1977 का लोकसभा चुनाव देश के इतिहास में पहला ऐसा चुनाव था जब पहली गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई थी। जनता पार्टी गठबंधन ने 298 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी।

यह चुनाव कांग्रेस और इंदिरा गांधी के लिए राजनीतिक रूप से उथल-पुथल भरे दौर में हुआ। साल 1975 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चुनावी कदाचार के आधार पर इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को रद्द कर दिया था। जिसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 में ही आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल की 21 महीने की अवधि के दौरान भारत में प्रेस को काफी हद तक प्रतिबंधित कर दिया गया था और प्रदर्शनकारियों और विपक्षी सदस्यों को गिरफ्तार किया जा रहा था।

मार्च 1977 में हुई चुनाव की घोषणा

आपातकाल के चलते 1976 के निर्धारित लोकसभा चुनाव में देरी हुई और मार्च 1977 में एक नए चुनाव की घोषणा की गई। चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद सात राष्ट्रीय दलों में से चार – चरण सिंह की भारतीय लोक दल (बीएलडी), भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ) और सोशलिस्ट पार्टी का विलय हो गया। यह नई पार्टी जनता पार्टी कहलायी जो आपातकाल और कांग्रेस का विरोध कर रही थी।

भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने चूंकि जनता गठबंधन को मान्यता नहीं दी थी इसलिए पार्टी ने अधिकांश राज्यों में बीएलडी के बैनर तले और तमिलनाडु और पांडिचेरी में कांग्रेस (ओ) के बैनर के तहत चुनाव लड़ा।

जनता पार्टी ने 542 में से 298 सीटें जीतीं

जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी और आपातकाल के प्रति देश में बढ़ते असंतोष को आधार बनाते हुए लोकतंत्र बनाम तानाशाही के नारे के तहत अभियान चलाया। जनता पार्टी ने चुनाव में लोकसभा की 542 सीटों में से 298 सीटें जीतीं, यानी पार्टी ने लड़ी हुई लगभग 73 प्रतिशत सीटें जीतीं थी। चुनाव के बाद मोराजी देसाई ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय दोनों को ही चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।

11 मई 1977 को ECI ने जनता पार्टी को दी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता

11 मई 1977 को, ईसीआई ने जनता पार्टी को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी और बीएलडी का प्रतीक जनता पार्टी का प्रतीक बन गया। पार्टी ने अपने सहयोगियों के साथ सरकार बनाई। कांग्रेस ने केवल 154 सीटें जीतीं, जो 2014 तक पार्टी द्वारा जीती गईं सबसे कम सीटें थीं। कांग्रेस के लिए सबसे बुरा चुनाव 2014 का आम चुनाव साबित हुआ जब उसने सिर्फ 44 सीटें जीती थीं।

जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सभी 85 सीटें जीतीं

जनता गठबंधन उत्तर भारत में विशेष रूप से सफल रहा। पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सभी 85 सीटें, बिहार में 54 में से 52 सीटें और मध्य प्रदेश में 40 में से 37 सीटें जीतीं। इसने राजस्थान में 24 और महाराष्ट्र में 19 सीटें जीतीं, जिनमें बॉम्बे की सभी सीटें भी शामिल थीं। जनता पार्टी ने हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में सभी सीटें जीतीं।

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की 154 सीटों में से 92 सीटें जीतकर कांग्रेस ने दक्षिण में कुछ हद तक सत्ता बरकरार रखी। कांग्रेस (ओ) के बैनर तले जनता पार्टी ने केरल में कोई सीट नहीं जीती, वहीं कर्नाटक में दो और तमिलनाडु में तीन सीटें जीतीं थी।

ज्यादा समय तक नहीं टिक सकी जनता पार्टी की सरकार

जनता पार्टी कांग्रेस विरोधी भावना के साथ सत्ता तक पहुंची थी लेकिन ज्यादा समय तक नहीं टिक सकी। मोरारजी देसाई के सत्ता संभालने के एक साल बाद, उनके गृहमंत्री चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया। चरण सिंह 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधान मंत्री के रूप में सरकार में लौटे लेकिन दूसरी बार इस्तीफा दे कर उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) का गठन किया।

1977 से 1979 के बीच 76 सांसद जनता गठबंधन से अलग हो गये। जब 1980 के लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने सत्ता पर फिर से कब्जा कर लिया। जनता पार्टी ने केवल 31 सीटें जीतीं और जनता पार्टी (सेक्युलर) ने 41 सीटें जीतीं। जिसके कुछ समय बाद जनता गठबंधन टूट गया।