आम चुनाव में संपत्ति के पुनर्वितरण का मामला पहले से चर्चा में था। कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा के एक बयान के बाद इनहेरिटेंस टैक्स यानी विरासत कर भी बहस का मुद्दा बन गया है। संपत्ति का पुनर्वितरण और विरासत कर, दोनों ही मुद्दों को लेकर सत्ताधारी भाजपा, विपक्षी कांग्रेस पर हमलावर है।

ये दोनों विषय अलग-अलग हैं। लेकिन आर्थिक गैर-बराबरी से निपटने की बहस इन्हें जोड़ती हैं। हम दोनों विषयों के बारे में विस्तार से जानेंगे। पहले जान लेते हैं कि हाल में ये बहस कहां से उपजी है।

न्याय देने आयी कांग्रेस!

आज़ादी के बाद से भारत पर सबसे लंबे समय तक कांग्रेस का शासन रहा है। कांग्रेस पर लंबे समय तक गांधी परिवार का शासन रहा है। गांधी परिवार से तीन लोग देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। उसी गांधी परिवार की वर्तमान पीढ़ी के प्रमुख सदस्य और कांग्रेस के पोस्टर बॉय राहुल गांधी का दावा है कि वह भारत की जनता को न्याय देने के लिए सत्ता में आना चाहते हैं।

किस तरह का न्याय? जवाब है- सामाजिक न्याय। आर्थिक न्याय। लैंगिक न्याय। कांग्रेस इन तीनों न्याय को जातिगत जनगणना, आर्थिक सर्वे और नौकरी में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण का वादा कर जोड़ रही है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र को न्याय पत्र नाम दिया है, जिसमें इन बातों का जिक्र मिलता है।

6 अप्रैल को हैदराबाद में कांग्रेस मैनिफेस्टो लॉन्च रैली के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, “हम देश का X-Ray कर देंगे, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। पिछड़े वर्ग को, दलितों को, आदिवासियों को, गरीब जनरल कास्ट के लोगों को माइनॉरिटीज को पता चल जाएगा कि इस देश में उनकी भागीदारी कितनी है। इसके बाद हम फाइनेंशियल और इंस्टीट्यूशनल सर्वे करेंगे। ये पता लगाएंगे हिंदुस्तान का धन किसके हाथों में है, कौन से वर्ग के हाथ में है। इस ऐतिहासिक कदम के बाद हम क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे। जो आपका हक बनता है, आपके लिए आपको देने का काम करेंगे।”

ऐसे में जब सैम पित्रोदा ने संपत्ति के पुनर्वितरण के लिए विरासत कर का विचार पेश किया, तो लगा कि राहुल गांधी ने इसके लिए जमीन तैयार कर दी हो। भाजपा, जो पहले से ही कांग्रेस की “इकोनॉमिक पॉलिसी” को चुनौती दे रही है, उसने अब आरोप लगाया है कि बढ़ते मध्यम वर्ग को ऐसी नीतिगत नुस्खों से खतरा है, कांग्रेस लोगों की निजी संपत्ति को “हथियाना” चाहती है।

तो क्या सरकार लोगों की संपत्ति लेकर गरीबों में बाट सकती है?

सरकार क्या कर सकती है और क्या नहीं, उसे जानने से पहले इतना स्पष्ट जान लेते हैं कि कांग्रेस ने संपत्ति के पुनर्वितरण की बात न तो अपने घोषणापत्र में कही है और न ही राहुल गांधी ने किसी भाषण में साफ-साफ कहा है। अलग-अलग टीवी डिबेट में कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने भी संपत्ति के पुनर्वितरण पर पार्टी का स्टैंड क्या है, इसे क्लियर नहीं किया है।

अब आते हैं कानूनी पहलू पर। बुधवार (24 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई हुई कि क्या सरकार निजी स्वामित्व वाली संपत्तियों का अधिग्रहण और पुनर्वितरण कर सकती है यदि उन्हें “समुदाय के भौतिक संसाधन” माना जाता है, जैसा कि संविधान के 39(बी) में बताया गया है। द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अजय सिन्हा कर्पुरम की रिपोर्ट में आर्टिकल 39(बी) और उससे जुड़ी बहस पर विस्तार से लिखा गया है।

39(बी) में क्या लिखा है?

संविधान के भाग IV ‘Directive Principles of State Policy’ (DPSP) में आर्टिकल 39 (बी) है। ये आर्टिकल स्टेट को “समुदाय के भौतिक संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित करने का दायित्व देता है कि आम भलाई हो सके। ध्यान रहे, DPSP का उद्देश्य कानून बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करना है।

सुप्रीम कोर्ट में 39 (बी) की व्याख्या

1977 के बाद से शीर्ष अदालत ने कई मौकों पर अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या पर विचार किया है। विशेष रूप से कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी (1977) मामले में। उस केस में सात न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 4:3 के बहुमत से यह माना कि निजी स्वामित्व वाले संसाधन “समुदाय के भौतिक संसाधनों” के दायरे में नहीं आते हैं।

हालांकि, न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर इससे सहमत नहीं थे। न्यायमूर्ति अय्यर ने माना था कि निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को भी समुदाय का भौतिक संसाधन माना जाना चाहिए।

उन्होंने कहा था, “भौतिक संसार में उपयोग की प्रत्येक वस्तु भौतिक संसाधन है। व्यक्ति समाज का हिस्सा है, इसलिए उसके संसाधान भी समाज का हिस्सा हैं। अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से निजी संसाधनों के स्वामित्व को बाहर करना समाजवादी तरीके से पुनर्वितरण के इसके उद्देश्य को छिपाना है।” दिलचस्प है कि कालांतर में जस्टिस अय्यर की अल्पमत राय ही अधिक प्रभावशाली हो गई।

जस्टिस अय्यर के अल्पमत के विचारों को मिला समर्थन

अनुच्छेद 39 (बी) की जो व्याख्या जस्टिस अय्यर ने की थी, बाद में उसकी पुष्टि संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल (1983) मामले में पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने की। अदालत ने केंद्र सरकार की उस कानून को बरकरार रखा, जिसके तरह कोयला खदानों और उससे संबंधित संयंत्रों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। कोर्ट ने यह माना कि 13 (बी) निजी-स्वामित्व से सार्वजनिक स्वामित्व में धन के परिवर्तन को अपने दायरे में लेता है और यह उस तक ही सीमित नहीं है जो पहले से ही सार्वजनिक स्वामित्व में है।

इस फैसले में इस बात का जिक्र नहीं था कि जस्टिस अय्यर की राय अल्पमत में थी। न ही इसमें यह उल्लेख किया गया कि बहुमत ने विशेष रूप से खुद को इससे दूर रखा था।

एक दूसरे मामले में भी अय्यर के विचारों की पुष्टि

मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ (1996) मामले में नौ-न्यायाधीशों की पीठ का फैसला भी न्यायमूर्ति अय्यर और संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग में पीठ द्वारा पेश अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या पर निर्भर था। फैसले में कहा गया था, “अनुच्छेद 39 (बी) में आने वाले ‘भौतिक संसाधन’ शब्द प्राकृतिक या भौतिक संसाधनों और चल या अचल संपत्ति को भी अपने अंदर लेगा। इसमें भौतिक जरूरतों को पूरा करने के सभी निजी और सार्वजनिक स्रोत शामिल होंगे, न कि केवल सार्वजनिक संपत्ति तक ही सीमित रहेगा।”

इस अनुच्छेद की मदद से कोर्ट ने जमीनों को कब्जेदारों से मुक्त भी कराया है। हालांकि अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या का मामला अब भी कोर्ट के समक्ष है। उपरोक्त उदाहरणों से ये स्पष्ट होता है कि सरकार चाहे तो निजी संपत्ति को भी ‘जनता की भलाई’ के लिए अपने कब्जे में ले सकती है।

वैसे बता दें कि वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन या संपत्ति के पुनर्वितरण का आसान भाषा में मतलब है कि समाज के सभी वर्गों के बीच समाज की तमाम धनसंपदा का बराबरी से बंटवारा। कांग्रेस ने अब तक इसका वादा नहीं किया है। कांग्रेस नेताओं के भाषण में इसे लेकर कंफ्यूजन है। कई बयानों में तो कांग्रेस नेता आर्थिक गैर-बराबरी खत्म करने के उपायों और समान प्रतिनिधित्व के उपायों में फर्क नहीं कर पा रहे हैं।

विरासत कर क्या है?

इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा ने बुधवार (24 अप्रैल) को शिकागो से समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, “अमेरिका में इनहेरिटेंस टैक्स की व्यवस्था है। इसका मतलब है कि अगर किसी के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है तो उसके मरने के बाद बच्चों को केवल 45% संपत्ति ही मिलेगी और बाकी 55% सरकार ले लेगी। ये काफी दिलचस्प कानून है। ये कहता है कि आप अपने दौर में संपत्ति जुटाओ और अब जब आप जा रहे हैं, तो आपको अपनी धन-संपत्ति जनता के लिए छोड़नी होगी, सारी नहीं लेकिन उसकी आधी, जो मेरी नज़र में अच्छा है।”

इनहेरिटेंस टैक्स पर भारत में बहस की मांग करते हुए राजीव गांधी के पूर्व सलाहकार और राहुल गांधी के सहयोगी पित्रोदा ने आगे कहा, “भारत में आप ऐसा नहीं कर सकते। अगर किसी की संपत्ति 10 अरब रुपये है और वह इस दुनिया में न रहे तो उनके बच्चे ही 10 अरब रुपये रखते हैं और जनता को कुछ नहीं मिलता… तो ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिस पर लोगों को बहस और चर्चा करनी चाहिए। मैं नहीं जानता कि इसका नतीजा क्या निकलेगा लेकिन जब हम संपत्ति के पुनर्वितरण की बात करते हैं, तो हम नई नीतियों और नए तरह के प्रोग्राम की बात करते हैं जो जनता के हित में है.. न कि केवल अमीर लोगों के।”

अब भाजपा इनहेरिटेंस टैक्स पर भारत में बहस की मांग को कांग्रेस की योजना बताकर प्रचारित कर रही है। जबकि कांग्रेस और पित्रोदा दोनों ने इससे इनकार किया है। अब अगर पित्रोदा के बहाने विरासत कर का मुद्दा उठ गया है, तो जान लेते हैं कि ये कैसे काम करता है?

भारत में लगता था मृत्यु कर

विरासत कर की चर्चा अक्सर आय की असमानता को दूर करने के लिए धन के पुनर्वितरण के एक उपकरण के रूप में किया जाता है। भारत में एक समय विरासत (या मृत्यु) कर था। इस टैक्स तो तब संपत्ति शुल्क के रूप में जाना जाता था।

संपत्ति शुल्क को 1953 में पेश किया गया था। 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने इसे खत्म कर दिया गया। भारत में संपत्ति कर और उपहार कर भी था, जिन्हें क्रमशः 2015 और 1998 में समाप्त कर दिया गया। द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित आंचल मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार ने भी जुलाई 2019 का बजट तैयार करने के दौरान आंतरिक रूप से विरासत कर पर चर्चा की थी। आगे इस बारे में विस्तार से जानेंगे।

इससे पहले साल 2017 में भी विरासत कर जैसा टैक्स लाने की योजना थी, लेकिन विरोध के बाद सरकार को पीछे हटना पड़ा। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

Arun Jaitley
पीएम मोदी के साथ अरुण जेटली (Source- PTI file photo )

विरासत कर क्यों?

न्यायसंगत समाज बनाने के लिए विश्व स्तर पर अरबपतियों पर अधिक कर लगाने की मांग जोर-शोर से बढ़ रही है। अमेरिका में 100 मिलियन डॉलर से अधिक संपत्ति वाले करदाताओं पर न्यूनतम 25% कर लगाने के प्रस्ताव पर चर्चा हुई है। फ्रांस और ब्राज़ील ने जुलाई तक अत्यधिक अमीरों पर टैक्स लगाने के लिए जी20 की घोषणा पर ज़ोर दिया है।

जहां तक विरासत कर की बात है, वह ठीक वैसे ही काम करता है, जैसे सैम पित्रोदा ने बताया है। वर्तमान में भारत में विरासत कर नहीं है। लेकिन पहले मृत्यु कर था, जिसे राजीव गांधी की सरकार ने खत्म कर दिया।

पित्रोदा के बारे में विस्तार से जानने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

Sam Pitroda
ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा।

कांग्रेस ने खत्म किया था विरासत कर जैसा कानून

1985-86 के अपने बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने कहा कि संपत्ति पर कर के लिए दो अलग-अलग कानूनों का अस्तित्व – मृत्यु से पहले संपत्ति कर और मृत्यु के बाद संपत्ति शुल्क – करदाताओं के “उत्पीड़न” के समान है। उन्होंने यह भी कहा कि संपत्ति शुल्क ने धन के असमान वितरण को कम करने और राज्यों को उनकी विकास योजनाओं के वित्तपोषण में सहायता करने के अपने उद्देश्यों को हासिल नहीं किया है।

सिंह ने आगे कहा, “संपत्ति शुल्क से आय केवल 20 करोड़ रुपये है, इसके संचालन की लागत अपेक्षाकृत अधिक है। इसलिए, मैं 16 मार्च, 1985 को या उसके बाद होने वाली मौतों पर संपत्ति के हस्तांतरण के संबंध में संपत्ति शुल्क की वसूली को समाप्त करने का प्रस्ताव करता हूं।”

भाजपा ने खत्म किया संपत्ति कर

संपत्ति शुल्क खत्म होने के बाद भी संपत्ति कर जारी रहा, जिसे 2015-16 में मोदी सरकार ने खत्म कर दिया। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015-16 के अपने बजट भाषण में कहा था, “क्या ऐसे कर को जारी रखा जाना चाहिए जिसके कारण संग्रहण की लागत अधिक हो और उससे लाफ कम हो या इसे कम लागत और अधिक लाभ वाले कर से बदला जाना चाहिए? अमीर लोगों को कम अमीर लोगों की तुलना में अधिक कर देना होगा, इसलिए मैंने संपत्ति कर को खत्म करने और 1 करोड़ रुपये से अधिक की कर योग्य आय वाले सुपर अमीरों पर 2% का अतिरिक्त कर लगाने का फैसला किया है।”