। 1967 में इस पर पहला चुनाव हुआ। शुरू के दो चुनाव में तो कांग्रेस जीती, पर फ‍िर वह जीत दोहरा नहीं सकी। 1977 से लगातार भाजपा ही जीतती रही है।

बैरस‍िया: यह भी भाजपा की ही गढ़ रहा है। कुल आठ बार यहां से भाजपा ने जीत दर्ज की है, जबक‍ि कांग्रेस चार बार ही जीत सकी है।

नर्मदापुरम: नर्मदापुरम में कांग्रेस ने भाजपा से एक बार ज्‍यादा जीत दर्ज की है। 8-7 का स्‍कोर है, लेकि‍न 2008 से लगातार भाजपा ही जीतती रही है।

उदयपुरा: यह एक ऐसी सीट है जहां भाजपा और कांग्रेस, दोनों 7-7 चुनाव जीती है।

मध्‍य क्षेत्र में ऐसे मजबूत होती गई भाजपा

इस इलाके में 1990 तक कांग्रेस मजबूत स्‍थ‍ित‍ि में थी। उसके बाद हालात बदलने शुरू हुए और 2003 के बाद से कई सीटों पर कांग्रेस लगातार हारने लगी। ऐसे में भाजपा की स्‍थ‍ित‍ि मजबूत होती चली गई। 1998 में मध्‍य क्षेत्र में भाजपा-कांग्रेस का प्रदर्शन लगभग बराबर रहा। कांग्रेस को 15 और भाजपा को 16 सीटें म‍िलीं। लेक‍िन, 2003 में भाजपा का स्‍कोर 29 हो गया और कांग्रेस का छह रह गया। 2008 में बीजेपी की दो सीटें कम हुईं और कांग्रेस की इतनी ही बढ़ीं। लेक‍िन, 2013 में बीजेपी 29 सीटों पर जीत गई और कांग्रेस केवल पांच सीटों पर। 2018 में कांग्रेस का ग्राफ थोड़ा सुधरा और उसके 12 व‍िधायक जीते, लेक‍िन भाजपा इससे दोगुनी (24) सीटें जीत गई।

चार चुनावों में भाजपा का वोट प्रत‍िशत घटा, कांग्रेस का बढ़ा

प‍िछले चार चुनावों में अगर वोट प्रत‍िशत पर नजर डालें तो 2003 की तुलना में 2018 में कांग्रेस का वोट प्रत‍िशत थोड़ा बढ़ा है और भाजपा का घटा है। कांग्रेस को 2003 में 40 प्रत‍िशत वोट म‍िले। 2008 में थोड़ा कम होकर 39.51 रहा, 2013 में थोड़ा और कम (39.12 प्रत‍िशत) हुआ, लेक‍िन 2018 में इसमें अच्‍छी बढ़ोतरी हुई और आंकड़ा 43.22 प्रत‍िशत हो गया।

भाजपा की बात करें तो 2003 में 49 प्रत‍िशत वोट म‍िले, जो क्रमश: घटते हुए 2008 में 46.09 प्रत‍िशत, 2013 में 46.12 प्रत‍िशत और 2018 में 45.09 प्रत‍िशत रह गया। हालांक‍ि, वोट प्रत‍िशत कम होते जाने के बावजूद सीटों के मामले में भाजपा आगे रही और सरकार बनाती गई। 2018 के चुनाव में उसे कांग्रेस से कम सीटें म‍िलीं तो मार्च 2020 में कांग्रेस के व‍िधायकों को भाजपा में लाकर सरकार बनाई।