प्रधानमंत्री को उच्चतम न्यायालय द्वारा चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित करने और इस निर्णय के परिणामों पर चिंता हुई जिन्हें गंभीरता से और व्यापक दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा: “हमारे देश में लंबे समय से चर्चा होती रही है कि काले धन के माध्यम से चुनावों में एक खतरनाक खेल हो रहा है। मैं चाहता था कि हम कुछ प्रयास करें, हम अपने चुनावों को कैसे इस काले धन से मुक्त कर सकते हैं, पारदर्शिता कैसे ला सकते हैं? मेरे दिमाग में सिर्फ यही ख्याल था… हमें एक छोटा रास्ता मिला, हमने कभी दावा नहीं किया कि यह पूर्ण तरीका था… इस प्रक्रिया में क्या हुआ अच्छा था या बुरा, यह बहस का विषय हो सकता है, मैं कभी नहीं कहता कि निर्णय लेने में कोई कमी नहीं होती। हम चर्चा के बाद सीखते हैं और सुधार करते हैं… लेकिन आज हमने देश को पूरी तरह से काले धन की ओर धकेल दिया है, इसलिए मैं कहता हूं कि हर कोई पछताएगा।”

प्रवर्तन निदेशालय से कार्रवाई का सामना कर रही 26 कंपनियों में से 16 ने चुनावी बॉन्ड खरीदे

उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय से कार्रवाई का सामना कर रही 26 कंपनियों में से 16 ने चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं। “इन [16 कंपनियों] में से 37 प्रतिशत राशि भाजपा को गई और 63 प्रतिशत राशि भाजपा विरोधी दलों को गई।” यह वास्तव में असमंजस पैदा करने वाला है, क्योंकि कारण और असर मेल नहीं खाते। कुछ दिन पहले, एक मीडिया कार्यक्रम में, गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि 2018 से पहले की स्थिति वांछनीय नहीं है। दोनों बिल्कुल सही हैं।

2018 से पहले की स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी, सभी राजनीतिक दलों को प्राप्त सभी दान का 70 प्रतिशत नकद में था — दूसरे शब्दों में, काला धन, जो न केवल चुनावों का संकट है बल्कि पूरी राजनीति का है। स्रोत अज्ञात होने के कारण, क्या यह धन अपराधियों, नशीली दवाओं के सरगनाओं, भूमि माफिया या विदेशी धन से भी हो सकता है?

ECI और ADR कर रहे सुधार की मांग

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसे नागरिक समाज संगठन वर्षों से सुधार की मांग कर रहे हैं। दो दशकों से अधिक समय से इन याचिकाओं को अनसुना कर दिया गया है। चुनावी बॉन्ड योजना ने इस मुद्दे से निपटने की कोशिश की लेकिन खुद के लिए कई समस्याएँ पैदा कीं।

पिछले एक लेख (‘An opaque bond’, इंड‍ियन एक्‍सप्रेस, 8 अप्रैल, 2021) में, मैंने लिखा था कि चूंकि बॉन्ड योजना नकद लेनदेन से दूर करना चाहती थी, इसलिए केवल उतनी ही जरूरत थी जिसे मैंने “30 सेकंड का सुधार” कहा था — दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं के नाम घोषित करना। अगर सरकार ने इस साधारण सलाह पर ध्यान दिया होता, तो सुप्रीम कोर्ट शायद इस योजना पर गाज नहीं ग‍िराता।

एससी के निर्णय के पक्ष और विपक्ष पर लंबे समय तक बहस हो सकती है, लेकिन अब हमें जिस चीज पर चर्चा करने की जरूरत है वह है आगे का रास्ता।

चुनावी बॉन्ड शुरू करने के पीछे मुख्य तर्क

2018 से पहले की स्थिति निश्चित रूप से स्वीकार्य नहीं है। मुझे लगता है कि सरकार को पिछले दो दशकों में नागरिक समाज समूहों और ECI द्वारा सुझाए गए सुधार प्रस्तावों को निकालना चाहिए और नए समाधान लेकर आना चाहिए। मैं एक व्यावहारिक समाधान की वकालत करता रहा हूं, अर्थात् एक राष्ट्रीय चुनाव कोष (NEF) की शुरुआत, जिसमें सभी दानदाता अपना योगदान दे सकते हैं। इसे आकर्षक बनाने के लिए, उदार आयकर रियायतें दी जा सकती हैं। चुनावी बॉन्ड शुरू करने के वक्त किया गया मुख्य तर्क यह था कि दानदाता गोपनीयता चाहते हैं क्योंकि उन्हें गैर-प्राप्तकर्ताओं से प्रतिशोध का डर होता है।

NEF को दिया जाने वाला दान

NEF को दिए जाने वाले दान को ऐसी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। NEF को पैसा प्राप्त करने के दो तरीके हैं: राष्ट्रीय राजकोष से सीधे अनुदान, या कॉर्पोरेट और अन्य दानदाताओं द्वारा दान। चूंकि कई लोग राजनीतिक दलों को फंड देने के लिए कर का भुगतान करने के विचार का विरोध करते हैं, हम पहले विकल्प को खारिज कर सकते हैं। लेकिन फंड को दान देने का विचार व्यावहारिक है। हम कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फंड पर भी विचार कर सकते हैं।

NEF द्वारा एकत्रित धन को राजनीतिक दलों के बीच वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर वितरित किया जा सकता है, जैसे कि हाल के चुनाव में उनका प्रदर्शन। मैंने सुझाव दिया है कि अगर हम किसी राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त प्रत्येक वोट के लिए 100 रुपये देते हैं, तो उसके पास पार्टी की गतिविधियों को चलाने के लिए पर्याप्त धन होगा। चूंकि डाले गए वोटों की संख्या नकली नहीं हो सकती, इसलिए मतदान किए गए वोटों के आधार पर प्रतिपूर्ति सटीक होगी।

पिछले चुनाव में 60 करोड़ वोट डाले गए

पिछले आम चुनाव में 60 करोड़ वोट डाले गए थे। 100 रुपये प्रति वोट की दर से राशि 6,000 करोड़ होगी। क्या यह पर्याप्त है? मैं हां कहूंगा। यह मोटे तौर पर सभी राजनीतिक दलों द्वारा मिलकर पांच साल में जुटाई गई राशि से मेल खाता है। यह योजना ईमानदारी की सभी आवश्यकताओं को पूरा करती है — कोई जबरन वसूली नहीं, कोई रिश्वत नहीं, कोई बदला नहीं। बेशक, अगर हम इस प्रणाली का पालन करते हैं तो सभी निजी दान पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। और पार्टी के खाते महालेखा परीक्षक द्वारा ऑडिट के अधीन होंगे। जो दानदाता राजनीतिक दल को फंड करना चाहते हैं और “प्रतिशोध” से नहीं डरते हैं, वे अभी भी ऐसा कर सकते हैं, लेकिन सख्ती से चेक द्वारा और ECI को सूचना के तहत, जैसा कि प्रचलन रहा है।

नए दलों का क्या?

कई लोग इस योजना के परिचालन विवरण के बारे में पूछते हैं: नए दलों का क्या? निर्दलीय के बारे में क्या? एक बार विचार को गंभीरता से बहस करने के बाद इन सभी मुद्दों पर चर्चा की जा सकती है।

स्टॉकहोम के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस द्वारा किया गया एक अध्ययन, ‘पॉलिटिकल फाइनेंस रेगुलेशन अराउंड द वर्ल्ड’ (2012), बताता है कि अध्ययन किए गए 180 देशों में से 71 के पास उनके द्वारा प्राप्त वोटों के आधार पर राजनीतिक दलों के लिए राज्य निधि की सुविधा है। इसमें यूरोप के 86 प्रतिशत देश, अफ्रीका के 71 प्रतिशत, अमेरिका के 63 प्रतिशत और एशिया के 58 प्रतिशत शामिल हैं। कोई कारण नहीं है कि इस प्रणाली को भारत में लागू नहीं किया जा सकता है।

चुनावों में काला धन

चुनावों में काले धन के बारे में लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को दूर करने का समय आ गया है। मैं माननीय प्रधानमंत्री से इस संबंध में चुनाव आयोग के सभी प्रस्तावों की तुरंत समीक्षा करने की अपील करता हूं। वे क्या सुधार हैं जिनकी वे मांग कर रहे हैं?

यहाँ सिर्फ़ चुनावी वित्त सुधार हैं। एक, राजनीतिक दलों के खर्च के लिए एक सीमा निर्धारित करें, जैसा कि उम्मीदवारों के लिए किया गया है और स्वतंत्र ऑडिट अनिवार्य करें। दो, एक स्वतंत्र राष्ट्रीय चुनाव कोष स्थापित करें जहां सभी कर-मुक्त दान किए जा सकें। तीन, राजनीतिक दलों के कामकाज में आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता लागू करें और उन्हें आरटीआई के अधीन लाएं। चार, ECI के प्रस्ताव को स्वीकार करें जहां धन के दुरुपयोग के विश्वसनीय सबूत मिलने पर चुनाव रद्द करने के लिए उसे कानूनी रूप से सशक्त बनाया जाए। पांच, उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकें जिन पर अदालतों में जघन्य अपराधों के मामले लंबित हैं। छह, ECI को राजनीतिक दलों को पंजीकरण रद्द करने का अधिकार दें जिन्होंने 10 वर्षों से चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन कर छूट से लाभान्वित हुए हैं। सात, पेड न्यूज को दो साल की कैद के साथ एक चुनावी अपराध बनाएं, इसे “भ्रष्ट आचरण” (जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 100) और “अनुचित प्रभाव” (धारा 123(2)) घोषित करें।

मैं प्रधानमंत्री के एक दावे के साथ समाप्त करता हूँ: “हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी पूरी ताकत से लड़ना चाहिए। और यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है।” आइए अपनी सारी ताकत इस प्रतिबद्धता के पीछे डालें।

लेखक भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त हैं और ‘इंडियाज एक्सपेरिमेंट विद डेमोक्रेसी: द लाइफ ऑफ ए नेशन थ्रू इट्स इलेक्शंस’ के लेखक हैं। उनका यह लेख मूल रूप से इंड‍ियन एक्‍सप्रेस में छपा है।)