निर्वाचन आयोग मतदान प्रतिशत को बढ़ाने और वोटिंग को हर संभव कानून के दायरे में कराने का प्रयास कर रहा है। चुनाव आयोग ने निर्वासित कश्मीरी पंडितों के मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए प्रक्रिया को आसान बनाया है।
वहीं महाराष्ट्र और तेलंगाना के बॉर्डर पर चुनाव आयोग 14 गांव के मतदाताओं द्वारा दो बार वोट करने की ‘गैरकानूनी रवायत’ पर रोक लगाने की कोशिश में जुटा हुआ है।
इन दोनों मुद्दों के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही जानेंगे कि 85 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाताओं यानी बुजुर्ग वोटर्स और विकलांग मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग क्या कर रहा है? और प्रवासी कामगारों के वोटिंग प्रतिशत को बढ़ाना अब भी चुनौतीपूर्ण क्यों है?
दो बार मतदान करने वाले गांवों की कहानी
महाराष्ट्र और तेलंगाना की सीमा पर स्थित 14 गांवों के लगभग 4,000 मतदाता भारत के एकमात्र ऐसे वोटर्स ग्रुप हैं, जिन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में भी दो बार मतदान करने का “विशेषाधिकार” प्राप्त होगा – महाराष्ट्र में 19 अप्रैल को पहले चरण में चंद्रपुर निर्वाचन क्षेत्र के लिए और फिर 13 मई को चौथे चरण में तेलंगाना में आदिलाबाद निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदान होगा।
द इंडियन एक्सप्रेस के वल्लभ ओजारकर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि महाराष्ट्र और तेलंगाना के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद के कारण, 6,000 से अधिक की कुल आबादी वाले इन 14 गांवों के लोगों को दोनों राज्यों से लाभ मिलता है। गावों में मराठी और तेलुगु दोनों स्कूल हैं। अस्पताल भी इसी तरह के हैं। दोनों राज्यों से संबंधित ग्राम पंचायत और सरपंच भी हैं।

तेलंगाना में आदिलाबाद की केरामेरी तहसील और महाराष्ट्र में चंद्रपुर की जिवती तहसील में आने वाले 14 गांवों को लेकर क्षेत्रीय विवाद 1956 से है, जब आंध्र प्रदेश राज्य का गठन हुआ था।1
4 गांव दो ग्राम पंचायतों – पारंडोली और अंतपुर – के अंतर्गत आते हैं, जो 30 किमी से अधिक दूर हैं। ग्रामीणों के पास दो-दो मतदाता पहचान पत्र हैं, जिनमें उनके नाम दोनों राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों में सूचीबद्ध हैं।
प्रत्येक ग्रामीण के पास दो राशन कार्ड, आधार कार्ड, मनरेगा कार्ड, जाति प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेज हैं – एक-एक महाराष्ट्र और तेलंगाना से, जो उन्हें दोनों राज्यों से सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ उठाने में सक्षम बनाता है।
दोनों ग्राम पंचायतों के बीच एकमात्र अंतर यह है कि पारंडोली के अंतर्गत आने वाले सभी गांवों को दोनों राज्यों से पानी और बिजली की आपूर्ति मिलती है। जबकि अंतपुर के तहत पांच गांवों के निवासियों का कहना है कि केवल तेलंगाना उन्हें पानी और बिजली दे रहा है, वो भी मुफ़्त में। हालांकि, महाराष्ट्र पारडोली पंचायत में पानी-बिजली के लिए चार्ज करता है।

वर्तमान में पारडोली और अंतपुर दोनों में दो ग्राम पंचायतों के लिए चुने गए दो सरपंच महाराष्ट्र और तेलंगाना के अलग-अलग दलों से हैं, जिसके कारण उन्हें विकास कार्यों को पूरा करने के लिए अपनी-अपनी सरकारों से दो अलग-अलग फंड भी मिलते हैं। सभी 14 गांवों के ज्यादातर ग्रामीण अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों से हैं।
चुनाव आयोग की चिंता क्या है?
पारंडोली की सरपंच लीनाबाई बिराडे (महाराष्ट्र में कांग्रेस की सदस्य) और उनके पति भरत ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हां, हम हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में दोनों राज्यों में वोट देते रहे हैं। हमारे पास दोनों राज्य के अलग-अलग मतदाता पहचान पत्र हैं। यदि दोनों राज्यों में चुनाव की तारीख एक ही है, तो हम जिस भी राज्य में संभव हो, मतदान करते हैं। लेकिन अगर यह एक ही तारीख पर नहीं होता है, तो हम दोनों तरफ वोट करते हैं, क्योंकि हमें दोनों तरफ से सुविधाएं मिल रही हैं।”
ग्रामीणों के दोहरे मतदान के मुद्दे पर, चंद्रपुर जिला कलेक्टर विनय गौड़ा सीजी ने कहा कि हाल ही में दोनों जिलों – महाराष्ट्र के चंद्रपुर और तेलंगाना के आदिलाबाद के प्रशासनिक अधिकारियों की एक अंतरराज्यीय बैठक में यह निर्णय लिया गया कि दोनों जिला प्रशासन की टीमें परामर्श देंगी। ग्रामीणों को दो बार मतदान नहीं करना चाहिए क्योंकि यह गैरकानूनी है।
गौड़ा ने कहा, “न केवल हम ग्रामीणों को दो बार मतदान न करने की सलाह दे रहे हैं, बल्कि हमने केवल एक निशान के बजाय पूरी तर्जनी पर अमिट स्याही लगाने का भी फैसला किया है, ताकि वे दोबारा मतदान न कर सकें।”
अतीत में, ये ग्रामीण दोनों पक्षों में मतदान कर चुके हैं। लेकिन, गौड़ा ने कहा, “सिर्फ दो वोट ही नहीं, दो जगहों से दो मतदाता पहचान पत्र रखना भी गैरकानूनी है। इसलिए हम यह बात ग्रामीणों तक पहुंचा रहे हैं।”
गांव वालों की क्या चिंता है?
पारंडोली के एक सरपंच ने इस घटनाक्रम से असहमति जताते हुए कहा कि सरकारों को पहले यह तय करना चाहिए कि उनके गांव किस राज्य के हैं। तेलंगाना की पार्टी बीआरएस के सदस्य और पारंडोली ग्राम पंचायत के सरपंच निंबादास पतंगे का कहना है, “अगर दो बार मतदान करना कानून के मुताबिक नहीं है, तो चुनाव आयोग को राज्यों से पहले हमारे मुद्दे को हल करने के लिए कहने दें। हम दोनों तरफ वोट कर रहे हैं। यदि आपको इससे कोई समस्या है, तो चुनाव आयोग से किसी एक निर्वाचन क्षेत्र की सूची से हमारा नाम हटाने के लिए कहें। हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है। हमारी एकमात्र चिंता यह है कि अधिकारी हमें बताएं कि हम महाराष्ट्र का हिस्सा हैं या तेलंगाना का। हमें किसी भी राज्य में शामिल होने में कोई समस्या नहीं है, जब तक वे जमीन के पट्टों के साथ हमारे मुद्दे को हल नहीं करते हैं।”
पारंडोली की अन्य सरपंच लीनाबाई बिराडे ने कहा कि दोनों राज्यों का लाभ तो ठीक है, लेकिन उनकी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि वे अपनी जमीन अपने नाम पर दर्ज नहीं करा सकते। चूंकि भूमि को वन के रूप में नामित किया गया है, इसलिए इसे किसी के नाम पर पंजीकृत नहीं किया जा सकता है। ग्रामीणों की मांग है कि हमें हमारे नाम पर पट्टा दिया जाए।

जब इंडियन एक्सप्रेस ने अंतापुर ग्राम पंचायत के अंतर्गत अंतपुर और नारायणगुडा गांवों का दौरा किया, तो कई निवासियों ने दावा किया कि उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा “उपेक्षित” किया जा रहा है, जबकि तेलंगाना सरकार उन्हें मुफ्त में पानी और बिजली जैसी सुविधाएं प्रदान कर रही है।
कैसे बढ़ेगा कश्मीरी पंडितों का मतदान?
चुनाव आयोग (EC) ने गुरुवार (11 अप्रैल, 2024) को एक अधिसूचना जारी कर कहा है कि जम्मू और उधमपुर जिलों में रहने वाले कश्मीरी पंडित प्रवासियों को घाटी में अपने मूल संसदीय क्षेत्रों में वोट डालने के लिए “फॉर्म एम” भरने की आवश्यकता नहीं है। चुनाव आयोग ने कहा कि अब उन्हें उन क्षेत्रों में स्थापित किए जाने वाले विशेष मतदान केंद्रों के साथ “मैप” किया जाएगा जहां वे वर्तमान में रह रहे हैं।
लंबे समय से ‘फॉर्म एम’ की कठिन प्रक्रिया का असर प्रवासी कश्मीरी पंडितों के वोटिंग टर्नआउट पर भी दिखता रहा है। उदाहरण के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान कुल लगभग एक लाख प्रवासी मतदाताओं में से केवल 13,537 ने अपना वोट डाला था।
कश्मीरी प्रवासी मतदाताओं का महत्व
कश्मीर के तीन लोकसभा क्षेत्रों – श्रीनगर, अनंतनाग और बारामूला में कुल 1.13 लाख कश्मीरी पंडित प्रवासी मतदाता पंजीकृत हैं। 2019 के चुनावों के दौरान इन निर्वाचन क्षेत्रों में 20% से कम मतदान दर्ज होने के कारण, ये कश्मीरी पंडित प्रवासी मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। पिछली बार 80% से ज्यादा प्रवासी वोट बीजेपी को जाने का अनुमान है।
अन्य प्रवासी
दिल्ली और देश में अन्य जगहों पर रहने वाले कश्मीरी पंडित प्रवासियों, जिनकी संख्या कम है, उन्हें अभी भी “फॉर्म एम” भरने की आवश्यकता होगी। हालांकि, चुनाव आयोग ने राजपत्रित अधिकारियों द्वारा पहले आवश्यक प्रमाणीकरण के बजाय स्व-सत्यापन की अनुमति देकर इन फॉर्मों को भरने की प्रक्रिया को आसान बना दिया है।
बारामूला का समीकरण
जिस बारामूला में कश्मीरी पंडितों को निर्णायक बताया जा रहा है, वहां उमर अब्दुल्ला चुनाव लड़ने वाले हैं। जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने 12 अप्रैल, 2024 को उमर अब्दुल्ला के नाम की घोषणा की।
जूनियर अब्दुल्ला ने अपने नामांकन पर बोलते हुए कहा, इस बार हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं है। मेरी लड़ाई उस पावर से है जो कश्मीर घाटी में उम्मीदवारों के पीछे हैं। यह निर्णय लिया गया है कि मैं उत्तरी कश्मीर (बारामूला) से चुनाव लड़ूंगा क्योंकि भाजपा इस पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रही है। मैं चाहता हूं कि ये पावर पराजित हों।”

यह अब्दुल्ला द्वारा जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी (JKAP) और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (जेकेपीसी) के खिलाफ परोक्ष हमला था। अब्दुल्ला का मुकाबला सज्जाद लोन से है, जिनकी जेकेपीसी 2019 के लोकसभा चुनाव में उपविजेता रही थी। लोन उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले से आते हैं और इसे पार्टी का गढ़ मानते हैं। हालांकि, यह नेशनल कॉन्फ्रेंस ही थी जिसने 2019 का चुनाव 30,000 से अधिक वोटों से जीता था।
अब्दुल्ला ने कहा, “मेरी लड़ाई किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं है, यह भाजपा की धोखाधड़ी, विश्वासघात और राजनीतिक साजिश के खिलाफ है।” बता दें कि बारामूला में 20 मई को मतदान होगा।
जनसत्ता से बातचीत में उमर अब्दुल्ला ने बताया था कि 370 हटने के बाद नजरबंदी में क्या-क्या हुआ था, उस बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

बुजुर्गों और विकलांगों के लिए EC की क्या है योजना?
शारीरिक रूप से 40 प्रतिशत विकलांगों को ही श्रेणी में रखा गया है। बुजुर्ग मतदाताओं की संख्या के मामले में टॉप तीन राज्य महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश बिहार हैं। सबसे अधिक विकलांग मतदाता वाले राज्य क्रमश: उत्तर प्रदेश और बिहार हैं।
चुनाव आयोग की योजना के मुताबिक, बुजुर्ग और विकलांग मतदाता घर बैठे ही वोट डाल सकेंगे। यह काम वोटिंग वाले दिन से पहेल पूरा कर लिया जाएगा। फिलहाल बीएलओ के माध्यम से ऐसे मतदाताओं को फॉर्म भेजा जा रहा है। बुजुर्ग और विकलांग मतदाता पोस्टल बैटल के माध्यम से वोटिंग कर पाएंगे। अगर इनमें से कोई मतदान केंद्र पर जाकर वोट करना चाहे, तो कर सकता है।
पिछले चुनाव में 30 करोड़ लोगों ने नहीं डाला था वोट
चुनाव आयोग का डेटा बताता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट नहीं डाला था। यह आंकड़ा ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल, नीदरलैंड और जर्मनी की कुल आबादी से भी ज्यादा है। वोटर टर्नआउट का ग्राफ देखें:

कामगार प्रवासी नहीं डाल पा रहे वोट
जीडीपी में 10% योगदान का देने वाले प्रवासी कामगारों का एक बड़ा तबका चुनाव में वोट नहीं डाल पाता है। उनके सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, अगर वे वोट डालने के लिए अपने मूल स्थान जाना चाहेंगे तो उन्हें दफ्तर या फैक्ट्री से छुट्टी लेनी होगी और आने-जाने में पैसा भी खर्च करना होगा। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
