लोकसभा चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) वजूद की लड़ाई लड़ रही है। न केवल अपने जन्मस्थल छत्तीसगढ़ में, बल्कि वहां भी जहां पार्टी सबसे ज्यादा फली-फूली और आज भी उसकी पहचान वहीं से (उत्तर प्रदेश) जुड़ी है।
बसपा की नींव कांशीराम ने 1984 में छत्तीसगढ़ (तब मध्य प्रदेश) में ही रखी थी। उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव भी अविभाजित बिलासपुर के जांजगीर-चांपा क्षेत्र से लड़ा था। हालांकि, वह केवल 32 हजार वोट ला पाए और चुनाव हार गए थे। सारंगढ़ से भी उन्होंने अपना उम्मीदवार उतारा था, लेकिन वह भी 34 हजार से ज्यादा वोट पाकर हार गए थे।
BSP ने बढ़ाई थी भाजपा-कांग्रेस की बेचैनी
पहले चुनाव में उनकी जीत भले न हुई, लेकिन भाजपा-कांग्रेस की बेचैनी जरूर बढ़ गई थी। 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के दो विधायक जीत गए। फिर बसपा धीरे-धीरे अपना जनाधार बढ़ाने में लगी रही।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बसपा तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। हुए। मालखरौदा और सारंगढ़ सीट से इसके विधायक भी बने। साल 2008 के चुनाव में भी पामगढ़ और अकलतरा सीट पर बसपा प्रत्याशी जीते। लेकिन, 2013 में बसपा केवल एक सीट (जैजैपुर) पर सिमट गई। हालांकि, 2018 में जैजेपुर के अलावा पामगढ़ पर भी कब्जा किया। लेकिन, 2023 के विधानसभा चुनाव में बसपा विधायक विहीन हो गई। आलम यह रहा कि उसका वोट शेयर सात से गिर कर दो फीसदी पर पहुंच गया। फिर भी, बसपा ने इस बार छत्तीसगढ़ की सभी 11 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
लोगों से जुड़ने के लिए बीएसपी ने अपनाया यह तरीका
इस बार बसपा ने अपनी जन्मस्थली में लोगों से जुड़ने का अपना पुराना तरीका भी अपनाया है। ‘एक वोट, एक नोट। बसपा के लोग जहां भी प्रचार के लिए जा रहे हैं, लोगों से एक वोट के साथ एक नोट मांग रहे हैं। कांशीराम ने भी पार्टी से लोगों को जोड़ने के लिए यही तरीका अपनाया था। वह साइकिल से घूम-घूम कर अपना जनाधार बढ़ाने में लगे रहते थे। उनकी साइकिल उन्हें बहुत प्रिय थी। एक बार साइकिल चोरी हो जाने पर वह रोने लगे थे।
बसपा छत्तीसगढ़ में भले ही ज्यादा फल-फूल नहीं सकी, लेकिन उत्तर प्रदेश में उसने कमाल कर दिया। अपने दम पर सरकार तक बनाई और चलाई। सांसद भी अच्छी संख्या में जिताए। लेकिन, पिछले कुछ सालों से उत्तर प्रदेश में भी पार्टी का हाल बुरा है।
यूपी में लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर 2009 से लगातार घट रहा है। 2009 में बसपा को 27.4% वोट मिला, जो 2014 में 19.8% पर आ गया। 2019 में सपा-रालोद से गठबंधन के बावजूद बसपा का वोट प्रतिशत थोड़ा कम (19.4%) ही हुआ।

विधानसभा चुनाव 2022 में भी गिरा बसपा का वोट शेयर
विधानसभा चुनाव में भी उसकी हालत खस्ता रही। 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में बसपा का वोट शेयर मात्र 12.8% था। विधानसभा की 403 सीटों में से बसपा केवल एक सीट ला पाई थी। 1993 के चुनाव के बाद से बसपा का यह सबसे खराब प्रदर्शन था।
उत्तर प्रदेश में इस बार बसपा अकेले सभी 80 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ रही है। उसने श्रावस्ती को छोड़, 79 प्रत्याशी घोषित भी कर दिए हैं। लेकिन, इस बार उम्मीदवारों की घोषणा में भी बसपा का असमंजस साफ दिखाई दे रहा है।

आजमगढ़ से बसपा ने 20 दिन में तीसरी बार बदला प्रत्याशी
आजमगढ़ से बसपा ने 20 दिन में तीसरी बार प्रत्याशी बदल दिया है। 2 मई को पार्टी ने छह उम्मीदवारों की 11वीं लिस्ट जारी की तो उसमें आजमगढ़ से मशहूद अहमद का नाम था। 12 अप्रैल को बसपा ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को यहां से टिकट दिया था। 28 अप्रैल को भीम राजभर को सलेमपुर का उम्मीदवार घोषित किया गया और आजमगढ़ से सबीहा अंसारी को टिकट दिया। सबीहा उसी मशहूद अहमद की पत्नी हैं जिन्हें 2 मई को आजमगढ़ का उम्मीदवार बनाया गया। वह आजमगढ़ के जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष थे।
आजमगढ़ से भाजपा ने भोजपुरी एक्टर दिनेश लाल यादव निरहुआ को दोबारा उम्मीदवार बनाया है। सपा से अखिलेश के चेचेरे भाई धर्मेंद यादव लड़ रहे हैं। आजमगढ़ में ज्यादातर मतदाता मुस्लिम और यादव ही हैं।
UP BSP Lok Sabha Chunav 2024: उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन
साल | 2004 लोकसभा चुनाव | 2007 विधानसभा चुनाव | 2009 लोकसभा चुनाव | 2012 विधानसभा चुनाव | 2014 लोकसभा चुनाव | 2017 विधानसभा चुनाव | 2019 लोकसभा चुनाव | 2022 विधानसभा चुनाव |
बसपा को मिली सीटें | 19 | 206 | 20 | 80 | 0 | 19 | 10 | 1 |