19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के साथ ही आम चुनाव की शुरुआत हो जाएगी। इन सबके बीच सभी की निगाहें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर हैं, जहां बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और अल्पसंख्यक मतदाता केंद्र में हैं। 19 अप्रैल को पश्चिमी यूपी की आठ सीटों पर मतदान होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोट बहुत महत्व रखते हैं। सहारनपुर, नगीना, बिजनौर, कैराना, पीलीभीत, रामपुर, मोरादाबाद और मुजफ्फरनगर में बड़ी संख्या में मुस्लिम हैं। पीलीभीत को छोड़कर इनमें से अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी 35% से अधिक है।
उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 19%
2011 के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 19% है और उनके वोट से 20-50% मुस्लिम आबादी वाली लगभग 24 लोकसभा सीटों पर नतीजे तय होने की संभावना है। पर्याप्त मुस्लिम आबादी वाले रामपुर, सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मोरादाबाद, मुजफ्फरनगर और कैराना जैसे प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में वोटों के विभाजन ने हमेशा परिणाम पर असर डाला है। कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में बसपा और इंडिया गठबंधन दोनों द्वारा खड़े किए गए मुस्लिम उम्मीदवारों की उपस्थिति ने अल्पसंख्यक वोटों को कमजोर किया है और अनजाने में भाजपा को लाभ पहुंचाया है।
पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम
2019 में भाजपा इनमें से केवल तीन सीटों (मुजफ्फरनगर, पीलीभीत और कैराना) पर जीत हासिल की थी जबकि समाजवादी पार्टी ने दो सीटें (मुरादाबाद और रामपुर) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने तीन (सहारनपुर, बिजनौर और नगीना) जीतीं थीं। 2019 का चुनाव सपा और बसपा ने गठबंधन कर लड़ा था। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में, भाजपा ने सात सीटें जीतीं थीं- मुजफ्फरनगर, पीलीभीत, कैराना, नगीना, मोरादाबाद, सहारनपुर और बिजनौर।

सहारनपुर में इनके बीच है मुक़ाबला
सहारनपुर में बसपा के माजिद अली और कांग्रेस के इमरान मसूद के बीच मुकाबला देखने को मिल रहा है। राघव लखनपाल यहां से भाजपा के उम्मीदवार हैं और वोटों के बंटवारे का फायदा पाने की उम्मीद कर रहे हैं। सहारनपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने पिछले 25 सालों में केवल एक बार जीत हासिल की है। मसूद सार्वजनिक रूप से मंदिरों में जाते और हिंदू रीति-रिवाजों में शामिल होते देखे जाते हैं, जिसका उद्देश्य हिंदुओं को टारगेट करना है, जो यहां लगभग 58% मतदाता हैं। सहारनपुर में लगभग 42% मतदाता मुस्लिम हैं।
मोरादाबाद में, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 48% है शायद पहली बार सपा ने एक हिंदू उम्मीदवार रुचि वीरा को मैदान में उतारा है। बसपा के मोहम्मद इरफान सैफी सर्वेश सिंह को चुनौती दे रहे हैं। सपा ने अपने मौजूदा सांसद एसटी हसन को टिकट देने से इनकार कर दिया था।
कौन-कौन है नगीना के चुनाव मैदान में?
नगीना, एक अनुसूचित जाति-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र में आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्र शेखर आजाद की उपस्थिति ने मुकाबले को चतुष्कोणीय बना दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती के उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने नगीना संसदीय सीट से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की है। नगीना में दलित मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है और 2008 में परिसीमन के बाद बिजनौर जिले का एक बड़ा हिस्सा इसके अंतर्गत आता है। चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती ने भी 1989 में जीत के बाद यहीं से शुरुआत की थी। चंद्रशेखर आज़ाद के अलावा बसपा के सुरेंद्र पाल, भाजपा के ओम कुमार और सपा की ओर से पूर्व अतिरिक्त जिला न्यायाधीश मनोज कुमार मैदान में हैं।
कैराना और रामपुर में भी चुनाव परिणाम पर असर डालते हैं मुस्लिम वोटर्स
कैराना में सपा की तबस्सुम हसन, बसपा के शिवपाल सिंह राणा और भाजपा के प्रदीप कुमार के बीच मुक़ाबला है। वरुण गांधी की मैदान में अनुपस्थिति के बीच, बसपा के अनीस अहमद खान, सपा के भगवत सरन गंगवार और भाजपा के जितिन प्रसाद के बीच पीलीभीत में दिलचस्प मुकाबला है। रामपुर में, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 42 फीसदी है वहां बसपा के जीशान खान और सपा उम्मीदवार मौलाना महिबुल्लाह नकवी के बीच मुकाबला है।
पहले चरण में अन्य प्रमुख सीट मुजफ्फरनगर हैं जहां राजपूत संगठनों के बीच उनकी उम्मीदवारी पर असंतोष के बीच भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान मैदान में हैं। मायावती ने इस बार मुजफ्फरनगर में दारा सिंह प्रजापति को उम्मीदवार बनाया है। जबकि समाजवादी पार्टी से पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक चुनाव मैदान में है।
उत्तर प्रदेश से मुस्लिम सांसद
चुनाव वर्ष | सांसदों की संख्या |
2019 | 6 |
2014 | 0 |
2009 | 7 |
2004 | 12 |
1999 | 9 |

मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर रही BSP?
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जब बीएसपी ने 16 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी तो इसमें से मुस्लिम समुदाय के 7 नेताओं को टिकट दिया था। मायावती ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ऐसा ही प्रयोग किया था। बीएसपी ने तब 99 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था लेकिन इसका फायदा बीजेपी को मिला क्योंकि मुस्लिम वोट कांग्रेस-सपा गठबंधन और बीएसपी के बीच बंट गए। पूरी खबर पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें