राष्ट्र निर्माण में देश के एक-एक नागरिक की भागीदारी हमेशा से रही है, लेकिन आज केवल एक नेता की ‘गारंटी’ पर राष्ट्र निर्माण का दिवास्वप्न दिखाया जा रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हम भारतवासी निर्मल-निश्छल मन-स्वभाव के होते है। परिणाम यह होता है कि हमारी निश्छलता और सहजता को जो चाहे, कोई भी आसानी से बरगला लेता है और हम पांच वर्ष तक स्वयं को कोसते रहते हैं कि काश, हमने चयन में भूल न की होती।
देश के लिए व्यक्तिगत गारंटी का क्या मतलब? देश तो अपने ग्रंथ (संविधान) के मानदंडों और मापदंडों पर चलता है, जिसे उपेक्षित करके अपनी व्यक्तिगत गारंटी देना निश्चित रूप से समाज को दिग्भ्रमित करने के समान ही माना जा सकता है। आजाद भारत में आज तक किसी भी शासनाध्यक्ष ने सीना ठोंककर व्यक्तिगत गारंटी देने की बात नहीं की, क्योंकि वह सामूहिक कोशिश को सर्वोपरि मानते थे और यही सर्वथा उचित भी है। लेकिन, आज चाहे संसद हो या विपक्षी नेतागण, चुनावी सभाओं में हर जगह एक ही बात कही जाती है, ‘मोदी की गारंटी है।’
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री को देश की जनता ने अपार प्यार दिया। उनके भाषणों की चर्चा हर जगह होती रहती है; क्योंकि अपनी ओजस्वी बातों से समाज को प्रभावित करने की कला में वह इस कदर पारंगत हैं कि एक समय में यह माना जाने लगा था कि देशहित के लिए बात करने वाला इनसे मजबूत राजनेता आज तक नहीं मिला था। उनके भाषण में वह सब होता था, जिसमें त्रस्त समाज की हर पीड़ा झलकती थी और वह समाज को इन पीड़ाओं से उबारने का दिवास्वप्न भी जमकर दिखाया करते थे। समाज के हर वर्ग के लिए कुछ-न-कुछ योजना बताकर कहते थे कि इससे पूरा देश बदल जाएगा, क्योंकि हम ‘विश्वगुरु’ बनने जा रहे हैं।
चाहे उद्योगपतियों की बात हो, चाहे युवाओं को रोजगार देने की बात हो, चाहे समाज को आर्थिक रूप से संपन्न कराने की बात हो या देश के अन्नदाताओं के कल्याण की बात हो। उनके भाषणों में देश के लिए एक संदेश होता था कि यदि आप हमारे साथ जुड़े, तो आपका भविष्य सुधार जाएगा, आपको पड़ोसी देशों के सामने झुकना नहीं पड़ेगा, सभी देशों से हमारा सम्बन्ध सहज होगा जिससे देश के विकास को बल मिलेगा और देश भ्रष्टाचार मुक्त होगा। उनका दावा तो यहां तक होता था कि ‘न खाऊंगा और न किसी को खाने दूंगा। देश भ्रष्टाचारियों से मुक्त होगा।’ ऐसे में देश में एक नए परिवर्तन की उम्मीद जगने लगी थी।

‘जनता का भ्रम कुछ ही दिनों में टूटने लगा’
देश की जनता को पहली बार ऐसा लगने लगा था कि कोई विकास पुरुष देश का भला करने आया है, लेकिन उसका भ्रम कुछ दिनों में ही टूटने लगा। पहला विश्वास उस दिन डगमगाया, जिस दिन ‘नोटबंदी’ की घोषणा की गई। उसके बाद भी ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनसे जनता की उम्मीदें धूमिल होने लगीं।
अब जब 18वीं लोकसभा का चुनाव पांच चरणों का पूरा हो चुका है, तब भी सत्तापक्ष की ओर से विपक्ष के लिए शब्दरूपी अग्निवाण चलाए जा रहे हैं। यहां तक कि सच लिखने वाले पत्रकार भी बक्से नहीं जा रहे हैं , उन पर एफआईआर तक दर्ज कराए जा रहे हैं।
चुनाव में बढ़ती कड़वाहट
प्रधानमंत्री जिस प्रकार अपने भाषणों में कांग्रेस और विशेष रूप से राहुल गांधी और उनके परिवार पर सीधा आक्रमण कर रहे हैं, उस पर तो विपक्ष साफ—साफ कहने लगा है कि यह तो हार की बाैखलाहट है। जो भी हो, वह देश की जनता द्वारा किए गए मतदान के परिणाम के तौर पर 4 जून को सामने आ जाएगा, लेकिन आजादी के बाद से अब तक देश में जितने भी चुनाव हुए, उन सभी में इस तरह की कड़वाहट कभी देखने को नहीं मिली।

प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘शहजादे बोल रहे हैं माओवादी की भाषा।’ ‘भ्रष्टाचार मिटाने आए लोग हजारों करोड़ के घोटाले में जेल के चक्कर काट रहे हैं। कांग्रेस के शहजादे की भाषा पूरी तरह नक्सली भाषा है, माओवादी भाषा है। कांग्रेस पार्टी उद्यम करने वालों को देश का दुश्मन मानती है। जो कारोबारी पैसा नहीं देते, उन पर उनके नेता हमला करते हैं।’ कहां पहले इसी भाजपा की सरकार ने यह नारा दिया था कि भारत को कांग्रेस मुक्त करना है, लेकिन अब ऐसी क्या स्थिति हो गई कि प्रधानमंत्री सहित उनके सभी नेता केवल कांग्रेस और राहुल गांधी के नाम पर अपना अभियान चला रहे हैं।
क्या बदल जाएगी सरकार?
सत्तारूढ़ के ऐसे भाषणों और विचारों को सुनकर जनता आजिज आ चुकी है और उसकी ऐसी धारणा बनती जा रही है कि सरकार बदलने जा रही है और इन्हीं सब कारणों से पूरा सत्तारूढ़ दल विचलित हो गया है जिससे उसके स्वर तीखे ही नहीं, बल्कि कटु और स्तरहीन होते जा रहे हैं और वे असंवैधानिक तर्क देने पर उतारू होने लगे हैं।
जो भी हो देश की जनता ही मतदान करती है, जो बिल्कुल गुप्त होता है। परिणाम से पहले एक कयास ही कोई माहौल देखकर लगा सकता है, लेकिन इसकी असलियत तो उन परिणामों पर निर्भर करेगी, जो 4 जून को सामने आएंगे।

पीएम को है तीसरी बार सरकार बनाने का विश्वास
इधर, विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन पांच चरणों के आधार पर यह मान चुका है कि अगली सरकार गठबंधन की बनने जा रही है। दूसरी तरफ, वर्तमान प्रधानमंत्री कई साक्षात्कार में स्पष्ट कह चुके हैं कि तीसरी बार भी उनके नेतृत्व में ही सरकार बनने जा रही है।
निश्चित रूप से देश की जनता को वर्तमान सरकार को बरकरार रखने के लिए अथवा वर्तमान सरकार को सत्ता से हटाकर गठबंधन की सरकार को मौका देने के लिए मतदान तो मतदान केंद्र पर ही जाकर करना होगा, अन्यथा घर में बैठकर की जानेवाली कयासबाजी का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। सरकार के गुण-दोष पर कोई तभी विश्लेषण कर सकता है, जब वह मतदान करके देश के निर्माण में भागीदार बनता है। इसलिए मतदान जरूर करिए और सत्तारूढ़ और विपक्षी नेताओं पर होने वाले बहस में भागीदार भी बनिए, तभी मजबूत राष्ट्र का निर्माण होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)